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मी लार्ड ,पांच सितारा होटल में अस्पताल हाजिर है

इंद्र वशिष्ठ
देश भर में कोरोना मरीज अस्पताल/बिस्तर, ऑक्सीजन और दवाओं के बिना तड़प तड़प कर मर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर मंत्रियों, जजों और अन्य वीवीआईपी के लिए सरकारें प्राथमिकता के आधार पर सारी व्यवस्था तुरंत कर देती है। इसका सबसे बड़ा नमूना देश की राजधानी में ही सामने आया है। जिसमें पता चलता है कि सरकार यानी नेताओं की नजर में सिर्फ़ वीवीआईपी, मंत्रियों, जजों और नौकरशाहोंं की जान का मूल्य है और आम लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है।अस्पताल में प्रधानमंत्री, मंत्रियों आदि  के लिए तो कमरे/ बेड रिजर्व रखे ही जाते है। अब
दिल्ली हाईकोर्ट के जजों और उनके परिजनों के इलाज के लिए दिल्ली सरकार ने पांच सितारा अशोक होटल के 100 कमरों को अस्पताल में तब्दील कर दिया है।
जज साहब होटल के सौ कमरे पेश हैं-
दिल्ली सरकार की एसडीएम गीता ग्रोवर ने इस बारे में 25 अप्रैल को आदेश जारी किया। आदेश में बताया गया है कि हाईकोर्ट के जजों, न्यायिक अधिकारियों और उनके परिजनों के लिए कोविड हेल्थ केयर सेंटर बनाने का अनुरोध हाईकोर्ट द्वारा किया गया। जिसके बाद आपदा प्रंबधन एक्ट के तहत मिले अधिकारों का इस्तेमाल करके एसडीएम ने अशोक होटल के सौ कमरों को कोविड हेल्थ सुविधा (अस्पताल) के रुप में तब्दील करने का आदेश जारी किया।
चाणक्य पुरी स्थित प्राइमस अस्पताल के डाक्टरों को जजों और उनके परिजनों के इलाज और देख रेख की जिम्मेदारी सौंपी गई है।  अस्पताल द्वारा डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस का इंतजाम किया जाएगा। होटल द्वारा कमरे, साफ सफाई और भोजन की व्यवस्था की जाएगी। अस्पताल और होटल के बीच समन्वय के लिए एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार मीणा को जिम्मेदारी दी गई हैं। इस आदेश का पालन न करने पर आपदा प्रबंधन एक्ट, महामारी एक्ट और आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई करनी की चेतावनी भी आदेश मेंं दी गई है।
मोदी गुरु, केजरीवाल चेला-
इस मामले से लोगों को साफ समझ लेना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी हो या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दोनों में रत्ती भर भी अंतर नहीं हैं। इन दोनों ढोंगियों में सिर्फ़ इतना ही अंतर है कि मोदी गुरु, तो केजरीवाल चेला है।
मोदी के ढोंग की पराकाष्ठा देखें कि वह बिना मॉस्क लगाए कोरोना नियमों को तोड़ने वाली लाखों लोगों की रैली को संबोधित करते हैं और मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांंफ्रेस में मॉस्क लगाते हैं।
संकट के इस दौर में मोदी कोरोना वैक्सीन के प्रमाण पत्र पर भी अपनी फोटो छाप कर प्रचार कर रहे हैं। कोरोना के संदेश देने के नाम पर केजरीवाल जमकर अपने प्रचार पर पैसा लुटा रहा है।
अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्विटर पर लिखा है कि सब इंसान बराबर हैं।
लेकिन जजों के लिए  होटल में इलाज की  व्यवस्था करने उनका दोहरा चरित्र उजागर हो जाता है।
जनता के टैक्स के पैसों को ये दोनों  सिर्फ़ अपनी छवि चमकाने के लिए लुटा रहे हैं।
संकट के इस दौर में तो कम से कम इन्हें यह सब नहीं करना चाहिए। इस पैसे का सदुपयोग लोगों के इलाज की व्यवस्था में करना चाहिए।
मोदी हो या केजरीवाल कोरोना  इन दोनों की  असलियत मीडिया उजागर नहीं करेगा। इसकी मुख्य वजह इनके द्वारा मीडिया को दिए जाने वाले करोड़ों रुपए के विज्ञापन हैं।
जनता के टैक्स के पैसों को ये दोनों  सिर्फ़ अपनी छवि चमकाने के लिए लुटा रहे हैं।  असलियत यह है कि ज्यादातर जनता तो यह बिल्कुल नहीं चाहती कि विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए लुटाए जाएं।
 कीड़े मकोड़े  –
नेताओं लिए आम आदमी की कीमत कीड़े मकोड़े से ज्यादा कुछ नहीं हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो  जजों के बजाए आम आदमी के लिए होटलों में इलाज का इंतज़ाम करते।
देश का संविधान कहता है कि सब समान है किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है देश मेंं प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, जज, आईएएस और आईपीएस राजाओं की श्रेणी में रह रहे  हैं और आम जनता शूद्र निरीह प्रजा की श्रेणी में है। अगर ऐसा नहीं होता तो जज ,मंत्री अपने लिए इलाज के लिए अलग  सुविधाएं कभी नहीं मांगते। वह भी आम आदमी की तरह इलाज के लिए धक्के खाते।
