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अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम देखेंगे

कमिश्नर आते जाते हैं, एसएचओ जमे रहते हैं

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना द्वारा तीन एसएचओ को निलंबित या लाइन हाजिर किया गया है। यह मामले पुलिस का असली चेहरा पेश करने के लिए पर्याप्त है। इससे एक बार फिर यह साबित हो गया कि पुलिस संगीन अपराध की भी एफआईआर आसानी से दर्ज नहीं करती और पुलिस की अपराधियों से मिलीभगत भी होती है।
पुलिस कमिश्नर का पद संभालने पर राकेश अस्थाना ने कहा पुलिस का मूल काम कानून एवं व्यवस्था बनाए रखना होता है। अपराध की रोकथाम और पता लगाना है उनका फोकस बेसिक पुलिसिंग पर रहेगा।
कमिश्नर आते जाते हैं एसएचओ जमे रहते हैं।-
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की नीयत और प्राथमिकता अगर वाकई बेसिक पुलिससिंग हैं तो उन्हें एसएचओ नियुक्त करने की प्रक्रिया में भी सुधार करना चाहिए।
दिल्ली के थानों में ऐसे एसएचओ भी हैं जो कई सालों से एसएचओ के पद पर ही जमे हुए हैं। कमिश्नर आते जाते रहते हैं लेकिन यह एसएचओ जमे रहते हैं। इनके सिर्फ़ थाने बदलते हैं।
भ्रष्टाचार का कारण-
अपराध को दर्ज न करना,अपराधियों को संरक्षण देना सबसे बड़ी समस्या है। अवैध शराब का धंधा, सट्टेबाजी, अवैध पार्किंग, अवैध निर्माण, विवादित संपत्ति ,पैसे के लेन देन के विवाद के मामले आदि भी पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा जरिया माने जाते हैं। इसी वजह से पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
जिन कारणों से पुलिस कमिश्नर ने एसएचओ को निलंबित या लाइन हाजिर किया है वह ही समस्या/भ्रष्टाचार जड़ भी है। कमिश्नर अगर वाकई पुलिस में कोई सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें इस जड़ पर ही वार करना चाहिए।
आंकड़ों की बाजीगरी बंद हो-
अपराध को कम दिखाने के लिए  मामलों को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा को बंद करना चाहिए।
अपराध के सभी मामलों को सही तरह दर्ज किए जाने से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।
लेकिन अपराध को दर्ज न करना एसएचओ से लेकर  कमिश्नर/आईपीएस अफसर तक सभी के अनुकूल है।
आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर वह खुद को सफल अफसर दिखाते हैं। जबकि अपराध को दर्ज न करके पुलिस एक तरह से अपराधी की मदद करने का गुनाह ही करती है।
अपराध सही दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने आएगी। तभी अपराध और अपराधियों से निपटने की  कोई भी योजना सफल हो सकती है। अभी तो आलम यह है कि मान लो कोई लुटेरा पकड़े जाने पर सौ वारदात करना कबूल कर लेता है लेकिन उसमें से दस ही दर्ज पाई जाएगी । लेकिन अगर सभी सौ वारदात दर्ज की जाती तो लुटेरे को उन सभी मामलों में जमानत कराने में ही बहुत समय और पैसा लगाना पड़ता। लुटेरा ज्यादा समय तक जेल में रहता।
 इस तरह अपराध और अपराधी पर काबू किया जा सकता है।
अफसरों पर दबाव जरूरी-
अपराध के सभी मामले दर्ज होंगे तो तभी एसएचओ,एसीपी और डीसीपी पर अपराधियों को पकड़ने का दबाव बनेगा।
एसएचओ पर जब मामले दर्ज करने और अपराधियों को पकड़ने का मूल काम करने का दबाव होगा, तो ऐसे में वह ही एसएचओ लगेगा जो वाकई मूल पुलिसिंग के काबिल होगा।
मूल काम ही नहीं करते-
