तिरुवनंतपुरम – देश के इस्लामी विद्वानों में अपनी विशिष्ट जगह रखने वाले कांथापुरम ए.पी. अबुबकर मुस्लियार भारत के प्रधान मुफ्ती और इस्लामिक कम्युनिटी आफ इंडिया के अध्यक्ष हैं। केरल के कोझिकोड के रहने वाले 89 वर्षीय इस्लामी विद्वान को विश्व में सम्मानित स्थान हासिल है। तमाम राजनैतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं और वह देशों की यात्राएं करते रहते हैं।
उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर आईएएनएस से बात की। पेश है बातचीत के अंश :
सवाल- यह रमजान का महीना है जिसे आम तौर से इबादत, प्रेम और एकजुटता का महीना माना जाता है। लेकिन, कोविड-19 के कारण सामूहिक प्रार्थना, सभा व इस महीने में समुदाय से जुड़े और आयोजनों पर प्रतिबंध है। आप इसे किस तरह से देखते हैं?
जवाब- कोविड-19 हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों को गहराई से प्रभावित कर चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानवता के लंबे इतिहास में यह इसके सामने आई सबसे बड़ी चुनौती है। एक आस्थावान के लिए मस्जिदों को बंद देखना तकलीफदेह है, खासकर रमजान के पवित्र महीने में।
लेकिन, ऐसी आपदाओं में इस्लाम ने अपने संस्थानों के कामकाज के लिए पहले ही से सख्त दिशा-निर्देश तय किए हुए हैं। हमारे प्रिय पैगंबर (मुहम्मद साहब) ने खुद ही हमें ऐसे हालात के लिए अलर्ट किया हुआ है और इसके हिसाब से दिशा निर्देश दिए हुए हैं। जब मैंने जामिया मरकज में अपने दफ्तर से संबद्ध पुस्तकालय में देखा तो कई किताबें इसी मुद्दे पर लिखी पाईं जिनमें बताया गया है कि आपदाओं के समय में हमारा जीवन कैसा होना चाहिए। इन कानूनी, मेडिकल व ऐतिहासिक किताबों में से अधिकांश शताब्दियों पहले लिखी गई हैं। महामारियों से गुजरने वाले समुदायों के अनुभवों के आधार पर लिखी गईं यह बातें सच में आंखें खोलने वाली हैं।
इस्लाम ऐसा धर्म है जिसका पालन आइसोलेशन और क्वारंटीन में कर पाना पूरी तरह संभव है। एक खास बात जो आइसोलेशन में धर्म के पालन को बेहद आसान बना देती है, वह है इस्लाम में पुरोहित के पद का नहीं होना।
सवाल- हमारे लाखों देशवासी विदेश में हैं जिन्हें स्वेदश लाने के लिए भारत सरकार ने सुरिक्षत वापसी के इतिहास का एक बड़ा अभियान शुरू किया है। आपके एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो कई पश्चिमी एशियाई देशों से जुड़ा हुआ हो जहां प्रवासी केरलवासियों की बड़ी संख्या रहती है, आपका इस बारे में क्या कहना है?
जवाब- एक ऐसा समुदाय जिसने समाज व अर्थव्यवस्था की भलाई में व्यापक योगदान दिया है, हमें उसका थोड़ा अतिरिक्त ख्याल रखना होगा। तो, भारत वापस आने की उनकी मांग को समझा जा सकता है। हम इस मामले में किसी और विकल्प के बारे में सोच भी नहीं सकते, खासकर तब, जब दुनिया एक वायरस से लड़ रही है।
मुझे लगता है कि हमने अभी देर नहीं की है। हमें ध्यान में रखना होगा कि मौजूदा संकट में कोई भी सहज रूप से अपने घरों को लौटना और वहां स्नेह पाना चाहेगा। मुझे लगता है कि इस स्वदेश वापसी अभियान को इसी नजर से देखा जाना चाहिए।
सवाल- किसी भी धर्म को देखे बगैर, राज्य सरकारों ने पूरे देश में उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाइयां की हैं जिन्होंने सरकारी निर्देशों का उल्लंघन किया है। लेकिन, तबलीगी जमात के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई ने भारत और विदेश में एक तीखी बहस को जन्म दिया। आपका इस बारे में क्या कहना है?
