नई दिल्ली: एक महीने के सेवा-विस्तार की बैसाखियों पर टिके दिल्ली के काम चलाऊ कमिश्नर अमूल्य पटनायक बे-आबरु होकर दिल्ली पुलिस जब बाहर होंगे, तो उन्हीं के बैच के सच्चिदानंद श्रीवास्तव (एस.एन. श्रीवास्तव) दिल्ली के कमिश्नर की कुर्सी पर बैठाए जाएंगे। केंद्रीय हुकूमत ने इसका फैसला मंगलवार को दिन में कर लिया था।
मंगलवार शाम होते-होते एस.एन. श्रीवास्तव केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) से दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त कानून एवं व्यवस्था बनाकर भेज दिये गए। यह वही मंगलवार था जिस दिन, अमूल्य पटनायक की ढीली पुलिसिंग के चलते उत्तर पूर्वी दिल्ली में फैले दंगों ने मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा। जाफराबाद के दंगों की आग की जलन कम करने को उसी मंगलवार को आधी रात के वक्त प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल सीलमपुर जाफराबाद की सड़कों पर उतरे थे। उस वक्त भी दिल्ली के काम चलाऊ पुलिस कमिश्नर पटनायक की भूमिका ‘खलनायक’ की ही साबित हुई। वजह थी कि, डोभाल की सीलमपुर जाफराबाद मौका-मुआयना परेड में पटनायक का कहीं दूर-दूर तक दीदार न होना।
जबकि उसी दिन शाम के वक्त दिल्ली पुलिस में वापिस लाये गये एस.एन. श्रीवास्तव आधी रात के वक्त डोभाल के साथ डीसीपी उत्तर पूर्वी जिला वेद प्रकाश सूर्य के सीलमपुर स्थित दफ्तर में हुई ‘क्लास-बैठक’ में मौजूद थे। उस बैठक में विशेष पुलिस आयुक्त कानून एवं व्यवस्था (उत्तरी परिक्षेत्र) सतीश गोलचा भी मौजूद थे। एनएसए की उस आधी रात की महत्वपूर्ण बैठक से मगर दिल्ली के काम चलाऊ कमिश्नर अमूल्य पटनायक की नदारदगी ने साबित कर दिया था कि, अब नायक को शाह की हुकूमत भी दिल्ली पुलिस के चलन से बाहर कर चुकी है, वरना एनएसए की बैठक से पटनायक का कथित रूप से गायब रहने की भला किसे उम्मीद होगी?
इतना ही नहीं, अगले दिन यानि बुधवार को दोपहर बाद एनएसए डोभाल 15 घंटे के भीतर ही दुबारा जाफराबाद की जलन कम करने उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले के डीसीपी दफ्तर जा पहुंचे। उस वक्त भी एनएसए की बैठक से दिल्ली पुलिस और दिल्ली के लिए ‘खलनायक’ बन चुके अमूल्य पटनायक गायब थे। न ही दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल मंगलवार की रात और फिर बुधवार को दिन के वक्त एनएसए की बैठक में दिखाई दिए।
उन तमाम तस्वीरों ने साफ कर दिया था कि, पटनायक जिस सेवा-विस्तार की खुशी मनाने को उतावले थे। उनकी उस खुशी को जाफराबाद दंगों की जलन और उसमें मारे गये 40 बेकसूरों की बेरहम मौत ने कलंकित कर डाला है। एस.एन. श्रीवास्तव की अचानक दिल्ली पुलिस में कराई गयी ‘इंट्री’ भी मंगलवार को मुंबईया फिल्म ‘नायक’ में अनिल कपूर की इंट्री सी लगी।
शाह की हुकूमत ने जिस तरह अचानक दिल्ली पुलिस में श्रीवास्तव की इंट्री कराई, उससे साफ होने लगा था कि, दिल्ली पुलिस की खुलेआम छीछालेदर कराने वाले पटनायक महकमे से बेइज्जत होकर ही बाहर जाएंगे। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों के दाग इसके गवाह हैं। अमूल्य पटनायक दिल्ली के कैसे सबसे खराब पुलिस कमिश्नर साबित हुए? इसके गवाह और सबूत हैं जाफराबाद, मुस्तफाबाद, कर्दमपुरी, शिव विहार, चांद बाग की गलियों में दंगे के बाद आज तक फैले पड़े वो ईंट-पत्थर, जिन्होंने तमाम बेगुनाहों की जान ले ली। दंगों में घायल होकर गुरु तेग बहादुर और एलएनजेपी और उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले के गली-कूंचों के छोटे-छोटे अस्पतालों में पड़े जिंदगी की भीख मांग रहे तमाम निरीह लोग और उनके बेबस तीमारदार भी पटनायक से पूछ रहे हैं कि, आखिर उनका कसूर क्या था? जोकि उन्हें दंगों की आग में दिल्ली पुलिस ने झुंकवा डाला।
अब शाह की सरकार ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी पर फेरबदल का जो आदेश निकाला है, उससे हाल-फिलहाल कमिश्नर तो एस.एन. श्रीवास्तव ही बने हैं, मगर आदेश बेहद उलझा हुआ है। श्रीवास्तव को इस आदेश के हिसाब से ‘दिल्ली का फुल टाइम’ कमिश्नर नहीं बनाया गया है। वे फिलहाल पटनायक के निपटते ही पुलिस कमिश्नर तो बन जायेंगे, लेकिन अगले आदेशों तक के लिए ऐसे में सवाल फिर मुंह बाये सामने खड़ा है कि आखिर..क्या सरकार की मंशा श्रीवास्तव को ‘फुल टाइम’ कमिश्नर की कुर्सी सौंपने की नहीं है? क्या शाह की सरकार आने वाले वक्त में मुनासिब आईपीएस हाथ लगते ही उसे दिल्ली के नियमित कमिश्नर की कुर्सी सौंप देगी?
–आईएएनएस
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