नई दिल्ली| सिराथू विधानसभा से विधायक का चुनाव हारने के बावजूद एक बार फिर से उत्तर प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बना कर भाजपा आलाकमान ने केशव प्रसाद मौर्य का कद बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर से यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उनकी नजर में केशव प्रसाद मौर्य आज भी प्रदेश के बड़े नेता और पिछड़ों की सबसे मजबूत आवाज है और एक चुनाव हारने से आलाकमान की नजर में उनका महत्व कम नहीं हो गया है। शुक्रवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में योगी आदित्यनाथ की पिछली सरकार के लगभग दो दर्जन मंत्री दोबारा जगह नहीं हासिल कर पाएं, यहां तक कि पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री के तौर पर काम करने वाले दिनेश शर्मा को भी इस बार सरकार में जगह नहीं मिल पाई। लेकिन केशव प्रसाद मौर्य पूरे दमखम के साथ नई सरकार में भी उपमुख्यमंत्री के तौर पर ही शामिल हुए।
राम मंदिर आंदोलन को राष्ट्रीय धार देने वाले विश्व हिंदू परिषद के दिग्गज नेता अशोक सिंघल के करीबी रहे केशव प्रसाद मौर्य का राजनीतिक सफर भी सिराथू विधानसभा से ही शुरू हुआ था, जब वो 2012 में यहां से पहली बार विधायक बने। 2014 में वो फूलपुर से लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बने। 2016 में मोदी-शाह की जोड़ी ने उन्हें उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया और बतौर प्रदेश अध्यक्ष मौर्य ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 14 वर्षों के वनवास को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई। 2017 में भाजपा गठबंधन ने 325 सीटों के साथ प्रदेश में सरकार बनाई और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उस सरकार में केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
उसी समय से योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के रिश्ते बहुत सहज नहीं रहे, कई बार अलग-अलग तरह की खबरें निकल कर सामने आती रही। ऐसे में 2022 में सिराथू से केशव प्रसाद मौर्य के चुनाव हारने के बाद उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर कई तरह के कयास लगने शुरू हो गए थे। लेकिन योगी मंत्रिमंडल में केशव प्रसाद मौर्य को एक बार फिर से उपमुख्यमंत्री बना कर भाजपा आलाकमान ने यह जता दिया है कि उन्हें केशव प्रसाद मौर्य की क्षमता और लोकप्रियता पर पूरा भरोसा है। मौर्य 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पिछड़ों को भाजपा के साथ बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
–आईएएनएस
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