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कमिश्नर की वर्दी पर लागा लालकिले का दाग

किसानों में घुसे आतंकियों को पकड़ा क्यों नहीं।
मातहतों और लोगों की जान को खतरे में डाला।

इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली पुलिस को मालूम था कि किसान आंदोलन पर आतंकवादियों/ मिलिटेंट का कब्जा हो गया है। यह गंभीर संवेदनशील सूचना मिलने के बावजूद पुलिस ने ट्रैक्टर मार्च की अनुमति रद्द नहीं की। इससे साफ जाहिर होता हैं कि लालकिले पर कुछ किसानों द्वारा हमला, झंडा फहराने के लिए पूरी तरह पुलिस कमिश्नर दोषी है। इससे यह भी पता चलता है कि पुलिस कमिश्नर ने दिल्ली के लोगों की ही नहीं अपने मातहत पुलिस वालों की जान को भी खतरे में डालने का काम किया है। हालांकि यह भी सच्चाई है कि बिना गृहमंत्री की अनुमति के पुलिस कमिश्नर अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकते थे। इसलिए गृहमंत्री अमित शाह भी जिम्मेदार हैं।
दिल्ली पुलिस के एडहॉक कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने 27 जनवरी की शाम को मीडिया को जो जानकारी दी उससे ही साफ पता चल जाता है कि दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था और पुलिस बल कितने “काबिल” कमिश्नर के हाथों में है।
आतंकवादियों की मंशा साफ ,पुलिस की नहीं –
पुलिस कमिश्नर ने बताया कि 25 जनवरी की देर शाम को उन्हें ये समझ आया कि वे (किसान) अपने वायदे से मुकर रहे हैं। जो आतंकवादी और आक्रामक लोग (एगरैसिव और मिलिटेंट एलिमेंट्स) उनमें थे उनको उन्होंने आगे कर दिया है। मंच पर भी उनका कब्जा हो गया है। भड़काऊ भाषण दिए गए हैं। इससे उनकी मंशा शुरू में ही समझ मेंं आ गई। फिर भी पुलिस ने संयम से काम लिया। जो हिंसा हुई वह तय शर्तो का पालन न करने के कारण हुई। इसमें सभी किसान नेता शामिल रहे हैं। पुलिस ने इस दौरान संयम बरतते हुए आंसूगैस का ही इस्तेमाल किया।
नेताओं ने विश्वासघात किया-
पुलिस कमिश्नर ने कहा कि किसान नेताओं ने एग्रीमेंट का पालन नहीं कर विश्वासघात किया है और जो भी कानूनी कार्रवाई बनती है उनके खिलाफ की जाएगी।
कमिश्नर की काबीलियत पर सवाल-
पुलिस कमिश्नर के इस खुलासे से कमिश्नर की काबिलियत और भूमिका पर ही सवालिया  निशान लग जाते हैं। सबसे पहला तो यह कि जब यह पता चल गया था कि आंदोलन का नेतृत्व मिलिटेंट के हाथों में चला गया है तो पुलिस ने ट्रैक्टर परेड को रद्द करने की तुरंत घोषणा क्यों नहीं की।
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहां थे-
वहां मौजूद मिलिटेंट को पकड़ने के लिए कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। पुलिस के स्पेशल सेल में तो वीरता पदक विजेता ऐसे कई ‘बहादुर’ अफसरों की भरमार है जो चुटकियों में आतंकवादियों का भी एनकाउंटर करने के स्पेशलिस्ट माने जाते हैं। इसके बावजूद भी अगर पुलिस खुद सक्षम नहीं थी तो मिलिटेंट को पकड़ने के लिए एनएसजी की मदद ले सकते थे। कौन-कौन से आतंकवादी वहां मौजूद थे उनके नाम तक भी कमिश्नर ने नहीं बताए हैं। मिलिटेंट कोई नेता तो नहीं होता जिसका कि नाम उजागर करने से पुलिस कमिश्नर को डर लगता। मिलिटेंट का नाम तो ढिंढोरा पीट कर बताया जाता हैं।
किसानों में घुसे आतंकवादियों की फ़ोटो जारी हो- 
आंदोलन वाले स्थानों पर पुलिस के अलावा खुफिया एजेंसियों के अफसर भी मौजूद रहते हैं। इसके अलावा मीडिया का भी वहां जमावड़ा रहता हैं। इन सभी के पास वहां के वीडियो मौजूद थे। पुलिस को जब यह मालूम चल गया था कि वहां मिलिटेंट मंच पर भी मौजूद थे। तो कमिश्नर को उन मिलिटेंट की फोटो और वीडियो भी जारी करनी चाहिए थी जिससे कमिश्नर की बात आसानी से सही साबित हो जाती। लेकिन कमिश्नर ने मिलिटेंट की फोटो तो क्या उनके नाम तक नहीं बताए। इससे कमिश्नर के दावे पर सवालिया निशान लग जाता है।
