धार (मप्र)| नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर की फितरत है कि वह एक पल को भी बेकार नहीं जाने देतीं। वह कहीं भी रहें, अपने समय का भरपूर सदुपयोग करती हैं, फिर चाहे वह समाज के बीच हों या जेल में।
नर्मदा घाटी के 40 हजार परिवारों का विस्थापन से पहले समुचित पुनर्वास के लिए अनशन के 12वें दिन उठा ली गईं मेधा 15 दिनों से मध्यप्रदेश के धार जिले की जेल में हैं। यहां भी उन्होंने महिलाओं की पाठशाला लगा डाली। वह यहां बंदी महिलाओं को साक्षर होने के गुर बता रही हैं और अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए हमेशा तैयार रहने का सबक भी सिखा रही हैं।
मेधा पाटकर लगभग तीन दशक से नर्मदा बचाओ आंदोलन के जरिए नर्मदा घाटी के लोगों के हित की लड़ाई लड़ती आ रही हैं। इसके लिए उन्हें लाठियां खानी पड़ीं, कई बार जेल जाना पड़ा, मगर उनका अभियान अनवरत जारी है।
मेधा सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने से 192 गांव और एक नगर के 40 हजार परिवारों के डूब में आने के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं, इसलिए सरकार की आंखों में चुभने लगी हैं।
उन्होंने धार के चिखल्दा गांव में 27 जुलाई से बेमियादी अनशन शुरू किया। मेधा के आंदोलन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए पुलिस के जरिए उन्हें सात अगस्त को जबरन अनशन स्थल से उठाकर इंदौर के बॉम्बे अस्पताल ले जाया गया और 9 अगस्त को अस्पताल से छुट्टी होने पर बड़वानी जाते वक्त धार जिले की सीमा में उन्हें तीन सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया, तभी से मेधा धार जेल में हैं। इस बार स्वतंत्रता दिवस भी उन्होंने सलाखों के पीछे उपवास करते हुए मनाया।
जेल में भी मेधा पाटकर की जिंदगी आम दिनों की तरह चल रही है। उनसे मुलाकात करने वाले अमूल्य निधि बताते हैं कि वह हर रोज नियमित रूप से अखबार पढ़ती हैं, उन्हें गांधीवादी विचारों की कुछ पुस्तकें भेजी गई हैं, जिन्हें वह पढ़ती रहती हैं और न्यायालय व सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले आदेशों का अध्ययन का दौर चलता रहता है।
जेल अधीक्षक सतीश कुमार उपाध्याय ने आईएएनएस को बताया कि मेधा पाटकर महिला सेल में हैं। इस बैरक में कुल 50 महिलाएं हैं, जो धार या आसपास के इलाकों की हैं, जिन पर कई मामले दर्ज हैं। इन महिलाओं में कई निरक्षर हैं, जिन्हें मेधा पढ़ाती हैं। जेल की महिला कैदी व विचाराधीन कैदियों के लिए यह एक अलग तरह का अनुभव है।
सूत्रों की मानें तो महिला कैदी मेधा से उनके जीवन और संघर्ष की कहानी सुनने में ज्यादा रुचि ले रही हैं। अधिकांश महिलाएं नर्मदा आंदोलन से परिचित हैं, क्योंकि वह उसी इलाके से आती हैं, जो डूब क्षेत्र में शामिल हैं।
मेधा महिला कैदियों को साक्षर होकर अपने हक की लड़ाई लड़ने का मंत्र तो दे ही रही हैं, साथ ही उन्हें ‘सरकारी दमन’ की कहानी भी बता रही हैं। वह सरकार और औद्योगिक घरानों की सांठगांठ से देश और गरीबों को होने वाले नुकसान का ब्यौरा भी देती हैं।
लंबे अरसे से मेधा के साथ कई आंदोलनों में भूमिका निभाने वाले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव बादल सरोज का कहना है कि मेधा कही भी रहें, उनका सामाजिक अभियान जारी रहता है। जेल में भी वह महिलाओं को जागरूक करने में लगी होंगी, इसमें कोई संदेह नहीं।
बकौल सरोज, मेधा उन महिलाओं में हैं जो जल्दी घुलमिल जाती हैं और अपनी बात समझाने में सफल होती हैं। मेधा के बाद जो महिलाएं जेल से छूटकर आएंगी वे आंदोलन का हिस्सा बनेंगी, इस बात को नकारा नहीं जा सकता।
बादल सरोज आजादी के आंदोलन के दौर की चर्चा करते हुए कहते हैं कि कई क्रांतिकारियों को अंडमान और भगत सिंह को लाहौर जेल भेजा गया था। उनके वर्षो तक वहां रहने के कारण कई अपराधी उनसे इतने प्रभावित हुए कि वे भी आजादी के आंदोलन का हिस्सा बन गए, ऐसे में महिला कैदियों की मेधा से प्रभावित होने की संभावना बहुत ज्यादा है।
सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम का कहना है कि मेधा जहां होती हैं, उनका सबसे ज्यादा जोर साफ -सफाई पर होता है। जेल में बंद महिलाओं को भी वह स्वच्छता का पाठ पढ़ा रही हैं। जेल में उनसे मुलाकात के दौरान यह भी पता चला कि वह व्यवस्थित जीवन जीने के तौर तरीके भी महिला कैदियों को सिखा रही हैं।
मेधा पाटकर 9 अगस्त से ही जेल में हैं। बुधवार को जेल में उनके 15 दिन पूरे हो गए। उन पर कई संगीन आरोप लगाकर मामले दर्ज किए गए हैं। सरकार की ओर से शर्त रखी गई है कि उन्हें जेल से तभी छोड़ा जाएगा, अगर वह वादा करें कि फिर नर्मदा घाटी में नहीं जाएंगी, मगर यह शर्त मानने को वह तैयार नहीं हैं।
नर्मदा घाटी के डूब में आने वाले क्षेत्रों में आंदोलन जारी है। आंदोलनकारियों को मेधा की रिहाई का इंतजार है, ताकि आंदोलन को और गति दी जा सके।
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े लोगों ने मेधा की रिहाई के लिए देशभर के संगठनों से शिवराज सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ आंदोलन करने का आह्वान किया है। उनकी बिना शर्त रिहाई के लिए नर्मदा घाटी के गांव-गांव से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठियां भी लिखी जा रही हैं।
लोग समझने लगे हैं कि मध्यप्रदेश में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात को फायदा पहुंचाने के लिए बढ़ाई जा रही है। नर्मदा घाटी के 192 गांवों के लोगों ने चिट्ठी भेजकर प्रधानमंत्री से सवाल किए हैं कि क्या बिना पुनर्वास नर्मदा घाटी के लाखों लोगों को डुबाया जाएगा? क्या विकास की कीमत लाखों लोगों की जिंदगी से लगाई जाएगी? क्या लाखों की संख्या में जो पेड़ और मवेशी डूबेंगे, वो आपको मंजूर होगा?
–आईएएनएस
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