जवाब- मेरी भावना यह है कि अगर हम उन रिपोर्ट को देखें जो हमारे पास उपलब्ध हैं, तो यह कहना पूरी तरह सही नहीं होगा कि हमने उन सभी लोगों व समूहों के खिलाफ ऐसा ही रवैया और कानूनी रुख अपनाया जिन्होंने लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन किया। हम इन तमाम दिक्कतों पर समानता के विचार के ढांचागत समायोजन से काबू पा सकते हैं। अब, तबलीगी जमात के मुद्दे को देखें। मैं निजी तौर पर इसके कई विचारों और इसके काम करने के तरीके से असहमत हूं। इनसे अतीत में मेरे कई संवाद हो चुके हैं। लेकिन, मैं भारत में कोविड-19 के फैलाव को तबलीगी जमात से जोड़ने के लिए चलाए जा संदेहपूर्ण अभियान से असहमत हूं। निश्चित ही, जब देश में कोविड-19 के फैलाव के कई मामले पहले ही रिपोर्ट हो चुके थे, तब ऐसे में तबलीगी जमात को अपना जलसा करने में थोड़ा और सतर्क रहना चाहिए था।
एक मुस्लिम समूह के तौर पर यह उनका धार्मिक दायित्व था कि वे ऐसी सतर्कता बरतते। इसी के साथ, हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि जब औपचारिक रूप से प्रतिबंध लग गए थे, उस समय तबलीग के जलसे को अनुमति देने के मामले में जिम्मेदारी आयोजकों और इसके आयोजन की अनुमति देने वाले अधिकारियों के बीच बराबर बंटनी चाहिए। इसके बजाए, तबलीग के खिलाफ आरोप और कार्रवाई ने पूरे देश में पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक विद्वेषपूर्ण प्रतिशोध से भरे अभियान का रूप ले लिया। इस आशय की भी रिपोर्ट हैं कि कुछ इलाकों में यह विद्वेषपूर्ण अभियान शारीरिक हिंसा की वजह भी बना। आपात स्थितियों से लोकतांत्रिक समाज इस तरह से नहीं निपटा करते।
सवाल- कई केंद्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि तबलीगी जमात मरकज में शामिल होने वाले कई विदेशियों ने देश के वीजा नियमों का उल्लंघन किया। एक जिम्मेदार धार्मिक संस्था के रूप में तबलीग जमात के लिए इस तरह से काम करना क्या सही है?
जवाब- मुझे इस खास मामले के पूरे विवरण नहीं पता हैं, जिनका आपने जिक्र किया। अगर आपके सवाल में इसका उल्लेख है तो इससे देश के कानून के हिसाब से निपटा जाना चाहिए जिसमें इस तरह के उल्लंघनों के लिए दंड का प्रावधान है। देश की कानून व्यवस्था का सम्मान करना सभी की जिम्मेदारी है। कोई भी इस फर्ज से बच नहीं सकता।
सवाल- आप पश्चिम एशिया में भारत के खिलाफ पाकिस्तान प्रायोजित इस्लामोफोबिया प्रोपेगेंडा को किस तरह से देखते हैं?
जवाब- सबसे पहले तो, मेरे विचार से हमें भारत के खिलाफ पाकिस्तान प्रायोजित प्रोपेगेंडा और अपने देश के लोगों द्वारा उठाई गई जायज चिंताओं के बीच फर्क करना चाहिए। हमें देखने की जरूरत है कि पाकिस्तान अपनी विदेश नीति की जरूरतों के हिस्से के तौर पर 1947 से ही क्या करता आ रहा है। इस मुद्दे को हमें अपनी सक्रिय विदेश नीति से निपटना होगा। लेकिन, अपने नागरिकों की वाजिब चिंताओं को हमें आंतरिक स्तर पर लोकतांत्रिक फ्रेमवर्क में हल करना होगा। मुझे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है और मैंने इन अवसरों का इस्तेमाल हमारे देश की महानता और परंपराओं को उजागर करने के लिए किया।
सवाल- केंद्र द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और वजीफा व अन्य वित्तीय मदद के जरिए इन्हें कुछ विशेषाधिकार देने के बावजूद मुस्लिम युवाओं को गुमराह करने के प्रयास हो रहे हैं। क्या युवाओं को गुमराह करने की नियोजित कोशिश हो रही है?
जवाब- सबसे पहली बात, आरक्षण या स्कालरशिप को विशेषाधिकार मानना ही अपने आप में समस्या है। इसके बजाय यह कदम देश में अल्पसंख्यक अधिकारों का हिस्सा हैं। आपके सवाल के दूसरे हिस्से पर कहना है कि मुझे नहीं लगता कि देश के मुस्लिम युवा को कोई गुमराह कर सकता है। हमारा इतिहास का अनुभव हमें इस पर विश्वास करने की इजाजत नहीं देता।
–आईएएनएस
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