डॉ. वेदप्रताप वैदिक
सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. फारुक अब्दुल्ला के मामले में जो फैसला दिया है, वह देश में बोलने की आजादी को बुलंद करेगा। यदि किसी व्यक्ति को किसी नेता या साधारण आदमी की किसी बात पर आपत्ति हो तो वह दंड संहिता की धारा 124ए का सहारा लेकर उस पर देशद्रोह का मुकदमा चला सकता है। ऐसा ही मुकदमा फारुक अब्दुल्ला पर दो लोगों ने चला दिया। उनके वकील ने फारुक पर आरोप लगाया कि उन्होंने धारा 370 को वापस लाने के लिए चीन और पाकिस्तान की मदद लेने की बात कही है और भारतीय नेताओं को ललकारा है कि क्या कश्मीर तुम्हारे बाप का है ? याचिकाकर्ताओं का वकील अदालत के सामने फारुक के बयान को ज्यों का त्यों पेश नहीं कर सका लेकिन उसने अपने तर्क का आधार बनाया एक भाजपा-प्रवक्ता के टीवी पर दिए गए बयान को ! फारुक अब्दुल्ला ने धारा 370 को हटाने का कड़ा विरोध जरुर किया था लेकिन उन्होंने और उनकी पार्टी ने उन पर लगे आरोप को निराधार बताया। अदालत ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति सरकार के विरुद्ध कुछ बोलता है तो उसे देशद्रोह की संज्ञा देना अनुचित है।
इसी तरह के मामलों में कंगना राणावत और दिशा रवि नामक दो महिलाओं को भी फंसा दिया गया था। यह ठीक है कि आप फारुक अब्दुल्ला, राहुल गांधी या दिशा रवि जैसे लोगों के कथनों से बिल्कुल असहमत हों और वे सचमुच आक्रामक और निराधार भी हों तो भी उन्हें आप देशद्रोह की संज्ञा कैसे दे सकते हैं ? उनके अटपटे बयानों से भारत का बाल भी बांका नहीं होता है बल्कि वे अपनी छवि बिगाड़ लेते हैं। जहां तक फारुक अब्दुल्ला का सवाल है, उनकी भारत-भक्ति पर संदेह करना बिल्कुल अनुचित है। वे बहुत भावुक व्यक्ति हैं।
मैं उनके पिता शेख अब्दुल्लाजी को भी जानता रहा हूं और उनको भी ! देश में कई मुसलमान कवि रामभक्त और कृष्णभक्त हुए हैं लेकिन आपने क्या कभी किसी मुसलमान नेता को रामभजन गाते हुए सुना है ? ऐसे फारुक अब्दुल्ला पर देशद्रोह का आरोप लगाना और उन्हें संसद से निकालने की मांग करना बचकाना गुस्सा ही माना जाएगा।
अब जरूरी यह है कि दंड संहिता की धारा 124ए का दुरुपयोग तत्काल बंद हो। 1974 के पहले इस अपराध को सिर्फ असंज्ञेय (नॉन—काग्जिनेबल) माना जाता था याने सिर्फ सरकार ही मुकदमा चला सकती थी, वह भी खोजबीन और प्रमाण जुटाने के बाद और हिंसा होने की आशंका हो तब ही। यह संशोधन अब जरूरी है। फारुक अब्दुल्ला पर यह मुकदमा किसी रजत शर्मा (प्रसिद्ध टीवी महानायक नहीं) ने चलाया है। ऐसे फर्जी मामलों में 2019 में 96 लोग गिरफ्तार हुए लेकिन उनमें से सिर्फ 2 लोगों को सजा हुई। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने इन दो मुकदमाबाजों पर 50 हजार रु. का जुर्माना ठोक दिया है।
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