एस.पी. चोपड़ा, नई दिल्ली। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया हैंडलिंग वर्कर्स यूनियन का 16वां वार्षिक अधिवेशन नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इस अवसर पर यूनियन के महामंत्री लक्ष्मण सिंह ने कहा कि यूनियन विभिन्न राज्यों की खाद्य एजेंसियों, जैसे दिल्ली स्टेट सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन लिमिटेड, स्टेट वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन. पनसप, हैफेड, कनफेड, मार्कफेड, एग्रो, नैफेड, एसएमआई में कार्यरत श्रमिकों को समाजिक और आर्थिक न्याय दिलाना सुनिश्चित करने के लिए संघर्षरत है। श्रमिकों का शोषण रोकने के लिए यूनियन द्वारा ठेका श्रम (उन्मूलन और विनियमन अधिनियम 1970, ईपीएफ और मिसलेनियस प्रोविजन एक्ट 1952, श्रमिक मुआवजा कानून 1921 और न्यूनमत मजदूरी कानून 1948 आदि कानूनों को लागू कराने के लिए भी यूनियन कोशिश कर रही है।
फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया हैंडलिंग वर्कर्स यूनियन के महामंत्री लक्ष्मण सिंह ने बताया कि श्रम कानूनों के तहत विभिन्न राज्यों, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में भारतीय खाद्य निगम में ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर श्रमिकों का विभागीयकरण करने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु में ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर सीधे भुगतान प्रणाली से भुगतान किया जा रहा है। वहीं अन्य राज्यों जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा प्रदेश में फूड एजेंसियों से ठेकेदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए वार्ता चल रही है।
यूनियन के 16वें वार्षिक अधिनवेशन में निम्नलिखित संकल्प पारित किए गए।
ठेका श्रम की समाप्ति
ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन अधिनियम) 1970 के प्रावधान के तहत जिन डिपो पर नियमित रूप से काम चल रहा है, वहां ठेकेदारी प्रथा को खत्म किया जाए। ठेका प्रथा की समाप्ति पर विचार करने के लिए जी. सी. असनानी समिति और ईश्वर प्रसाद कमिटी गठित की गई थी। कमिटी ने कहा था जिन डिपो पर 240 दिन या उससे अधिक काम उपलब्ध हो, वहां ठेका प्रथा समाप्त की जाए, लेकिन देखा गया है कि 240 दिन या उससे अधिक काम उपलब्ध होने पर ठेका प्रथा बदस्तूर चल रही है।
ठेकारत श्रमिकों को विभागीय श्रमिकों के समान ही वेतन और अन्य भत्ते उपलब्ध कराए जाएं। ठेका श्रम (विनियमन और उन्मूलन अधिनियम) 1970 में कहा गया है कि ठेकेदार को न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान करना जरूरी है। नियम 225 के उपनियम 2 (5) में कहा गया है कि अगर ठेकारत श्रमिक विभागीय श्रमिक के अनुसार ही काम करता है तो वह भी विभागीय श्रमिक के सामान ही समान वेतन पाने का अधिकारी है।
समान काम के लिए समान वेतन
देखा गया है कि खाद्य निगम एक ही तरह का काम विभिन्न श्रेणियों में कार्यरत श्रमिकों से ले रहा है, किंतु वेतन और सुविधाओं में काफी अंतर है। भेदभाव की नीति को छोड़कर समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
श्रमिकों की कार्यक्षमता के अनुसार काम उपलब्ध हो
भारतीय खाद्य निगम अपने विभागीय और डीपीएस डिपो और एनडब्ल्यूएनपी संबंधित प्रांगण प्राइवेट पार्टी को किराए पर दे रही है। वहीं अन्य फूड एजेंसियां (प्राइवेट पार्टी, सीडब्ल्यूसी, और एसडब्ल्यूसी और पीईजी) के गोदामों को भाड़े पर लेकर ठेकेदारों से काम करवा रही है। इस पर रोक लगाई जाए और श्रमिकों की कार्यक्षमता के अनुसार उनसे काम कराया जाए।
एफसीआई हैंडलिंग वर्क्स यूनियन मांग करती है कि निगम के बंद डिपो और रेल साइडिंग को फिर खोला जाए और बेकार पड़े श्रमिकों को फिर से काम पर लगाया जाए। रेल साइडिंग और रेल हेड पर समयानुसार रैक लगाई जाए।
यूनियन का कहना है कि श्रमिकों को मिल रही सुविधाओं में कटैती न की जाए और पहले से मिल रही सुविधाओं को फिर लागू किया जाए।
यूनियन का कहना है कि लंबित पड़े औद्योगिक विवादों और याचिकाओं को जल्द से जल्द से निपटाया जाए।
एफसीआई हैंडलिंग वर्कर्स यूनियन यह मांग करता है कि खाद्य निगम की खाली पड़ी जमीन पर निगम के गोदामों का ही निर्माण कराया जाए।
निगम में कार्यरत श्रमिकों को न्यूनतम मजूरी का भुगतान किया जाए। इसे सुनिश्चित करने के लिए उन्हें चेक से पेमेंट जाए। श्रमिकों और उनके आश्रितों को ईएसआई के तहत मेडिकल सुविधा दिलाई जाए। न्यूनतम मजदूरी का 50 फीसदी हाजिरी भत्ता दिया जाए।
नोटिफाइड डिपो में जहां नो वर्क, नो पे सिस्टम लागू किया गया है, उसका पहले की तरह विभागीयकरण किया जाए क् क्योंकि निगम में श्रमिकों की काफी कमी है।
पुलिंग या ट्रांसफर पर रोक लगाई गई.
विभागीय श्रमिकों से निगम की ओर से की जा रही रिवकरी पर रोक लगाई जाए।
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