नई दिल्ली| अमेरिका के नए निर्वाचित राष्ट्रपति ‘जो बाइडन’ 2013 में भारत आए थे। तकनीक व तकनीकी शिक्षा में रूचि रखने वाले जो बाइडन इस दौरान आईआईटी बॉम्बे गए। यहां उन्होंने नैनो-इलेक्ट्रानिक्स लैब का दौरा किया था। आईआईटी दिल्ली के डायरेक्टर और उस समय आईआईटी बॉम्बे के फैकल्टी और नैनो-इलेक्ट्रानिक्स लैब हेड रहे प्रोफेसर वी रामगोपाल राव ने कहा, “अमेरिका के नए राष्ट्रपति विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ शोध क्षेत्र में विशेष दिलचस्पी लेते हैं। 2013 में अमेरिकी उपराष्ट्रपति पद पर रहने के दौरान उन्होंने आईआईटी बॉम्बे की नैनो-इलेक्ट्रानिक्स लैब का दौरा किया था। उन्होंने उस समय इच्छा जताई थी कि वे पीएचडी में भारत की छात्राओं के रिसर्च वर्क को देखना चाहते हैं।”
रामगोपाल राव ने कहा, “करीब दो घंटे तक जो बाइडन ने विभिन्न क्षेत्रों में किए गए रिसर्च कार्यों का जायजा लिया था। इस दौरान उन्होंने माइक्रोस्कोप डिवाइस की खूबियों के बारे में विस्तार से जानकारी ली थी।”
भारतीय शिक्षाविदों के मुताबिक अमेरिका के नए राष्ट्रपति ‘जो बाइडन’ भारत की छात्राओं को उच्च शिक्षा में शोध क्षेत्र में बढ़ावा दे सकते हैं। दरअसल नए अमेरिकी राष्ट्रपति विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रिसर्च पर विशेष रुचि रखते हैं।
वहीं आईआईटी दिल्ली, मॉरिशस के बाद अब विदेशों में और भी नए कैंपस खोलने पर विचार कर रहा है। विदेशों तक भारतीय शिक्षा का प्रसार कर रहा आईआईटी दिल्ली, आसियान पीएचडी छात्र कार्यक्रम का राष्ट्रीय समन्वयक भी है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक आसियान पीएचडी कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही एक पहल है, जिसकी घोषणा उन्होंने 2018 में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान आसियान नेताओं की उपस्थिति में की थी।
शनिवार को आईआईटी दिल्ली का 51वें दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने बताया कि कोरोना संकट काल में आईआईटी दिल्ली द्वारा ने सबसे सस्ती कोरोनावायरस परिक्षण किट बनाई। आईआईटी दिल्ली द्वारा शुरू किये स्टार्टअप 4.5 मिलियन से अधिक नियमित गुणवत्ता वाली पीपीई किट की आपूर्ति कर चुके हैं।
इसके अलावा इस संस्थान में कई कोविड-19 संबंधी अन्य अनुसंधान गतिविधियां हैं जो संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा उद्योग, अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों तथा सरकारी एजेंसियों के सहयोग से की जा रही हैं।
–आईएएनएस
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