मातहतों और लोगों की जान से खिलवाड़-
यदि कमिश्नर की बात पर यकीन भी कर लें तो सबसे बड़ा सवाल यह ही उठता है कि यह  जानते हुए भी कि आंदोलन मिलिटेंट के हाथों में चला गया उन्होंने परेड को रद्द न कर अपने पुलिस वालों और आम लोगों की जान को जान बूझकर खतरे में क्यों डाल दिया। एक तरह से कमिश्नर की इस हरकत के कारण ही वह कथित मिलिटेंट लालकिले पर कब्जा कर झंडा फहराने में सफल हो गए। वैसे झंडा फहराने वालों में पंजाब का फिल्म कलाकार दीप सिद्दू भी शामिल था। दीप सिद्दू की प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, भाजपा सांसद सन्नी देओल और हेमामालिनी के साथ की तस्वींरें वायरल हुई हैं।
कमिश्नर के ऐसे गलत निर्णय के कारण 394 पुलिस वाले हिंसा के शिकार हो गए।
कमिश्नर ने भी विश्वासघात किया ? –
कमिश्नर ने कहा कि किसान नेताओं ने विश्वासघात किया लेकिन अब तो लगता है कि पुलिस कमिश्नर ने भी अपनी वर्दी और उस शपथ के साथ विश्वासघात किया है जो आईपीएस अफसर बनते समय उन्होंने भी ली थी। कमिश्नर का सबसे पहला कर्तव्य तो आतंकवादियों को पकड़ने का होना चाहिए था।
यह तो शुकर हैं कि जिन्हें कमिश्नर आतंकवादी या मिलिटेंट बता रहे हैं वह कोई बड़ा खून खराबा किए बिना वापस चले गए। वरना कमिश्नर ने तो ऐसा गैर पेशेवर काम कर दिया था कि दिल्ली में न जाने क्या हो जाता।
लालकिले जाने की बात भी मालूम थी-
पुलिस ने चंद सेकंड का एक संपादित वीडियो जारी किया जिसमें किसान नेता राकेश टिकैत कह रहा है कि वह लालकिले से इंडिया गेट तक परेड निकालेंगे।
अब इस पर भी कमिश्नर की काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता हैं। जब कमिश्नर के पास पहले से टिकैत के बारे मे यह जानकारी थी तो सबसे पहली बात तो यह कि उन्होंने टिकैत के खिलाफ पहले ही कार्रवाई क्यों नहीं की। दूसरा जब लालकिला जाने की बात पता चल ही गई थी तो लालकिले पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी क्यों नहीं की गई।
पुलिस को चुनौती देकर घुसे-
किसान नेता सतनाम पन्नू ने 25 जनवरी को पुलिस अफसरों के सामने और मंच से भी खुलेआम घोषणा की थी कि वह तो रिंग रोड पर ही परेड करेंगे।
कमिश्नर के खिलाफ कार्रवाई –
इन सब बातों से साफ पता चलता है कि पुलिस कमिश्नर ने जानबूझकर ऐसा काम किया जोकि आपराधिक लापरवाही की श्रेणी में भी आ सकता है।
किसान नेताओं के खिलाफ तो विश्वासघात और अपराध की अन्य धाराओं के तहत पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर ही दिया है। लेकिन पुलिस कमिश्नर ने जो अक्षम्य अपराध किया उसके खिलाफ भला कार्रवाई कौन करेगा ?
आंसूगैस ही नहीं लाठीचार्ज-
पुलिस कमिश्नर ने कहा कि पुलिस ने संयम रखा और सिर्फ आंसूगैस का इस्तेमाल किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे अनेक वायरल वीडियो मीडिया में सामने आए हैं  जिनमे साफ पता चलता है कि जहां पर किसान कम संख्या में थे वहां पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाई। दूसरी ओर जहां पुलिस कम थी वहां किसानों ने उन पर हमला किया। लालकिले पर किसानों की संख्या बहुत ज्यादा थी इसलिए पुलिस चुपचाप बैठी रही। इसी लिए किसान लालकिले पर कब्जा कर झंडा फहराने में सफल हो गए। पुलिस कमिश्नर ने यदि अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन किया होता तो लालकिले की शर्मनाक घटना नहीं होती।

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