अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा की अरुणाचल-यात्रा ने चीन में जो बौखलाहट पैदा की है, वह देखने लायक है। अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खंडू के निमंत्रण पर वे अरुणाचल के तवांग में गए थे, एक सांस्कृतिक समारोह में ! चीन मानता है कि कानूनी तौर पर अरुणाचल प्रदेश उसका है। वह प्रदेश ‘दक्षिणी तिब्बत’ है। भारत ने उस पर कब्जा कर रखा है।
चीन लगभग 90 हजार किमी की भारतीय जमीन को अपनी बताता है। इस प्रदेश में यदि कोई भी विदेशी जाता है तो चीन उस पर आपत्ति करता है जैसे कि कोई उसके क्षेत्र में घुसने की कोशिश कर रहा है। जब दलाई लामा अरुणाचल गए तो चीन ने हंगामा खड़ा कर दिया था। अब अमेरिकी राजदूत गए तो उसने इसे कूटनीतिक मसला बना दिया। 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां गए तो चीन ने उस पर भी आपत्ति खड़ी कर दी। इसके पहले भी चीन ने अरुणाचल के नागरिकों को वीजा देने में भी काफी दांव-पेंच किया था। अरुणाचल के लोगों को जो चीनी वीजा दिया जाता है, वह पारपत्र (पासपोर्ट) पर छापा नहीं जाता है बल्कि उन्हें अलग से एक अनुमति-पत्र दे दिया जाता है।
चीन ने अरुणाचल के नागरिकों के बहिष्कार की भी नीति बना रखी है। चीन की इस नीति के जवाब में मैंने भारत सरकार को सुझाव दिया था कि तिब्बत और सिंक्यांग के क्षेत्रों के बारे में हम भी वही नीति अपनाएं, जो चीन अरुणाचल के बारे में अपनाता है।
अमेरिकी राजदूत की इस अरुणाचल-यात्रा पर चीन ने काफी तीखा बयान जारी किया है। अमेरिका से चल रही उसकी उठा-पटक का गुस्सा वह भारत पर निकाल रहा है। उसका कहना है कि इस तरह की यात्रा से भारत-चीन सीमांत-वार्ता खटाई में पड़ सकती है। इस वार्ता के 19 दौर हो चुके हैं। एक तरफ चीन भारत के साथ अपना व्यापार बढ़ाना चाहता है, भारत में काफी मोटा विनियोग करना चाहता है और ब्रिक्स व शांघाई सहयोग संग में विशेष संबंध बनाना चाहता है और दूसरी तरफ वह इस तरह की गीदड़भभकियों देता है।
चीन के इस दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को अरुणाचल प्रदेश में एक-से-एक बढ़कर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करना चाहिए। रिचर्ड वर्मा की इस अरुणाचल-यात्रा ने इस दूरस्थ भारतीय प्रदेश को सारी दुनिया में प्रसिद्ध कर दिया है।
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