डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत और चीन के कोर कमांडरों की बैठक में दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाने पर सहमति व्यक्त की है। यह बैठक 10-11 घंटे तक चली। इस बैठक में क्या-क्या बातें तय हुई हैं, यह अभी विस्तार से पता नहीं चला है। कौन कितना पीछे हटेगा, कहां-कहां से हटेगा, हटने के बाद दोनों सेनाओं के बीच कितने दूरी खाली रखी जाएगी और जब दोनों सेना के लोग आपस में बात करेंगे तो वे हथियारबंद होंगे या नहीं, इन सब प्रश्नों के जवाब धीरे-धीरे सबके सामने आ जाएंगे।
एक बात तो यह हुई। दूसरी बात यह हुई कि भारत, रुस और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक ‘इंटरनेट’ पर हुई। इस बैठक में हमारे टीवी चैनलों ने हमारे विदेशमंत्री जयशंकर का भाषण प्रचारित किया। इस भाषण में भी जयशंकर ने चीन पर कोई सीधा हमला नहीं बोला लेकिन यह जरुर कहा कि राष्ट्रों को आपसी संबंधों में अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करना चाहिए। रुस ने पहले ही कह दिया था कि इस त्रिपक्षीय संवाद में कोई भी द्विपक्षीय मामला नहीं उठेगा। यदि जयशंकर उसे उठा देते तो उससे यह संदेश निकलता कि भारत बहुत भड़का हुआ है और वह चीन से टक्कर लेने के लिए कमर कसे हुए हैं। ऐसा नहीं हुआ। शायद कल भी ऐसा नहीं होगा।
हमारे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ऐसी कोई बात शायद ही बोलेंगे, जो चीन पर शाब्दिक हमला माना जाए। वे मास्को गए हैं, दूसरे महायुद्ध में रुस की विजय के 75 वर्षीय समारोह में। वहां चीन के विदेश मंत्री के साथ भी वे कोई कहा-सुनी नहीं करेंगे। शायद उनकी बातचीत तक न हो। इन तीनों घटनाओं से आप क्या नतीजा निकालते हैं ? क्या यह नहीं कि हमारे 20 जवानों की हत्या पर भारत सरकार अपना आपा नहीं खो रही है ? उसका रवैया काफी सधा हुआ है। यह हत्याकांड एक तात्कालिक और स्थानीय फौजी घटना थी। इसमें दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की भूमिका रही होगी, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं।
15 जून की रात वह हत्याकांड हुआ और 16 जून की सुबह दोनों देशों के फौजी अफसर बात करने बैठ गए, फिर हमारे विदेश मंत्री ने चीनी विदेश मंत्री को फोन करने की पहल की, मोदी ने अपने बहुदलीय संवाद में चीन के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला और अब दोनों तरफ के कमांडर बात कर रहे हैं। लेकिन हमारे कुछ नादान एंकर इन सब सकारात्मक कदमों को इतने उत्तेजक ढंग से पेश कर रहे हैं कि एक तो हमारी सीधी-सादी जनता क्रोधित हो रही है और दूसरी तरफ हमारे राजनीतिक दल एक-दूसरे पर मुक्के चला रहे हैं। बेहतर तो यह होगा कि जो बीत गया सो बीत गया, दोनों देश अब आगे की सुध लें।
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