हैदराबाद: हैदराबाद की एक संस्था ने जकात से शिक्षा का अलख जगाया है। पिछले 25 सालों से गरीब, बेसहारा और अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए कार्यरत यह संस्था जकात में संग्रह किए गए धन से चलती है।
जकात से अभिप्राय दान से है। लेकिन यह दान ऐच्छिक नहीं, बल्कि अनिवार्य होता है। हर संपन्न मुसलमान को अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान करना होता है, जिसे जकात कहा जाता है।
हैदराबाद जकात व चैरिटेबल ट्रस्ट ने अपने कार्यो से मुस्लिम समुदाय में यह विश्वास पैदा कर दिया कि जकात के धन का अच्छे कामों में उपयोग किया जाए तो समाज में आमूलचूल परिवर्तन आ सकता है। यह ट्रस्ट समुदाय में व्याप्त निरक्षरता को दूर करने के लिए पिछले ढाई दशक से निरंतर प्रयासरत है और इस दिशा में इसे बड़ी कामयाबी भी मिली है। ट्रस्ट की ओर से संचालित 106 स्कूलों में पढ़ाई कर रहे 2400 बच्चों का खर्च आज जकात में मिले धन से ही चल रहा है।
इस ट्रस्ट की शुरुआत 1992 में उस समय हुई, जब नामी व्यवसायी समाजसेवी गियासुद्दी बाबूखान ने अपने कुछ मित्रों और समान सोच वाले लोगों के साथ शिक्षा के लिए जकात इकट्ठा करना शुरू किया। हैदराबाद जकात व चैरिटैबल ट्रस्ट (एचजेसीटी) के चेयरमैन बाबू खान ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “इसकी शुरुआत महज 11 लाख रुपये की राशि से की गई।”
बाबूखान और उनके मित्र इस दर्शन में विश्वास करते हैं कि ‘शिक्षा से सशक्तिकरण होता है और ज्ञान प्राप्त होने से आजादी मिलती है’ और अपने इसी विश्वास से प्रेरित होकर उन्होंने दूरदराज के गांवों में गरीबों के लिए स्कूलों का एक नेटवर्क बनाया।
उर्दू माध्यम के इन स्कूलों को सरकार के सर्व शिक्षा अभियान के तहत शामिल किया गया। लेकिन स्कूलों का संचालन, उनमें शिक्षकों की नियुक्ति, नि:शुल्क पोशाक, किताब वितरण समेत पूरी व्यवस्था की निगरानी ट्रस्ट के ही माध्यम से की जाती है।
आज ट्रस्ट का सालाना बजट 12 करोड़ रुपये है और पिछले ढाई दशक में इसके जरिए 10 लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी में भारी बदलाव आए हैं। इनमें तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के गरीब विद्यार्थी और अनाथ लोग व विधवाएं शामिल हैं।
बाबूखान ने बताया कि इस्लाम धर्म में जिन मुसलमानों के पास निसाब अर्थात 60.65 तोला चांदी के बराबर धन है, उन्हें अपने धन का 2.5 फीसदी सालाना इस्लामिक कर देना होता है।
बाबूखान ने कहा, “लोग बिना किसी परेशानी के दान देते हैं। मैं 99 फीसदी दानदाताओं को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हूं और न ही उनसे कभी मेरी मुलाकात हुई है। मैंने संस्था में पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित की है। सकारात्मक जानकारी मांगने के अलावा किसी ने कभी ट्रस्ट पर कोई सवाल नहीं किया। कुछ लोग खुद भारी मात्रा में दान देने के लिए आते हैं। मुझे नहीं मालूम कि इस तरह का कोई और ट्रस्ट भारत में है।”
एचजेसीटी का संचालन पेशेवर तरीके से होता है। इसमें 40 समर्पित कार्यकर्ता हैं और पूर्णकालिक कर्मचारी भी हैं, जिनको अच्छी तनख्वाह मिलती है। दानदाताओं के लिए सालाना रपट प्रकाशित कर पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है।
ट्रस्ट का खर्च शुरुआत से 107 करोड़ रुपये रहा है, जिसमें शिक्षा पर 70 फीसदी राशि खर्च हुई है। ट्रस्ट की ओर से 2.5 करोड़ रुपये से ज्यादा सिर्फ स्कूलों पर खर्च किए जाते हैं, जिसमें वेतन, पोशाक और जेम्स ऑफ द नेशन नकद अवार्ड के तहत 9.3 जीपीए या उससे ज्यादा ग्रेड वाले वाले दसवीं के छात्रों में प्रत्येक को 10,000 रुपये इनाम दिया जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि इन स्कूलों में 70 फीसदी विद्यार्थी लड़कियां हैं और सरकारी स्कूलों में जहां छात्र-छात्राओं का पास प्रतिशत 57 फीसदी है, वहीं इन स्कूलों में यह दर 92 फीसदी है।
