नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने बुधवार को सर्वसम्मति से कहा कि दिल्ली के उप राज्यपाल संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार की ‘सहायता और सलाह’ (एड एंड एडवाइस) को मानने के लिए बाध्य हैं।
इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने सराहना की है और कहा है कि न्यायालय के इस फैसले के बाद राजधानी के प्रशासनिक नियंत्रण और शासन को लेकर कटु खींचतान भी समाप्त हो गई है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली के शासन की असली शक्तियां निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास हैं और इनके विचार और निर्णय का सम्मान होना चाहिए।
इस फैसले ने इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस फैसले को पलट दिया जिसमें दिल्ली के उप राज्यपाल को दिल्ली के प्रशासन का मुखिया घोषित किया गया था। इस फैसले के बाद केंद्र और आप में दिल्ली की शक्तियों को लेकर युद्ध छिड़ गया था और आप ने इसके खिलाफ शीर्ष अदालत की शरण ली थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उप राज्यपाल भूमि, पुलिस, सार्वजनिक शांति और मतभिन्नता के कारण वह जिन मामलों को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, इन्हें छोड़कर बाकी सभी मामलों में मंत्रिपरिषद से सलाह और सहायता लेने के लिए बाध्य हैं।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, “निर्णय लेने का वास्तविक अधिकार चुनी हुई सरकार को होता है। ‘सहायता और सलाह’ का यही मतलब होता है। नाममात्र (टिटूलर) के प्रमुख को सहायता और सलाह के अनुसार काम करना होता है।”
प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने न्यायमूर्ति ए.के सीकरी, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की तरफ से भी कहा, “उप राज्यपाल में स्वतंत्र निर्णय लेने का कोई भी अधिकार निहित नहीं है और वह सरकार के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए ‘बिना दिमाग का प्रयोग किए मशीनी तरीके’ से व्यवहार नहीं कर सकते।”
उन्होंने यह भी कहा, “उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच प्रत्येक बार ‘राय में मामूली अंतर होने’ पर इसे निर्णय के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा जा सकता।”
उन्होंने कहा, “इस संदर्भ में, विचार में मतभेद होने की स्थिति में, उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार को एक दूसरे के साथ संवैधानिक नैतिकता और विश्वास के आधार पर एकसाथ काम करना चाहिए।”
अपनी सरकार के लिए ज्यादा शक्ति हासिल करने के लिए अभियान की अगुवाई करने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस निर्णय को ‘दिल्ली और लोकतंत्र के लिए एक बड़ी जीत बताया।’
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसे ‘ऐतिहासिक निर्णय’ बताया, जो यह सुनिश्चित कर रहा है कि ‘दिल्ली सरकार को अनुमोदन के लिए अपनी फाइल को उप राज्यपाल के पास नहीं भेजना पड़ेगा।’
उन्होंने कहा, “अब काम नहीं रुकेगा। दिल्ली के पास शक्ति वापस आ गई। यह फैसला उप राज्यपाल की सनक के खिलाफ है। मैं सर्वोच्च न्यायाल का धन्यवाद करता हूं।”
अदालत के फैसले ने हालांकि केजरीवाल और आप के लिए एक संदेश भी दिया है।
अदालत ने चुने हुए प्रतिनिधियों को उनकी संवैधानिक प्रतिबद्धताओं और लोगों के कल्याण के प्रति जवाबदेही की याद भी दिलाई है।
न्यायालय ने कहा, “तानाशाही की कोई जगह नहीं है। अराजकता की भी कोई जगह नहीं है। कई बार इस पर अलग परिप्रेक्ष्य में बहस की जाती है कि कोई ‘तार्किक अराजकतावादी’ हो सकता है लेकिन कहे गए शब्द का संवैधानिक शासन और कानून के शासन में किसी भी प्रकार का प्रवेश नहीं है।”
न्यायालय के फैसले पर भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, “हमने केजरीवाल को धरना और अराजकता की राजनीति करते देखा है। उन्होंने कभी भी सौहार्द्र से काम करने की कोशिश नहीं की। सर्वोच्च न्यायालय ने केजरीवाल को जबरदस्त झटका दिया है। उन्हें अब अराजकता की राजनीति छोड़कर शासन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।”
दिल्ली कांग्रेस की नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा केजरीवाल ‘आज सबसे दुखी व्यक्ति होंगे’ क्योंकि उनके पास ‘अब आरोप लगाने’ के लिए कोई नहीं बचा है।
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की नेता शीला दीक्षित ने कहा कि न्यायालय का निर्णय वही तथ्य दोहराता है कि दिल्ली सरकार की शक्तियों की किसी अन्य राज्य से तुलना नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा, “लेकिन, कोई विषय उपराज्यपाल के अधीन है या दिल्ली सरकार के अधीन, भुगतना दिल्ली को ही पड़ेगा अगर दोनों मिलकर काम नहीं करेंगे या दोनों के बीच विवाद होगा। कांग्रेस 15 वर्षो तक सत्ता में रही और कभी भी उप राज्यपाल के साथ संघर्ष नहीं हुआ। विवाद की स्थिति में हम खुद इसे सुलझाते थे। कई बार सरकार और कई बार उप राज्यपाल अपने कदम पीछे खींच लेते थे।”
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने फैसले पर कहा, “यह संघवाद की जीत है।”
–आईएएनएस
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