जयपुर: अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर प्रो-कबड्डी लीग के सीजन-5 में यू-मुंबा टीम के मुख्य रेडरों में अपनी जगह बनाने वाले श्रीकांत जाधव को यहां तक का सफर तय करने में पांच साल लगे।
इन पांच वर्षों में श्रीकांत ने कई परेशानियों का सामना किया। कई खिलाड़ियों और जानकारों ने उनके मनोबल को बढ़ाने के बजाए उन्हें कबड्डी को छोड़ने का सुझाव दिया, लेकिन श्रीकांत ने कबड्डी के प्रति अपने जुनून में कोई कमी नहीं आने दी और आज आलम यह है कि लोगों की जुबां पर उनका ही नाम है।
अहमदनगर जिले के रहने वाले श्रीकांत को आज पहचान की जरूरत नहीं है, लेकिन एक समय ऐसा भी था कि वह अपने घर जाने से भी कतरा रहे थे, क्योंकि उन्हें डर था कि लोग उन्हें ताने कसेंगे और उन्हें बदनाम करेंगे।
श्रीकांत ने आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में अपने पांच साल के संघर्ष को बयां किया, जिसमें तपकर आज वह सोने सरीखा निखरा हुआ खिलाड़ी बने हैं।
करियर की शुरूआत के बारे में श्रीकांत ने कहा, “मैं पहले एथलेटिक्स में था, लेकिन मेर घर की परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं इसमें आगे बढ़ पाता। मेरे घर के पीछे कुछ लोग कबड्डी खेलते थे और ऐसे में मैंने कबड्डी में जाने का फैसला किया। धीरे-धीरे इस खेल में मेरी रूचि बढ़ने लगी और मैं इसमें रम गया।”
श्रीकांत ने कहा कि पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था और हर समय वह कबड्डी के बारे में ही सोचते थे। इस कारण उन्हें अपने पिता की मार भी खानी पड़ती। बावजूद इसके वह कबड्डी खेलना नहीं छोड़ते थे। श्रीकांत के पिता किसान हैं और वह काफी गरीब परिवार से हैं। उनके माता-पिता मिट्टी के मकान में रहते हैं। उनका एक भाई और एक बहन हैं।
बकौल श्रीकांत, “कई बार असफल होने के बाद 10वीं कक्षा में मेरी कड़ी मेहनत को देखते हुए महाराष्ट्र से मुझे खेलने का अवसर मिला और इसके बाद मैं मुंबई में साई केंद्र में प्रशिक्षण लिया, जहां मेरी काशीलिंग अडागे और नितिन माने जैसे बड़े खिलाड़ियों से मुलाकात हुई और उनसे मैंने कई चीजें सीखीं।”
इस बीच, घर की खराब परिस्थितियों के कारण श्रीकांत को कबड्डी छोड़नी पड़ी और वह अपने पिता का साथ देने घर वापस चले गए। वहां लोगों ने उन्हें इस खेल को छोड़ देने की सलाह दी, लेकिन श्रीकांत ने उनकी नहीं सुनी।
श्रीकांच ने कहा, “घर की जिम्मेदारी मुझ पर थी। मैंने इस बीच महाराष्ट्र पुलिस में भर्ती की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। इसके बाद मैं भारतीय शिविर में प्रशिक्षण के लिए चला गया। 2014 में प्रो-कबड्डी का सीजन शुरू हो गया और मैं जयपुर पिंक पैंथर्स में शामिल हुआ, लेकिन लीग की शुरूआत से कुछ दिन पहले ही मुझे इंजरी हो गई और मैं घर वापस आ गया।”
श्रीकांत ने लोगों से कर्ज लेकर चोट का इलाज करवाया और फिर से दूसरे सीजन में जयपुर में वापसी की। उन्हें फिर चोट लगी और वह एक बार फिर वापस आ गए। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी। वह किसी तरह इस खेल में अपनी पहचान बनाने में डटे रहे।
इस बीच, वह जहां भी खेलने जाते, खिलाड़ी और लोग उन्हें इस खेल से अलग होने की सलाह देते, लेकिन कबड्डी में वापसी का श्रेय उन्होंने अपन दोस्तों-अशोक और रवि गाड़े को दिया। श्रीकांत ने कहा कि केवल उनके इन दो दोस्तों को ही उन पर विश्वास था। उन्होंने हर मोड़ पर श्रीकांत का साथ दिया।
लीग के तीसरे सीजन और चौथे सीजन में श्रीकांत बंगाल वॉरियर्स की टीम से खेले। हालांकि, उन्होंने दोनों सीजन में अधिक मैच नहीं खेले।
इसके बाद पांचवें सीजन में उन्हें यू-मुंबा टीम में जगह मिली। श्रीकांत का हमेशा से सपना था कि वह इस टीम का प्रतिनिधित्व करें।
सेंट्रल रेलवे में कार्यरत श्रीकांत को जब पता चला कि वह लीग की नीलामी में मुंबई की टीम में चुने गए हैं, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था और आज अपनी मेहनत के दम पर वह अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं।
श्रीकांत जाधव के लिए भले ही पांच साल का संघर्ष हरा देने वाला रहा हो, लेकिन अपने जज्बे को उन्होंने कभी कम नहीं होने दिया। श्रीकांत का कहना है कि आज भी वह उसी जज्बे के साथ अपनी टीम के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश करते हैं और करते रहेंगे।
श्रीकांत ने कहा एक समय पर उनके आलोचक रहे लोग आज उनसे नजर नहीं मिला पाते हैं और अब उन्हें कई समारोहों में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। हालांकि, वह इस लोकप्रियता को खुद पर हावी नहीं होने देंगे और अपनी असल जिंदगी के जुड़े रहेंगे।
–आईएएनएस
और भी हैं
बुलडोजर का इतिहास : निर्माण से लेकर तोड़फोड़ की मशीन बनने तक की यात्रा
वेश्यालय से भीख मांगकर मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए लाई जाती है मिट्टी, जानें इसके पीछे की कहानी
हिंदी दिवस: क्या हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा बची है?