नई दिल्ली(आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो मामले में दोषियों की जल्द रिहाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति बीवी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों को रिहा करने के छूट आदेश की वैधता के सवाल पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
पीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को 16 अक्टूबर तक दोषियों की रिहाई से संबंधित ट्रांसलेशन के साथ रिकॉर्ड दाखिल करने का आदेश दिया।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने अपने जवाबी तर्क में कहा कि मामले में शीर्ष अदालत का फैसला संविधान की अंतरात्मा को प्रतिबिंबित करेगा।
इंदिरा जयसिंह ने दोहराया कि छूट के आदेश ‘कानून की दृष्टि से खराब’ हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शीघ्र रिहाई के लिए आवेदन का निर्धारण करने में शीर्ष अदालत द्वारा बताए गए सिद्धांतों को लागू किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बिलकिस बानो के खिलाफ किया गया अपराध ‘प्रेरित’ था और देश की अंतरात्मा शीर्ष अदालत के फैसले में प्रतिबिंबित होगी।
पिछली सुनवाई में उन्होंने दलील दी थी कि 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो के खिलाफ किया गया अपराध धर्म के आधार पर किया गया ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ था।
अपनी जवाबी दलीलों में वकील वृंदा ग्रोवर ने जुर्माने का भुगतान न करने के बावजूद गुजरात सरकार द्वारा दोषियों की रिहाई पर सवाल उठाया, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने पीड़िता को मुआवजे के रूप में भुगतान करने का आदेश दिया था।
उन्होंने तर्क दिया कि जब तक जुर्माना अदा नहीं किया जाता या जुर्माना अदा न करने पर सजा नहीं भुगत ली जाती, तब तक दोषी छूट पर बाहर नहीं आ सकते।
उन्होंने यह भी कहा कि दोषियों को ‘अवैध समयपूर्व रिहाई’ दी गई है।
अंतिम सुनवाई शुरू होने के बाद, दोषियों ने मुंबई में ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और ‘विवाद को कम करने’ के लिए उन पर लगाया गया जुर्माना जमा कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर उनके आवेदन के नतीजे की प्रतीक्षा किए बिना जुर्माना जमा करने पर सवाल उठाया था।
अदालत ने दोषियों से पूछा था, आप अनुमति मांगते हैं और फिर अनुमति प्राप्त किए बिना जमा कर देते हैं?
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा था कि दोषियों ने उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान नहीं किया है और जुर्माना न भरने से सजा माफी का आदेश अवैध हो जाता है।
एक अन्य सुनवाई में, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि उसे इस बात की जांच करने की आवश्यकता होगी कि क्या बिलकिस बानो मामले में दोषियों के सजा माफी आवेदनों को गुजरात सरकार द्वारा कोई तरजीह दी गई थी।
दूसरी ओर दोषियों ने तर्क दिया था कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले छूट आदेशों में न्यायिक आदेश का सार होता है। इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती है।
बता दें कि मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत इनकी रिहाई की अनुमति दी थी। दोषियों ने जेल में 15 साल की सजा काटी थी।
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