नई दिल्ली :एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार और भारत में चीनी दूतावास ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) को फंडिंग किया है। सोनिया गांधी आरजीएफ की अध्यक्ष हैं और इसके बोर्ड में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी शामिल हैं।
राजीव गांधी फाउंडेशन की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2005-06 में राजीव गांधी फाउंडेशन को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार और चीनी दूतावास से दो अलग-अलग दानकतार्ओं के रूप में दान (डोनेशन) मिला। चीनी दूतावास को सामान्य दाताओं की सूची में रखा गया है।
संपर्क करने पर पूर्व वित्त मंत्री और आरजीएफ बोर्ड के सदस्य पी. चिदंबरम ने आईएएनएस को बताया, “आपको यह प्रश्न मुख्य कार्यकारी से करना चाहिए।”
कुछ अनुमानों के अनुसार, 2004 से 2006 के बीच दान 20 लाख डॉलर और 2006 से 2013 के बीच 90 लाख डॉलर था।
राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्परेरी स्टडीज (आरजीआईसीएस) एक थिंक-टैंक के रूप में कार्य करता है और समकालीन मुद्दों पर व्यापक और प्रासंगिक अनुसंधान करता है।
आरजीएफ की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2009 में आरजीआईसीएस फेलो मोहम्मद साकिब ने पूर्णचंद्र राव के साथ मिलकर ‘भारत-चीन: मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए)’ को लेकर एक अध्ययन किया था।
अध्ययन का मुख्य उद्देश्य भारत और चीन के बीच एक एफटीए की बेहतर समझ हासिल करना, विभिन्न व्यापार मुद्दों का विश्लेषण करना और पहचान करना था कि इस तरह के समझौते से कौन लाभ प्राप्त कर सकता है और किसे नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था की दक्षता के कारण सभी व्यापार आयामों में अधिक लाभकारी होगा।
अध्ययन में कहा गया, “प्रतिस्पर्धा और पूरकताओं के प्रदर्शन को संतुलित करने के लिए भारत को अपनी वस्तुगत संरचना में सुधार करनी की बहुत आवश्यकता है।”
अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि भारत को अपने उत्पादों में विविधता लाने की आवश्यकता है। अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला, “क्षेत्रीय और मुक्त व्यापार समझौतों में हमेशा हारने वाले और लाभ लेने वाले होते हैं। भारत और चीन एक एफटीए के माध्यम से लाभ और हानि को संतुलित कर सकते हैं।”
भारत और चीन के बीच एक एफटीए की वकालत करने वाले अध्ययन में कहा गया, “इसलिए दोनों सरकारों को एफटीए वार्ता में प्रवेश करने का निर्णय लेना चाहिए। भारत और चीन के बीच प्रस्तावित एफटीए व्यवहार्य, वांछनीय और पारस्परिक रूप से लाभकारी होगा। भारत और चीन के बीच एफटीए व्यापक भी होना चाहिए, जिसमें माल, सेवाओं, निवेशों और पूंजी का मुक्त प्रवाह होना चाहिए।”
इस अध्ययन में एफटीए को दोनों ही देशों के लिए फायदेमंद बताया गया।
जून 2010 में इसी तरह का एक और अध्ययन किया गया था। आरजीआईसीएस के शोधकतार्ओं ने एक संभावित एफटीए के माध्यम से भारत-चीन व्यापार क्षेत्र के संबंधों पर एक विस्तृत अध्ययन किया।
यह अध्ययन 2009-10 के दौरान इससे पहले किए गए कार्य पर ही आधारित था, जिसमें आरजीआईसीएस फेलो मोहम्मद साकिब ने पूर्णचंद्र राव के साथ एक संभावित भारत-चीन एफटीए का अध्ययन किया था।
परियोजना की 2010-11 की अवधि के दौरान शोधकतार्ओं ने व्यापार और निवेश उदारीकरण सुविधाओं को बढ़ावा देकर सहकारी उपायों की पहचान करने, एफटीए को बेहतर ढंग से समझने और भविष्य की संभावनाओं का पूवार्नुमान लगाने के लिए भारत और चीन के बीच व्यापार के रुझान की जांच की।
अध्ययन में पाया गया कि श्रम अधिशेष के तुलनात्मक लाभ के कारण चीन भारत की तुलना में एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति के रूप में विश्व अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से एकीकृत हो गया है। लेकिन अध्ययन ने यह भी प्रस्ताव दिया कि एक एफटीए द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में मदद करेगा और माल, सेवाओं, निवेश और पूंजी के मुक्त प्रवाह से वास्तव में चीन के मुकाबले भारत के व्यापार क्षेत्र को लाभ होगा।
कांग्रेस के आलोचकों का तर्क है कि यह अध्ययन इसे जानने के बावजूद किया गया कि चीन पहले से ही असंतुलित व्यापार से भारत की तुलना में बहुत अधिक लाभान्वित हो रहा है।
कांग्रेस के आलोचक अब आरजीएफ के लिए दान और एफटीएफ के संबंधों की बात कहते हुए उसे घेर रहे हैं। इसके आलोचकों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी के थिंक-टैंक ने चीन के साथ एफटीए की पैरवी की, जिसके बाद 2003-04 और 2013-14 के बीच व्यापार घाटा 33 गुणा बढ़ गया।
इसके अलावा 2008 में कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (एमओयू) का आरजीएफ के साथ संबंध बताते हुए कांग्रेस पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
कांग्रेस के विरोधी मांग कर रहे हैं कि यह समय है कि कांग्रेस पार्टी सीसीपी के साथ हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन पर सफाई पेश करे।
–आईएएनएस
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