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शिक्षा में होना चाहिए भारतीय दृष्टि और दृष्टिकोण पर काम: प्रो. योगेश सिंह

दिल्ली, 02 अप्रैल। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर हिंदू स्टडीज में अंडरस्टैंडिंग हिंदू धर्म एंड ‘हिंदू-नेस’ विषय पर एक दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन मंगलवार, 2 अप्रैल को किया गया। विश्वविद्यालय के कॉन्फ्रेंस सेंटर में आयोजित इस कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह मुख्यातिथि रहे जबकि विशेष अतिथि एवं मुख्य वक्ता के तौर पर वर्ल्ड हिन्दू फ़ाउंडेशन के फाउंडर एवं ग्लोबल चेयरमैन स्वामी विज्ञानानंद उपस्थित रहे। इस अवसर पर डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी एवं दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर सेंटर फॉर हिंदू स्टडीज द्वारा की गई गतिविधियों पर एक बुकलेट का विमोचन भी किया गया। मुख्य अतिथि प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि शिक्षा में भारतीय दृष्टि और दृष्टिकोण पर काम होना चाहिए।

कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने प्राचीन भारतीय दृष्टि का जिक्र करते हुए कहा कि पुराने समय में भारत में किलों का निर्माण ऐसी तकनीक से किया जाता था कि उन्हें ठंडा रखने के लिए बिजली जैसी किसी ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन, आज विदेशों की तर्ज पर भारत में भी शीशे की बहुमंजिला गगनचुंबी इमारतें बनने लगी हैं। जिन देशों की यह तकनीक है वहाँ धूप कम निकलती है और अधिकाधिक धूप के अंदर आने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जबकि भारत में साल के अधिकतर महीनों में प्रयाप्त धूप रहती है। ऐसे में इन इमारतों को ठंडा रखने के लिए चार गुना से ज्यादा ऊर्जा लगती है। कुलपति ने कहा कि आज उस भारतीय दृष्टि का अभाव है। उन्होंने कहा कि भारत के पास वाणिज्य और व्यापार की भी बहुत समृद्ध परंपरा रही है। आज भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में उस दृष्टि से क्या विस्तार किया जा सकता है, इस पर विश्वविद्यालयों को काम करना चाहिए। यदि यह हिन्दू स्टडी सेंटर इस तरह के प्रयोग करता है तो तभी इसकी सार्थकता सिद्ध होगी।

कुलपति ने कहा कि भारत को और भारतीय ज्ञान परंपरा को हम विश्वविद्यालयों में जिंदा नहीं रख पाए। यह बहुत बड़ी कमी थी जिसे दूर करने का अब सही समय आ गया है। अब समय भी सही है, व्यवस्थाएँ भी सही हैं और सहयोग भी उपलब्ध है, इसलिए अब हमें इसमें चूकना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा केवल मनुष्यों के लिए नहीं है, बल्कि हमें तो जानवरों, पशु-पक्षियों सबका ख्याल रखना पड़ता है। हमारी संस्कृति सबके लिए अच्छा भाव रखने वाली संस्कृति है। यही धर्म है, यही नीति है, यही सत्य है कि सबके लिए अच्छा भाव रखना।

कॉन्फ्रेंस के विशेष अतिथि एवं मुख्य वक्ता स्वामी विज्ञानानंद ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्राचीन भारत में भारतीय ज्ञान परंपरा बहुत विकसित थी। हमारे देश में नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशीला जैसे विश्वविद्यालय थे। लेकिन पिछले सैंकड़ों वर्षों में भारत में विद्या का ढांचा मजबूत नहीं किया गया। आज भारत से 18-20 लाख विद्यार्थी विदेशों में पढ़ने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म ज्ञान आधारित है। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू स्टडी सेंटर को अपने समाज को यह बताना है कि हमारा धर्म ज्ञान आधारित है। हिन्दू धर्म में महिला सम्मान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में सर्वत्र नारी सम्मान और नारी के आदर की बात मिलती है। पर्यावरण पर चर्चा करते हुए स्वामी विज्ञानानंद ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पेड़ों की रक्षा की जाती है और उनकी पूजा होती है। पहाड़ों और नदियों की पूजा और परिक्रमा की जाती है। उन्हें सम्मान देने की परंपरा है। सूरज ऊर्जा देता है तो भारतीय संस्कृति में उसे अर्घ देने की परंपरा है। उन्होंने हिन्दू स्टडी सेंटर से आह्वान किया कि समाज को भारतीय ज्ञान के प्रति शिक्षित करना है, तभी समाज खड़ा होगा।

कार्यक्रम के आरंभ में विशिष्ट अतिथि प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने कॉन्फ्रेंस की प्रस्तावना रखते हुए सेंटर फॉर हिंदू स्टडीज की स्थापना एवं यहाँ चलाए जा रहे कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रस्तुत की। विशिष्ट अतिथि प्रो. बलराम पाणी ने अपने संबोधन में हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डाला। उद्घाटन सत्र के आरंभ में कॉन्फ्रेंस कनवीनर डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने अतिथियों का स्वागत किया और समापन पर सेंटर फॉर हिंदू स्टडीज के निदेशक प्रो. ओमनाथ बिमली ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कॉन्फ्रेंस के समापन सत्र में राज्यसभा के पूर्व सांसद बलबीर पुंज मुख्य अतिथि रहे। डीयू कल्चर काउंसिल के चेयर पर्सन अनूप लाठर विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे। इस अवसर पर अनेकों शिक्षाविद एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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