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समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं देखा तो हर मुकाम तेरी ही रहगुजर में है”

सोन नद का स्वर्णिम बालू का चहुं ओर का विस्तार किसी सागर या समुद्र से कम नहीं था। किसी गोआ या कोवलम से कम सौन्दर्यवान भी नहीं। अपितु अनदेखा और अनछुआ की अप्रतिम अनुभूति से परिपूर्ण। ये ताज़गी। ये सूनापन। ऊपर भगवान भास्कर और नीचे शीतल जल। पटना से 75 किलो मीटर की दूरी की थकान कहां गई पता ही नहीं चला। सचिव, राजस्व बोर्ड श्री संजय बाबू और साथ में अरवल जिला के डीसीएलआर साहेब ब्रिज सब स्तब्ध।

ईश्वर का कोई संयोग हो सकता है। यहां से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर मधूसर्वा स्थान जहां माधवेश्वरनाथ महादेव मंदिर अवस्थित है और जो गंगा के दक्षिण के बिहार के चार वैदिक पुण्य स्थलों में से एक है। अन्य तीन से आप हम सभी परिचित हैं – राजगीर, गया और पुन पुन नदी का दोनों पाट।

मधुसर्वा नाम अनजाना सा ही था। मगर आश्चर्य जैसे दिन चर्या बन गई हो। इसी स्थल पर महर्षि च्यवन का जन्म हुआ था। वो ऋषि जिनके नाम पर बना च्यवन प्राश हर घर में खाया और खिलाया जाता है। डाबर का या बैद्यनाथ का। पतंजलि या झंडू । इसके असर का कोई भी भारतीय कसमें खा सकता हैं। सचमुच गर्व से मन आह्लादित हो गया। वहां का दर्शन पाकर वशीभूत हो गए हम सब। यहीं ऋषि च्यवन की कुरूपता पास के सरोवर में एक डुबकी से धूल कर यौवनता को उपलब्ध हुई थी। इतनी मोक्षदायिनी। भगवान राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र की अगुवाई में जनकपुर यात्रा का एक पड़ाव यहां रखने के पीछे कारण पता चला। मिट्टी कुछ भी नहीं भूलती।

वहां से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर संजय बाबू का पहलेजा गांव और पंचायत। गांव के घर में अब कोई रहनेवाला नहीं। मगर खंडहर से प्रतीत हो रहा था कि इमारत किसी स्वर्णिम काल से गुजरी है। पास के बगीचे में एक से एक फल। आम, बादाम, सागवान, चीकू, अनार, नींबू, सहेजन, मेहंदी, अमरूद, पपीता और पंचवटी के पांचों पौधे – पीपल, बरगद, आंवला,अशोक और बेल । घर से सटे पेड़ पर चढ़ बचपन की आवारगी ताज़ी हो गई। फिर घर पर शुद्धता के साथ परोसा गया खाना खाकर दिल भर गया।

अंत में रसीला मठा । वाह। धान की गोलाकार कोठी, चारा काटने की मशीन, ढेंका, जांता यानी की पुराने समय के सभी ओंजार घर में ज्यों के त्यों संजोए हुए थे।
जीवन की यात्रा के इस अनूठे पड़ाव पर ईश्वर का दर्शन इस रूप में पाकर धन्य हो गया। महाशिवरात्रि पर भगवान जैसे सब वरदान आज ही दे देने को उत्सुक हों और हम बटोरने में। जहां तक इस मंद बुद्धि से बन पड़ा।

एक कृतज्ञता के भाव के साथ गाड़ी पर सवार होकर हम सभी पटना कि ओर चल दिए और महज डेढ़ घंटे में वापस कर्तव्यता के कोलाहल में।
जय शिव
शिव शिव
जय बिहार।।।।।।।

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