महेश मौर्या,
नई दिल्ली। जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठकों से पहले दिल्ली सरकार ने व्यापारियों की जरूरतों को समझने के लिए अलग-अलग व्यापारिक संगठनों के साथ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। इसी क्रम में सोमवार को पेपर मर्चेंट एसोसिएशन के साथ एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, बतौर वित्त मंत्री मेरा काम दिल्ली के व्यापारियों के हितों की सुरक्षा करना है। इसीलिए इस तरह की कसलटेशंस शुरू की गई हैं।
उन्होंने कहा कि जीएसटी काउंसिल की पिछली मीटिंग्स में काफी चीजें तय होने जा रही थीं। लेकिन मैंने वहां कहा कि मुझे नहीं पता कि बाकी वित्त मंत्रियों ने अपने राज्य के लोगों से, अपने राज्य के व्यापारियों से कितनी चर्चा की है, पर मुझे दिल्ली के व्यापारियों के साथ अभी और चर्चा की जरूरत है। इसके बाद बाकी वित्त मंत्रियों ने भी माना कि विभिन्न मुद्दों पर अभी और चर्चा की जानी चाहिए।
मनीष सिसोदिया ने ये भी कहा कि इन बैठकों में एक-एक प्रोडक्ट पर चर्चा होनी चाहिए। इस बात पर भी चर्चा होनी चाहिए कि फलां प्रोडक्ट को किस स्लैब में रखने से क्या फायदे हैं और क्या नुकसान।
दिल्ली के वित्त मंत्री ने कहा कि हमने अपने बजट में कोई टैक्स नहीं बढ़ाया बल्कि कई प्रोडक्ट पर हमने टैक्स कम किए। अब चूंकि जीएसटी लागू हो रहा है तो फैसला नेशनल लेवल पर होगा लेकिन दिल्ली की तरफ से हमारा पूरा जोर रहेगा कि जितना मिनिमम टैक्स रहे। क्योंकि मैक्सिमम टैक्स रखने पर चोरी होगी। रिश्वतखोरी बढ़ेगी। इंस्पेक्टरों की कमाई होगी। व्यापारी औऱ ग्राहक दोनों के ऊपर भारी पड़ेगा।
पेपर मर्चेंट एसोसिएशन ने सुझाव दिया है कि सभी प्रकार के पेपर व बोर्ड को जीएसटी की 12 प्रतिशत की कैटेगरी में रखा जाए। अभी तक एजुकेशनल बुक्स औऱ कॉपियों पर टैक्स नहीं लगता है। इसके अलावा इनपुट आउटपुट का डिफरेंस कैरीफॉरवर्ड होना चाहिए। साथ ही दिल्ली में टैक्स की लाइबिलिटी विक्रेता व्यापारी की होनी चाहिए।
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