उन्होंने कहा, “हमारे स्कूल सिर्फ इसलिए नहीं सफलता है कि हम इनका संचालन करते हैं, बल्कि इनका संचालन तो अल्लाह करते हैं। क्योंकि अन्य कामों में कई सारी दिक्कतें आती हैं, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में हमें कोई रोक नहीं सकता है। दो लाख से ज्यादा विद्यार्थी हमारे स्कूलों से पास कर चुके हैं और उनमें से अनेक डॉक्टर व इंजीनियर बने हैं।”
ट्रस्ट की ओर से स्थापित संस्थानों के संचालन के लिए 1996 में फाउंडेशन फॉर इकॉनोमिक एंड एजुकेशन डेवलपमेंट (एफईईडी) का गठन किया गया।
गरीब व जरूरतमंद परिवारों के मेधावी विद्यार्थियों में कौशल विकास के मकसद से एफईईडी ने 2013 में हैदराबाद इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सीलेंस (एचआईई) की स्थापना की। इसके जरिए छात्र व छात्राओं में देश के लिए सम्मान, निष्ठा और प्यार और धार्मिक मूल्यों में गहरी आस्था पैदा करने के साथ-साथ नेतृत्व क्षमता के विकास के मकसद से हैदराबाद के पास विकराबाद में 120 एकड़ में आवासीय विद्यालय खोला गया।
विद्यालय विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस है। इसके लिए अत्याधुनिक आधारभूत ढांचा तैयार किया गया है। विद्यालय में छठी से लेकर 12वीं कक्षा तक की शिक्षा दी जाती है।
एचआईई में करीब 50 फीसदी विद्यार्थियों को सालाना दो लाख रुपये छात्रवृत्ति दी जाती है। यहां आईआईटी-जेईई मेंस व एडवांस्ड, नेशनल इलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट), बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी एंड साइंस एप्टीट्यूट टेस्ट (बीआईटीएसएटी) समेत विविध प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करवाई जाती है। 2017 में एचआईई के 100 फीसदी विद्यार्थी 12वीं में सफल हुए, जिनमें 13 विद्यार्थियों ने 98 फीसदी अंक हासिल किए।
बाबू खान ने बताया कि यहां के विद्यार्थियों का चयन आईआईटी और एनआईटी में भी हुआ है। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट के शैक्षणिक कार्यक्रमों का लाभ करीब 378,000 विद्यार्थियों को मिला है। अब अनाथों की शिक्षा पर ध्यान देने की योजना है। ट्रस्ट की ओर से स्कूल से लेकर पेशेवर पाठ्यक्रमों के लिए 10,000 अनाथों को वित्तीय मदद दी जा रही है।
इस साल 1.60 करोड़ रुपये अनाथ छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत वितरित किए गए हैं। साथ ही 1.70 करोड़ रुपये के अनाज बांटे गए हैं। 4000 विधवाओं व अनाथों को रमजान के दौरान इफ्तार के पैकेट और कपड़े दिए गए हैं।
ट्रस्ट की ओर से अन्य सामाजिक कार्य भी किए जाते हैं। गुजरात में दंगा और भूकंप के दौरान ट्रस्ट ने लोगों की मदद की थी। कश्मीर में आए भूकंप और बाढ़ के दौरान ट्रस्ट ने लोगों की सेवा की थी।
ट्रस्ट की ओर से वर्ष 2016-17 में 5.57 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति पेशेवर पाठ्यक्रमों के लिए और अनाथ व शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों को दी गई। ट्रस्ट ने 1.75 करोड़ रुपये कल्याणकारी परियोजनाओं पर खर्च किए।
इसके अलावा 0.25 करोड़ रुपये विधवाओं की दोबारा शादी कराने पर और 0.12 करोड़ रुपये पेयजल और बोरवेल पर खर्च किए गए।
(यह साप्ताहिक फीचर श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)
–आईएएनएस
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