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मुगलों के लिए हिंदुस्तान ‘लूटपाट की जगह’ कभी नहीं रहा : इरा मुखोती

नई दिल्ली: एक ऐसे समय में, जब मुगल साम्राज्य की क्रूरता का बखान करना चलन बन गया है और हर तरफ तत्कालीन मुगल साम्राज्य के प्रति नकारात्मक रुझान देखने को मिल रहे हैं, इसी बीच लेखिका इरा मुखोती की एक नई किताब मुगलों की एक अलग छवि पेश करती है।

इरा मुखोती की नई किताब ‘डॉटर्स ऑफ द सन : एंप्रेसेस, क्वीन्स एंड बेगम्स ऑफ द मुगल अंपायर’ आई है, जिसमें लेखिका का कहना है कि मुगलों के लिए हिंदुस्तान लूटपाट का स्थान कभी नहीं रहा, जैसा कि सियासी फायदे के लिए इस समय प्रचारित किया जा रहा है।

इरा के अनुसार, भारत में मुगलों की महत्वाकांक्षा उनके गौरवशाली पूर्वजों की देन है। लेखिका ने आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में कहा कि फरगना के राजकुमार बाबर ने यह कबूल किया था कि वह उज्बेकिस्तान को कभी नहीं हरा सकता था और इसके बजाय उसने हिंदुस्तान में अपना साम्राज्य खड़ा किया।

इरा ने कहा, “पानीपत की लड़ाई जीतने के बाद उसने अपने अमीरों को आगरा में बसाने के लिए हर शक्ति का उपयोग किया और उनके परिवार वालों, पत्नियों और बच्चों को हिंदुस्तान बुला लिया। बाबर ने हिंदुस्तान को उम्मीद की भूमि के तौर पर देखा। हिंदुस्तान वही जमीन थी जो उसके साम्राज्य के सपनों को पूरा करती। उसके लिए हिंदुस्तान लूटपाट की जगह नहीं रही, जहां से वह धन लूटकर अपने देश ले जाता, क्योंकि बाबर के लिए लौटने लायक कोई स्थान नहीं था।”

उन्होंने कहा, “हमने नादिर शाह, दिल्ली सल्तनत और तुगलकों सहित विभिन्न मुस्लिम शासकों और आक्रमणकारियों के इतिहास को मिला दिया। मैं मुगलों को कीचड़ से निकालने की इच्छुक हूं, ताकि जहां तक संभव हो सके, लोग उनके (मुगलों) जीवन, सपनों, महत्वाकांक्षाओं और प्रतिभाशाली परिवारों के बारे में जान सकें।”

लेखिका ने बाबर के ‘बाबरनामा’, गुलबदन के ‘हुमायूंनामा’ और जहांगीर के ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ का जिक्र करते हुए कहा कि ‘ये प्राथमिक सूत्र हमें मुगलों की वास्तविक प्रेरणा, चिंताओं, महत्वकांक्षाओं और दुखों के बारे में जानने में मदद करते हैं।’

इरा ने अपनी नई किताब में मुगल साम्राज्य का निर्माण करने में अहम भूमिका निभाने वाली महिलाओं का जिक्र किया है। इस क्रम में उन्होंने मुगलों के जीवन के विभिन्न पहुलओं को सामने रखा है, जिसके बारे में दुनिया को कभी नहीं पता था।

उन्होंने कहा, “जब मैं यह किताब लिखने बैठी, तो मेरे जेहन में मुगल महिलाओं के बारे में वही धारणा थी, जो आम जन के मन में होती है कि वे निहायत घरेलू थीं, लेकिन जब मैंने अपना शोध शुरू किया तो मैं यह जानकर हैरान रह गई कि इन महिलाओं का विकास समय के साथ-साथ होता रहा है। मुगलकाल के शुरुआती दिनों में महिलाएं बहुत ही परिवर्तनशील और साहसिक थीं, जिस वजह से हरम और जनाना को लेकर मेरी पूर्वधारणाओं में काफी बदलाव हुआ। समय के साथ मुगल महिलाएं इतनी प्रगतिशील होती चली गईं कि जब अकबर ने फतेहपुर सीकरी की ऊंची-ऊंची दीवारें बनाई तो महिलाओं ने एक दायरे में बंधे रहने से इनकार कर दिया और हज यात्राओं पर जाना शुरू कर दिया।”

इरा का कहना है कि मुगल महिलाओं ने राजनीति, कला और वास्तुकला तक को प्रभावित दिया था।

उन्होंने कहा, “प्रभावशाली महिलाएं मध्य एशिया की घुमंतू संस्कृति का हिस्सा थीं, इसलिए किसी एक महिला के लिए महत्वाकांक्षी होना असामान्य नहीं रहा। यह महत्वकांक्षा, यह आजादी और यह शक्ति जो कई महिलाओं ने दिखाई, ये सभी मेरे लिए खोज थीं।”

उन्होंने कहा कि शुरुआत में हरम की अवधारणा ने उन्हें असहज कर दिया था। वासना से ग्रस्त सुल्तान और नग्न अवस्था में महिलाएं- ये धारणाएं ही मेरे लिए काफी असहज करने वाली थीं।

इरा ने कहा, “यह औपनिवेशिक धारणा थी। 18वीं और 19वीं शताब्दियों में पश्चिमी यात्रियों ने भारत में रह रहे मुगलों के बारे में कई कल्पनाएं लिखीं, लेकिन वे इसे समझ नहीं सके। यदि मैं इसे अधिक गहराई से देखती हूं तो अहसास होता है कि जनाना आमतौर पर पारंपरिक संयुक्त परिवार जैसा था। बाबर और हुमायूं के समय में यह ऐसा था, लेकिन अकबर के बाद इसमें विस्तार होता चला गया। यह एक छोटे शहर जैसा था, जहां महिलाएं ही हर पेशे में होती थीं, प्रशासन से लेकर सेना और मनोरंजन तक।”

इरा कहती हैं, “यदि आप उदाहण के लिए ब्रिटिश राजशाही के बारे में सोचें तो हेनरी-8 और महारानी एलिजाबेथ-प्रथम पर ढेरों किताबें लिखी गई हैं। ठीक इसी तरह फ्रांस में भी लुइस-14 और मैरी एंटोनियॉट पर भी काफी लेखन हुआ है। भारतीय इतिहास में भी बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन काफी कुछ अभी भी रहस्य और मिथकों से भरा हुआ है।”

–आईएएनएस

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