नई दिल्ली:आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए ) ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय व केंद्र सरकार से मांग की है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कोरोना संक्रमण से मरने वाले सभी शिक्षकों को तीन करोड़ रुपये व परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर रोजगार दिए जाने की मांग की है । उन्होंने बताया है कि मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों की है ।उनका कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय व उससे संबद्ध कॉलेजो में पढ़ाने वाले 50 से अधिक शिक्षकों की अभी तक कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो चुकी है। इनमें लगभग 28 स्थायी शिक्षक , 16 सेवानिवृत्त शिक्षक व 4 एडहॉक टीचर्स शामिल है ।
डीटीए के प्रभारी डॉ. हंसराज ‘सुमन ‘ ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कोरोना संक्रमण से मरने वालों में कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रोफेसर है। इनमें प्रोफेसर विनय गुप्ता ( फिजिक्स डिपार्टमेंट ) प्रोफेसर वीणा कुकरेजा ( राजनीति विज्ञान विभाग ) प्रोफेसर प्रतीक चौधरी ( संगीत विभाग ) प्रोफेसर एस के गुप्ता ( विधि संकाय ) के अलावा सेवानिवृत्त शिक्षकों में डॉ. नरेंद्र कोहली ,डॉ. नरेंद्र मोहन ,डॉ. के. डी. शर्मा प्रोफेसर भिक्षु सत्यपाल ,डॉ.एस.एस. राणा ,प्रोफेसर देबू चौधरी डॉ. रमेश उपाध्याय के अलावा राजधानी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. बी. एस. यादव आदि शिक्षक शामिल है।
इसके अलावा डॉ. सुमन ने बताया है कि कॉलेजों में भी अनेक प्रतिभावान शिक्षकों को कोरोना ने ग्रास बना लिया उनमें डॉ. विक्रम सिंह ( देशबंधु कॉलेज ) डॉ. सज्जाद मेहंदी हुसैनी ( सत्यवती कॉलेज ) डॉ.राकेश गुप्ता ( इंदिरा गांधी फिजिकल कॉलेज ) डॉ. देवेंद्र कुमार ( रामलाल आनंद कॉलेज ) डॉ. रविभूषण प्रसाद ( आर्यभट्ट कॉलेज ) श्री चंद्र शेखर ( देशबंधु कॉलेज )डॉ. धर्मेंद्र मल्लिक ( देशबंधु कॉलेज ) व राजश्री कलिता ( श्यामलाल कॉलेज ) डॉ. बुरहान शेख ( जाकिर हुसैन कॉलेज ) आदि है।
डॉ. सुमन ने बताया है कि फरवरी/मार्च में कोरोना से पूर्व यदि शिक्षकों को अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो जाती तोकुछ शिक्षकों को अवश्य बचाया जा सकता था ।उनका कहना है कि जिस तरह से 20 अप्रैल और 7 मई तक लोगों ने बेहद डरावना मंजर झेला है।बाजार में जिस तरह से ऑक्सीजन ,वेंटिलेटर ,चुनिंदा दवाइयां की उपलब्धता बाध्य हो गई इससे लोगों में असंतोष बढ़ गया।यदि समय पर सुविधाएं उपलब्ध हो जाती तो कुछ शिक्षकों को बचाया जा सकता था। इनमें हमारे कुछ युवा शिक्षक जिनकी उम्र 35से 45 के बीच स्थायी ,अस्थायी और गैर – शैक्षिक कर्मचारियों को जिन्हें समय रहते मेडिकल सुविधा मिल जाती तो आज वे अपने छोटे-छोटे बच्चों और परिवार के साथ होते। वे जिन्हें अभी परिवारजनों की जिम्मेदारी निभाने थी अकेले आर्थिक स्थिति से गुजर रहे थे ऐसे में उनका चले जाना परिवार के सामने आर्थिक संकट उपस्थित हो गया है।
डॉ. सुमन ने बताया है कि कोरोना का यह समय जिस तरह से विश्वविद्यालयों के शिक्षकों पर मंडरा रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय ,जेएनयू ,जामिया मिल्लिया इस्लामिया ,बीएचयू व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आदि में एक के बाद एक हमारे शिक्षक साथी साथ छोड़कर जा रहे हैं। उनका कहना है कि कई सेवानिवृत्त शिक्षक जिनका राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लेखन के क्षेत्र में नाम था उनको भी कोरोना ने लील लिया। उन्होंने कोरोना संक्रमण के दौरान हुई शिक्षकों की मृत्यु शिक्षकों के परिजनों को तीन करोड़ रुपये सहायता राशि देने की मांग करते हुए परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर रोजगार देने की मांग दोहराई है ।
डीयू से मांग- -डॉ. सुमन ने कोरोना काल के दौरान जिन शिक्षकों की मृत्यु हुई है उनके परिवार को टीचर्स वेलफेयर फंड से स्थायी शिक्षकों की भांति आर्थिक मदद मुहैया कराने की मांग की है ।उनका कहना है कि जो राशि स्थायी शिक्षकों को दी जाती है उतनी ही राशि एडहॉक टीचर्स को भी दी जाए ,टीचर्स–टीचर्स में भेदभाव नहीं किया जाए ।उनका कहना है कि वेलफेयर फंड से 5 से 10 लाख रुपये दिए जाते हैं ,यह धनराशि बहुत कम है इसे बढ़ाया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि यदि फंड में राशि कम है तो शिक्षकों से एक दिन का वेतन लिया जा सकता है।
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