✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

मजदूरों

मजदूरों की यह लूटपाट फैल न जाए (डॉ. वेदप्रताप वैदिक) (Shocking)

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

रेल्वे स्टेशनों पर हजारों मजदूरों का मजमा लग गया है

देश के कई शहरों में गर्मी 50 डिग्री तक बढ़ रही है और भारत की गिनती अब दुनिया के उन पहले दस देशों में हो गई है, जिनमें कोरोना सबसे ज्यादा फैला है। सरकार ने रेलें, बसें और जहाज तब तो नहीं चलाए, जबकि कोरोना देश में नाम-मात्र फैला था। उसे अब दो माह बाद सुधि आई है लेकिन अब हाल क्या है ? सरकार ने जहाज और रेल-टिकिट बेच दिए लेकिन हवाई अड्डों और रेल्वे स्टेशनों पर हजारों मजदूरों का मजमा लग गया है। उन्हें पता हीं नहीं है कि उनके जहाज और रेले चलेंगी या नहीं या कब चलेंगी। जो रेलें चली हैं, लगभग 3000 श्रमिक रेले चली हैं, जो कि बहुत अच्छी बात हैं लेकिन उनका यही पता नहीं कि वे अपने गंतव्य पर कितने घंटे या कितने दिनों देर से पहुंचेंगी। महाराष्ट्र से चलनेवाली रेलें, जिन्हें 30 घंटे में बिहार पहुंचना था, वे 48 घंटों में पहुंची हैं।

Read More: 12,000 मजदूरों को बसों से घर पहुंचा रहे हैं सोनू सूद, बोले- नहीं मिलेगी दिल को तसल्ली जब तक सभी मजदूर नहीं पहुंच जाते

मजदूरों ने फलों और सब्जियों के ठेले लूट लिये

रेल मंत्रालय को शाबासी कि उसने अब तक 40-45 लाख लोगों की घर-वापसी करवा दी लेकिन रेल-यात्रियों को खाने और पानी के लिए जिस तरह तरसना पड़ा है, उसे देखकर आंखों में आंसू आ जाते हैं। परसों महाराष्ट्र के पालघाट से बिहार शरीफ जा रही रेल प्रयागराज स्टेशन पर रुकी तो क्या हुआ ? भूख के मारे दम तोड़ रहे यात्रियों ने प्लेटफार्म पर बिक रहा सारा माल लूट लिया। जो लोग अपने रिश्तेदारों के लिए खाने के पैकेट लाए थे, वे भी लूट लिये गए। यही लूट-पाट अन्य कई स्टेशनों पर भी हुई।पिछले हफ्ते सड़क चलते कई मजदूरों ने फलों और सब्जियों के ठेले लूट लिये।

हवाई अड्डों पर भी शीघ्र ही इसी तरह की लूटपाट के दृश्य दिखने लगेंगे

यदि हालत यही रही तो मान लीजिए कि देश में अराजकता के फैलने की घंटियां बजने लगी हैं। हमारे हवाई अड्डों पर भी शीघ्र ही इसी तरह की लूटपाट के दृश्य दिखने लगेंगे। इसमें शक नहीं कि सरकार इस संकट से निपटने की भरसक कोशिश कर रही है लेकिन उसका दोष यही है कि वह कोई भी नया कदम उठाने के पहले आगा-पीछा नहीं सोचती। जो गल्तियां, उसने नोटबंदी और जीएसटी के वक्त की थीं, वे ही वह तालाबंदी शुरु करते और अब उसे उठाते वक्त कर रही है।

हमारे सत्तारुढ़ नेता नौकरशाहों से काम जरुर लें लेकिन जनता से जब तक वे सीधा संपर्क नहीं बढ़ाएंगे, ऐसी गल्तियां बराबर होती ही रहेंगी। यदि यह संकट अपूर्व और भयंकर हैं तो हमारे राजनीतिक दल क्या कर रहे हैं ? उनके करोड़ों कार्यकर्ताओं को स्थानीय जिम्मेदारियां क्यों नहीं सौंपी जातीं ? यह ऐसा मौका है, जबकि हमारे लाखों फौजी जवानों से भी मदद ली जा सकती है।

About Author