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आदिवासी बच्चों ने कबाड़ से बनाया कोरोना से लड़ने का जुगाड़ू हथियार

आदिवासी बच्चों ने कबाड़ से बनाया कोरोना से लड़ने का जुगाड़ू हथियार

संदीप पौराणिक 

झाबुआ| वैश्विक महामारी कोरोना की रोकथाम के मद्देनजर बार-बार साबुन से हाथ धोना कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ लड़ने का असरदार तरीका माना जा रहा है। इसे लेकर सभी लोग प्रयासरत भी हैं, इसी क्रम में मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाके झाबुआ में बच्चों ने कबाड़ से जुगाड़ कर एक बड़े हथियार का निर्माण किया है। इसके माध्यम से वह हाथ धोने के नए तरीके के साथ ही जल संरक्षण का संदेश भी दे रहे हैं।

कोविड-19 वायरस का इलाज अब तक नहीं खोजा जा सका है, यही कारण है कि इससे बचाव के दो तरीके बताए गए हैं। एक सोशल डिस्टेंसिंग, दूसरा साबुन से बार-बार हाथ धोना। इसके लिए झाबुआ के आदिवासी बच्चों ने कबाड़ से जुगाड़ तैयार कर अनोखा प्रयोग किया है।

यहां बात हम झाबुआ के मेघनगर विकासखंड के गोपालपुरा गांव की कर रहे हैं। यहां के लोगों ने कोरोना से बचने के लिए अपने स्तर पर इंतजाम किए हैं और यह जिम्मेदारी संभाली है यहां के बच्चों ने। इन बच्चों ने एक नए तरह का आविष्कार किया है। उन्होंने जगह-जगह हैंड वाशिंग स्टेशन तैयार किया है जो अनोखे तरह का है। दो तरफ जहां डंडे लगाए गए हैं और उन्हें एक डोरी से जोड़ा गया है, तो बीच में पानी की प्लास्टिक की दो बोतल फंसाई गई हैं। एक बोतल में साबुन का पानी है तो दूसरे में सादा पानी है। इन बोतलों को जमीन पर एक ऐसे पैडिल.. जैसा कि कार का एक्सिलेटर या ब्रेक का होता है ठीक उसी तरह के पैडिल से जोड़ा गया है, जिसको दबाते ही बोतल का वह हिस्सा नीचे की तरफ आ जाता है, जिससे साबुन का पानी अथवा सादा पानी नीचे गिरने लगता है। उससे हाथ धोए जा सकते हैं, ऐसा करने से जहां साबुन कम खर्च हो रही है वहीं पानी भी बर्बाद होने से बच रहा है।

गोपालपुरा की शीला डामोर बताती हैं कि उन लोगों ने कबाड़ से जुगाड़ करके यह हैंड वाशिंग स्टैंड बनाया है। गांव में जगह-जगह यह स्टैंड बनाए गए हैं। साथ ही घरों के बाहर भी स्टैंड तैयार किए गए हैं ताकि लोग घर के भीतर जाने से पहले साबुन और पानी से हाथ धोएं।

इसी गांव के बबलू डामोर, पिंकी बारिया, सुनील, ज्योति बारिया, संजू डामोर, राजू सहित अन्य बच्चों ने कबाड़ से जुगाड़ तैयार किया है और वे कोरोना के खिलाफ जारी जंग में बड़ा हथियार बनाने में कामयाब हुए हैं।

बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ के साथ मिलकर वसुधा विकास संस्थान ने इस इलाके के गांव-गांव में मांदल टोली बनाए हुए हैं। इस मांदल टोली में बच्चे होते हैं और वे अपने क्षेत्र में जनजागृति लाने का काम करने के साथ कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई भी लड़ते हैं।

वसुधा विकास संस्थान की गायत्री परमार ने कहा, “बच्चे जागरूक हैं और अपने हकों को बेहतर तरीके से जानते हैं। उन्हें इस बात का पता है कि कोरोना जैसी बीमारी से कैसे लड़ा जा सकता है और यही कारण है कि बच्चों ने जगह-जगह से खाली पानी की बोतलें जोड़कर हैंड वाशिंग स्टैंड तैयार किए हैं। इसमें कोई लागत नहीं आई और खर्च भी कम हो रहा है, साथ ही कोरोनावायरस की रोकथाम में भी सफलता मिल रही है।”

मध्य प्रदेश बाल आयोग चयन समिति के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता मनीष राजपूत ने कहा, “झाबुआ के मेघनगर के आदिवासी बच्चों में अद्भुत प्रतिभा है और वे तरह-तरह के प्रयोग करते आ रहे हैं। कोरोना के खिलाफ जहां उन्होंने कबाड़ से जुगाड़ तैयार किया है, तो वहीं यह बच्चे अपने गांव के प्रति भी सजग और जागरूक हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “इन बच्चों ने इलाके में बाल विवाह के खिलाफ मुहिम चला रखी है, खुले में शौच पर बंदिश लगा रखी है और अन्य कुरीतियों के खिलाफ उनका अभियान जारी है। कहने के लिए तो यह बच्चे हैं, मगर समाज के जागरूक प्रतिनिधि के तौर पर सामने आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

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