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उरी और पुलवामा पर हुई सर्वदलीय बैठक से इस बार की मीटिंग क्यों अहम है?

नई दिल्ली| चीन के हमले के दौरान लद्दाख की गलवान घाटी में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने पर उठी आवाजों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को सर्वदलीय बैठक बुलाई है।

शाम पांच बजे से होने वाली इस वर्चुअल मीटिंग में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को बुलाया गया है। माना जा रहा है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से विपक्ष को चीन सीमा पर जारी तनाव के कारणों और इससे निपटने के प्रयासों के बारे में जानकारी दी जाएगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने यह बैठक ऐसे समय बुलाई है, जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने चीन से सीमा विवाद पर सरकार से स्थिति साफ करने की बात कही है। विपक्ष, सरकार से खुद को भरोसे में लेने की बात भी कहता रहा है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी कई मौकों पर सरकार से इस मसले पर पारदर्शिता बरतने की अपील कर चुके हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी इस बैठक के जरिए विपक्ष की ओर से उठाए जाने वाले सारे सवालों का जवाब दे सकते हैं। ताकि चीन से विवाद के मसले पर किसी तरह का किसी को भ्रम न हो।

इस बार की बैठक अलग है

देश की सीमाओं की सुरक्षा को लेकर खड़ी हुई चुनौती के मसले पर पिछले चार वर्षो में यह तीसरी बार सर्वदलीय बैठक होने जा रही है। 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में हुए आतंकी हमले के दो दिन बाद ही केंद्र सरकार ने 16 फरवरी को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। तब गृहमंत्री की हैसियत से राजनाथ सिंह ने इस बैठक की अध्यक्षता की थी। पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे।

वहीं, इससे पहले 18 सितंबर 2016 को कश्मीर के उरी में सेना के कैंप पर भीषण आतंकी हमला हुआ था। दो दशक में पहली बार हुए इस तरह के आतंकी हमले में 18 जवानों के शहीद होने पर भी देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। तब भी सर्वदलीय बैठक हुई थी। इस बैठक की अध्यक्षता भी तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की थी। खास बात है कि पुलवामा पर सर्वदलीय बैठक जवाबी कार्रवाई एयर स्ट्राइक से पहले हुई थी, जबकि उरी हमले पर हुई यह बैठक 28 सितंबर 2016 को हुई सर्जिकल स्ट्राइक के एक दिन बाद 29 सितंबर को हुई थी।

मगर, इस बार चीन से टकराव के बीच बुलाई गई सर्वदलीय बैठक की अहम बात है कि इसे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संबोधित करेंगे। सूत्रों का कहना है कि 1962 के चीन युद्ध के बाद यह पहला मामला है, जब सीमा पर ज्यादा संख्या में 20 सैनिक शहीद हुए हैं। इससे पहले 1975 में एलएसी पर हुई फायरिंग में 4 जवान मारे गए थे। ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा यह बेहद अहम मामला है। सरकार, विपक्ष को भी भरोसे में लेकर उसकी शंकाओं का समाधान करना चाहती है। चीन से बड़ी चुनौती होने की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद अहम बैठकों की कमान संभाले हुए हैं। यही वजह है कि इस बार की सर्वदलीय बैठक खुद प्रधानमंत्री लेंगे। जबकि उरी और पुलवामा की घटना के बाद तत्कालीन गृहमंत्री ने विपक्ष के नेताओं को संबोधित किया था।

–आईएएनएस

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