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हिजाब नहीं बना सल्वा के लिए विमान उड़ाने में बाधक

 

हैदराबाद: एक दशक पहले एक कार्यक्रम में पूछे गए सवाल पर जब एक बेकरी में काम करने वाले की बेटी ने बड़ी ही सहजता के साथ कहा था “मैं पायलट बनना चाहती हूं”, तब उसके सपनों को पंख लगने शुरू हुए थे और अब हिजाब पहनने वाली सईदा सल्वा फातिमा एक एयरलाइन ज्वाइन करने जा रही है।

वह भारत में कर्मिशियल पायलट का लाइसेंस यानी सीपीएल धारण करने वाली चार मुस्लिम महिलाओं में एक है।

न्यूजीलैंड में मल्टी-इंजन का प्रशिक्षण लेने और बहरीन में टाइप-रेटिंग के बाद हैदराबाद की इस महिला को अब नागरिक उड्डयन महानिदेशक यानी डीजीसीए के अनुमोदन का इंतजार है, जिसके बाद वह एयरबस ए-320 उड़ाने में सक्षम हो जाएगी।

सईदा का यह सफर कोई आसान नहीं था, उसके रास्ते में कई मुश्किलें आईं, लेकिन अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह यह सब झेलती हुई आगे बढ़ती रही। निम्न मध्यम वर्ग की पृष्ठभूमि से आने वाली सल्वा अपने पूरे प्रशिक्षण के दौरान भारत और विदेशों में हिजाब पहनती रही।
फातिमा ने आईएएनएस को बताया, “मैं हमेशा इसे अपने सिर पर वर्दी के ऊपर पहनती थी। हिजाब को लेकर मुझे कभी कोई समस्या नहीं आई।”

बहरीन स्थित गल्फ एविएशन एकेडमी में हिजाब पहनने को लेकर उनकी तारीफ की गई और एकेडमी की पत्रिका में उनकी तस्वीर भी छापी।

सल्वा चाहती हैं कि यह भ्रांति दूर हो कि विमानन जैसे क्षेत्रों में हिजाब एक बाधा है। वह कहती हैं, “जहां चाह वहां राह”।

वह कहती हैं कि चाहे विमानन हो या कोई अन्य पेशा, हर जगह आपकी शिक्षा और आपकी क्षमता ही काम आती है और कोई दूसरी बात मायने नहीं रखती है।

सल्वा अपने स्कूल के दिनों से ही विमानन उद्योग से संबंधित आलेखों का संकलन करती थी और विभिन्न विमानों की तस्वीरें भी रखती थीं। लोग उसके सपनों की बात सुनकर हंसते थे। बारहवीं पास करने के बाद उर्दू दैनिक सियासत की ओर से इंजीनियरिंग प्रवेश के लिए करवाई जा रही कोचिंग में उन्होंने दाखिला ले लिया।

कोंचिग के दौरान अखबार के संपादक जाहिद अली खान ने उससे पूछा कि वह क्या बनना चाहती हैं तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया – ‘पायलट’। खान उनके आत्मविश्वास को देखकर चकित थे।

उन्होंने अपने मित्रों व परोपकारियों के साथ मिलकर सल्वा को 2007 में आंध्र प्रदेश एविएशन एकेडमी में दाखिला दिलवा दिया। वह तीन बार नेविगेशन पेपर में विफल रहीं, लेकिन जाहिद खान की ओर से मिल रहे प्रोत्साहन से वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास में जुटी रही।

पांच साल बाद उन्होंने सेसना 152 एयरक्राफ्ट से 200 घंटों की उड़ान पूरी की जिसमें 123 घंटे अकेले विमान उड़ाने का अनुभव भी शामिल है।

2013 में कर्मशियल पायलट का लाइसेंस हासिल करने के बाद उन्हें मालूम हुआ कि बड़े हवाई जहाज उड़ाने के लिए मल्टी इंजिन ट्रेनिंग व टाइप रेटिंग के लिए बहुत पैसों की जरूरत होती है। वह उस समय 24 साल की थीं और माता-पिता ने उन्हें शादी करने के लिए कहा। उनके सामने कोई और विकल्प नहीं था। उन्हें भरोसा नहीं था कि वह इतने पैसों का प्रबंध कर पाएंगी।

वह गर्भवती थीं, जब तेलंगाना सरकार ने मल्टी इंजन ट्रेनिंग व टाइप रेटिंग के लिए उन्हें 36 लाख रुपये की वित्तीय मदद देने की घोषणा की थी।

उसने कहा, “मेरी बेटी मेरी लिए सौभाग्यशाली रही। उसे जन्म देने के बाद मैंने अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने को तय कर लिया।”

एक साल बाद उन्होंने मल्टी इंजन प्रशिक्षण के लिए तेलंगाना एविएशन एकेडमी में दाखिला ले लिया। लेकिन वहां कोई वायुयान नहीं था। जब सरकार ने जीएमआर एविएशन एकेडमी को पैसा दिया और उनका प्रशिक्षण शुरू होने वाला था तभी एक दुर्घटना के कारण वायुयान गिर गया।

और भी कई तरह की समस्याएं आईं। सल्वा ने बताया कि फिर उन्होंने सरकार से प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजने की विनती की।

वह न्यूजीलैंड गई जहां उन्होंने 15 घंटे तक एक मल्टी-इंजन विमान उड़ाया। बहरीन के गल्फ एविएशन एकेडमी में सल्वा को एयरबस पर टाइप-रेटिंग करने का मौका मिला।

सल्वा का कहना है कि जो भी एयरलाइन उन्हें पहले नौकरी का प्रस्ताव देगी, वह उसे स्वीकार कर लेंगी।

सल्वा का अपने जैसी अन्य लड़कियों के लिए यह संदेश है कि स्पष्ट लक्ष्य और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ें। मेहनत और लगन कभी बेकार नहीं जाती।

(यह फीचर आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन के सहयोग से विविध, प्रगतिशील व समावेशी भारत को प्रदर्शित करने के लिए शुरू की गई विशेष श्रृंखला का हिस्सा है।)

–आईएएनएस

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