सब कुछ खत्म हो गया-
आज के दौर में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया सभी का पतन हो चुका है।
मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को पूरी तरह कसूरवार माना और कहा कि उसके खिलाफ हत्या का मामला चलाया जा सकता है।
मद्रास हाईकोर्ट की बात सही है। तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। उसने चुनावी रैली की अनुमति क्यों दी।
 है।  लेकिन सवाल यह उठता है कि चुनाव आयोग ने इतना बड़ा अपराध किया था तो सुप्रीम कोर्ट ने उस समय क्यों अपनी आंखें बंद कर ली थी। सप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोवडे द्वारा खुद मॉस्क और दो गज दूरी के नियम का उल्लंघन किया गया।
सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि चुनाव आयोग हो या कोई अन्य संस्था वह सिर्फ़ कहने को ही स्वतंत्र है वह हमेशा से सरकार की कठपुतली ही रही है।
सिस्टम तो तब सुधरे-
मीडिया को करोड़ों रुपए के विज्ञापन देना बंद कर दिया जाए। जजों, आईएएस ,आईपीएस अफसरों को रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल या किसी अन्य पद पर नियुक्त करना बंद हो जाए तो ही भ्रष्ट और सड़ चुके सिस्टम को सुधारा जा सकता है। नेताओं से भी ज्यादा ये सब जिम्मेदार हैं। इनकी मरते दम तक पद पर रहने के लालच ने देश का बंटाधार कर दिया। पद पाने के लालच में ये नेताओं के दरबारी बन जाते हैं।
नायक नहीं खलनायक है-
सबसे अहम बात लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि नेता सारे एक जैसे ही हैं। इनके लिए आम आदमी की कीमत कीड़े मकोड़े से ज्यादा कुछ नहीं हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो ये जजों के बजाए आम आदमी के लिए होटलों में इलाज का इंतज़ाम करते।
सत्ताधारी बने राजा, प्रजा बेचारी-
देश का संविधान कहता है कि सब नागरिक समान है किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है देश मेंं प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, जज, आईएएस और आईपीएस राजाओं की श्रेणी में हैं और आम जनता शूद्र निरीह प्रजा है। अगर ऐसा नहीं होता तो जज ,मंत्री अपने लिए इलाज की विशेष सुविधाएं कभी नहीं मांगते। वह भी आम आदमी की तरह इलाज के लिए धक्के खाते।
जो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कोरोना के संकट में भी सियासत करे और  लोगों को इलाज तक मुहैया न करा पाए वह तो इंसान कहलाने का भी हकदार नहीं है।
ये कहते हैं कि भारत को विश्व गुरु बनाना है। पहले आप चाल चरित्र और चेहरा तो देख लो। छोटे से देश से ही अपनी तुलना करके देख लो।
 देश छोटा पर चरित्र में बड़ा-
नार्वे की प्रधानमंत्री के जन्मदिन की पार्टी में तेरह लोग मौजूद थे। जो तय संख्या दस से सिर्फ़ तीन ज्यादा थे। लेकिन पुलिस ने कोरोना नियमों का उल्लंघन करने के कारण प्रधानमंत्री पर जुर्माना लगाया। यह है छोटे से देश के प्रधानमंत्री और पुलिस/लोगों का चरित्र।
हमारे यहां प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और मुख्य न्यायाधीश तक नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हैं।
भारत में है किसी आईपीएस की भी इतनी हैसियत की उपरोक्त के चालान करके दिखाए।
दिल्ली में तो पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव और उनके मातहत दर्जनों आईपीएस ही नहीं उनकी पत्नियां तक भी कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।
अतीत को कोसने वाला राजा शुभ नहीं होता।
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को नीतिज्ञान दिया था कि देश राजा के लिए नहीं होता, राजा देश के लिए होता है। और वो राजा कभी अपने देश के लिए शुभ नहीं होता, जो अपने देश के आर्थिक और सामाजिक रोगों के लिए अपने अतीत को उत्तरदायी ठहरा कर संतुष्ट हो जाए। यदि अतीत ने तुम्हें एक निर्बल आर्थिक और सामाजिक ढांचा दिया है तो उसे सुधारों उसे बदलो। क्योंकि अतीत तो यूं भी वर्तमान की कसौटी पर कभी खरा नहीं उतर सकता। क्योंकि यदि अतीत स्वस्थ होता और उसमें देश को प्रगति के मार्ग की ओर ले जाने की शक्ति होती तो फिर परिवर्तन ही क्यों होता।

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