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इस गांव में गायों की पूजा ही नहीं, बल्कि शाम को आरती भी होती है!

टीकमगढ़: सियासी दलों के लिए गाय और गंगा वोट हासिल करने का हथियार हो सकता है, मगर समाज के लिए आज भी गाय और गंगा पूज्यनीय है। बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के नंदनपुर (गोर) में पहुंचकर गाय के महत्व को समझा जा सकता है। यह ऐसा गांव है, जहां गौशाला में गायों की नियमित तौर पर सिर्फ पूजा ही नहीं होती, बल्कि शाम को आरती भी होती है।

भारतीय मान्यताओं के मुताबिक, द्वापर युग में यदुवंशी भगवान कृष्ण और गाय का संबंध आज भी धार्मिक ग्रंथों और कथाओं का हिस्सा है। कृष्ण का नाता नंद गांव से रहा है। टीकमगढ़ जिले के नंदनपुर (गोर) की तुलना नंद गांव से तो नहीं की जा सकती, मगर इतना तो कहा ही जा सकता है, कि यहां के लोग गाय को अब भी माता का दर्जा देते हैं।

यादव बाहुल्य नंदनपुर (गोर) के बाहरी हिस्से में बनी गौशाला का शाम के समय नजारा ही निराला होता है, यहां बजती गरुण घंटी और झालर के बीच गाई जाती आरती बरबस हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। यह सिलसिला कोई आज शुरू नहीं हुआ है, बल्कि वर्षो से चला आ रहा है।

गौशाला में ही निवास करने वाले चंदन सिंह ने आईएएनएस को बताया, “यहां गायों की देखभाल की जाती है, उन्हें उचित पोषाहार दिया जाता है, इसके अलावा यहां जैविक खाद बनाई जाती है, जिसका उपयोग खेती में किया जाता है। लोगों का रवैया भी सकारात्मक है और सभी गाय की रक्षा में लगे हुए हैं।”

गौशाला की देखभाल करने वाले प्रदीप बताते हैं, “यहां 25 गाय हैं, जिन्हें वे नियमित रूप से सानी (भूसा, खली, नमक) देते हैं। तीन गाय ऐसी हैं जो अभी दूध देती हैं, एक गाय के दूध से गौशाला में रहने वालों का काम चल जाता है, शेष दूध का अन्य उपयोग होता है। गौ मूत्र को इकट्ठा कर लोगों को उपलब्ध कराया जाता है, वहीं गोबर की खाद बनाई जाती है।”

गांव के युवा हरि सिंह बताते हैं, “लगभग 50 घर और 300 की आबादी वाले इस गांव के हर घर में मवेशी हैं, सभी के लिए गाय मां के समान है, यही कारण है कि गौशाला गांव के लोगों के ही सहयोग से चल रही है। यहां गोबर गैस प्लांट भी बनाया जा रहा है, इसके जरिए बिजली और खाना बनाने के लिए गैस भी बनाई जाएगी।”

बुजुर्ग भागीरथी यादव (64) की मानें तो इस गांव में पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपराओं को अब भी लोग बनाए हुए हैं, यहां पूरी तरह नशाबंदी है, मांस का सेवन नहीं करते, मुर्गी-मुर्गा पालन नहीं होता, अंडा का सेवन नहीं करते। वहीं धार्मिक भाव होने के कारण यहां के लोग न तो लड़ाई-झगड़ा करते हैं और न ही चोरी-चकारी से कोई उनका नाता है। यही कारण है कि गांव में न तो पुलिस आती है और न ही घरों में ताले लगते हैं। लगभग हर घर में एक गाय या दुधारू मवेशी है।

गाय की रक्षा की बजाय उस पर सियासत करने वालों के लिए यह गांव सीख देने वाला है कि गाय को अगर माता कहते हैं तो उसकी देखभाल करें, न कि उसके जरिए अपनी सियासी रोटी सेंकें। गौ मूत्र, गोबर और दूध से इंसान के जीवन खुशहाल बनाएं न कि विवाद को जन्म दें।

–आईएएनएस

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