रीतू तोमर,
नई दिल्ली| दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी किसी तरह की कोताही बरतने के मूड में नहीं है। वह दिल्ली और बिहार विधानसभा जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती, यही वजह है कि पार्टी ने इस बार नया प्रयोग करते हुए अपने सभी मौजूदा पार्षदों को टिकट नहीं दिया है, लेकिन भोजपुरी फिल्म स्टार मनोज तिवारी का यह नया दांव पार्टी पर उल्टा पड़ने लगा है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने अपने इस फैसले की वजह युवाओं को तरजीह देना बताया है, लेकिन मौजूदा पार्षदों को टिकट नहीं मिलने से विरोध की आवाजें उठने लगी हैं, भले ही वह दबी जुबान में ही क्यों न हों!
दूसरी तरफ, पार्टी के फैसले में विरोधाभास भी दिख रहा है। पार्टी ने 60 से अधिक उम्र के लोगों को टिकट देकर खुद विरोधियों को बोलने का मौका भी दे दिया है।
एमसीडी चुनाव को अपनी नाक का सवाल बना चुकी भाजपा शुरू से ही नए चेहरों को मौका देने और भाई-भतीजावाद के खिलाफ जंग छेड़ने की बात कह रही थी, लेकिन भाजपा उम्मीदवारों की सूची अलग ही कहानी बयां कर रही है।
पार्टी ने प्रदेश के तीन उपाध्यक्षों और एक उपाध्यक्ष की पत्नी सहित तीन जिलाध्यक्षों और दो जिलाध्यक्षों की पत्नी को टिकट दिया है। इनमें भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष पूनम पराशर झा और पूर्वाचल मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विपिन बहारी शामिल हैं।
वहीं, भाजपा की मौजूदा पार्षद हीर बानो इस्माइल की बेटी रुबीना को कुरैश नगर से टिकट दिया गया है तो पश्चिमी-उत्तरी दिल्ली से सांसद उदित राज के भतीजे विजय को मंगोलपुरी बी-वार्ड से टिकट दिया गया है। मनोज तिवारी के करीबी राज कुमार बल्लान को पूर्वी दिल्ली के ब्रहमपुरी से टिकट दिया गया है, जबकि केंद्रीय मंत्री विजय गोयल के करीबी जय प्रकाश जेपी को सदर बाजार से टिकट दिया गया है।
कुल मिलाकर, देखा जाए तो पार्टी ने मौजूदा पार्षदों को टिकट नहीं दिया, लेकिन दबंग पार्षदों की बगावत के डर से उनके सगे-संबंधियों को टिकट देकर चुनाव में खड़ा कर दिया।
पार्टी के नए दांव से मौजूद पार्षद हालांकि खुश नहीं हैं, फिर भी अनुशासन निभाते हुए वे पार्टी के साथ खड़े होते दिखाई दे रहे हैं।
शालीमार के वार्ड नंबर 56 से उपचुनाव जीतकर मात्र नौ महीने पहले ही पार्षद बने भूपेंदर मोहन भंडारी ने आईएएनएस को बताया, “मुझे पार्षद बने हुए सिर्फ नौ महीने ही हुए हैं। मुझे जनता के लिए काफी काम करना था, लेकिन अब पद नहीं रहेगा। फिर भी मैं पार्टी के फैसले से पूरी तरह से सहमत हूं। पार्टी ने कुछ सोच-समझकर ही यह फैसला लिया होगा।”
वहीं, पूर्वी दिल्ली के वार्ड नंबर 12ई से पार्षद संध्या वर्मा ने आईएएनएस से कहा, “पार्टी को कम से कम उन पार्षदों को तो टिकट देना ही चाहिए था, जिन्होंने अच्छा काम किया है। काटना ही था तो उन पार्षदों का टिकट काटा जाना चाहिए था, जिनका रिकार्ड खराब रहा है। खैर, जो भी हो, हम पार्टी के फैसले के साथ खड़े हैं।”
संगम विहार वार्ड नंबर 76 से पार्षद माधव प्रसाद कहते हैं, “पार्टी का फैसला सर्वोपरि है। पार्टी ने मुझे 2007 और फिर 2012 में टिकट दिया था। पार्टी ने इस बार टिकट नहीं दिया तो कुछ सोच-समझकर ही नहीं दिया होगा। पार्टी ने ऐसे कई कार्यकर्ता हैं जो पिछले कई दशकों से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें आज तक मौका नहीं मिला। मैं मानता हूं कि सबको मौका मिलना चाहिए, पार्टी युवाओं को मौका देना चाहती है तो उसके फैसले का स्वागत है।”
कई मौजूद पार्षद ऐसे भी हैं, जो पार्टी के फैसले से सहमत नहीं दिखे और उन्होंने अलग राह पकड़ ली। गोविंदपुरी से पार्षद चंदर प्रकाश ने भाजपा की ओर से सूची जारी किए जाने से पहले ही कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया, जबकि नवादा से पार्षद कृष्ण गहलोत ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पूर्वी दिल्ली की एक मौजूदा महिला पार्षद ने भी बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल किया है। शायद यही वजह रही कि भाजपा ने नामांकन दाखिल करने की आखिरी समय-सीमा से कुछ ही घंटे पहले अपनी आखिरी सूची जारी की। विपक्ष इसे ‘सोची-समझी रणनीति’ कह रहा है।
कांग्रेस की दिल्ली इकाई के एक कार्यकर्ता ने आईएएनएस से कहा, “भाजपा ने आखिर नामांकन से कुछ ही घंटे पहले अपनी आखिरी सूची जारी क्यों की? इसका साफ मतलब है कि वह नहीं चाहती कि उनके पार्षदों को सोचने का कुछ और समय न मिले।”
उन्होंने कहा कि भाजपा चुनाव में युवाओं को तरजीह देने का ढिंढोरा पीट रही थी, लेकिन उसने 60 साल से अधिक उम्र के कई लोगों को टिकट दिया है, जिसमें मयूर विहार से उम्मीदवार किरण वैद्य और पंजाबी बाग से कैलाश सांकला जैसे उम्मीदवार हैं।
दरअसल, भाजपा पर ‘गुजरात मॉडल’ हावी है। पार्टी ने मौजूदा पार्षदों का टिकट काटने का प्रयोग गुजरात में भी किया था, जो खासा सफल भी रहा था। मतदान 23 अप्रैल को होने जा रहा है और 26 अप्रैल को जब नतीजों की घोषणा होगी, तभी पता चलेगा कि भाजपा का नया दांव कितना सफल रहा।
गौरतलब है कि साल 2012 में एमसीडी को तीन हिस्सों- उत्तरी दिल्ली नगर निगम, पूर्वी दिल्ली नगर निगम और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में बांट दिया गया था। 272 सदस्यीय एमसीडी के दायरे में उत्तरी दिल्ली में कुल 104 वार्ड, पूर्वी दिल्ली में 64 जबकि दक्षिणी दिल्ली में 104 वार्ड हैं। तीनों नगर निगमों पर भाजपा काबिज है, उसके सामने वापसी करने की चुनौती है। उसका मुकाबला दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) और दिल्ली पर 15 साल राज कर चुकी कांग्रेस से है।
–आईएएनएस
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