अभी तो आलम यह है कि लूट,स्नैचिंग, मोबाइल /पर्स चोरी  आदि के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं किए जाते। पुलिस चोरी गए वाहन को तलाश करने की कोई कोशिश नहीं करती। आलम तो यह है कि वाहन चोरी की सूचना पर पुलिस मौके पर भी नहीं जाती।
आईपीएस  भी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते है कि  वाहन मालिक को बीमा की रकम तो मिल ही जाती है।
आईपीएस अफसरों के ऐसे कुतर्क से उनकी काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता। पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना होता है।  लेकिन पुलिस अपना मूल काम ही नहीं करती। इसीलिए लुटेरे और वाहन चोर बेखौफ हो कर अपराध कर रहे है।
पुलिस सिर्फ वसूली के लिए है?-
पुलिस अगर अपराध ही सही दर्ज न करे या अपराधियों को पकड़ने की कोशिश ही न करें तो क्या पुलिस सिर्फ़ अवैध वसूली,भ्रष्टाचार और लोगों से बदसलूकी करने के लिए ही है।
अब एसएचओ की नौकरी आराम से वसूली करने और अपने आकाओं की फटीक करने की ही रह गई लगती है।
राकेश अस्थाना के पास मौका है-
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने कहा कि बेसिक पुलिसिंग उनकी प्राथमिकता है। राकेश अस्थाना की विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण एक अलग छवि बनी हुई है। लेकिन अब राकेश अस्थाना के पास अपनी पेशेवर काबिलियत की छाप छोड़ने का मौका है।
एसएचओ निलंबित क्यों नहीं किया?-
पहाड़ गंज के एसएचओ विशुद्धानन्द झा को लाइन हाजिर किया गया और सिपाही अमित कुमार को नौकरी से बर्खास्त किया गया है। इलाके में संगठित अपराध करने वालों को शह देने / मिलीभगत के आरोप में यह कार्रवाई की गई है।
 शराब के बार वालों से सांठगाठ के आरोप में सिपाही अमित को लाइन हाजिर भी किया गया था। इसके बाद सिपाही अमित का तबादला आई पी एस्टेट थाने में कर दिया गया था। इसके बावजूद उसकी पहाड़ गंज इलाके में सट्टेबाजों और बार वालों से सांठगांठ जारी थी।
सवाल यह उठता है कि सिपाही अमित को लाइन हाजिर करने के बाद वापस थाने में क्यों लगाया गया।
इलाके में पुलिस की शह या मिलीभगत से संगठित अपराध हो रहा था तो एसएचओ को भी निलंबित क्यों नहीं किया गया।
 शराबी एस एच ओ निलंबित।-
 रोहिणी जिले में विजय विहार थाने के
सब- इंस्पेक्टर उमेश ने आरोप लगाया  कि एस एच ओ सुधीर कुमार ने शराब के नशे में उसे गालियां दी।
डीसीपी ने बुलाया एसएचओ नहीं आया-
रोहिणी जिला के डीसीपी प्रणव तायल इस संदर्भ में दरियाफ्त करने  विजय विहार थाने  गए। एसएचओ सुधीर कुमार थाने में नहीं मिला। एसएचओ सुधीर कुमार को थाने में हाजिर होने के लिए संदेश भेजा गया। लेकिन वह थाने में नहीं आया।
इस पर एसएचओ को निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया गया।
रेड लेबल-
एसएचओ की अलमारी में रेड लेबल शराब की 10 बोतलें मिली।
पता चला है कि पहले भी सुधीर कुमार को उनके व्यवहार को लेकर उन्हें हिदायत दी गई थी।
निरंकुश बेखौफ एसएचओ- 
लेकिन इस मामले से अंदाजा लगाया जा सकता है कि एसएचओ कितने निरंकुश और बेखौफ हो गए हैं। डीसीपी थाने मे मौजूद है लेकिन एसएचओ उनके बुलाने पर भी थाने में नहीं आया।
इसका मूल कारण यह है कि पैसे या सिफारिश के दम पर जब तक एसएचओ लगाए जाएंगे तो ऐसा ही होगा।
शराब पीकर अपने मातहत पुलिसकर्मियों को गालियां देने वाला जो एसएचओ अपने डीसीपी के बुलाने पर भी हाजिर नहीं होता ,वह भला आम लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता।
ऐसे एसएचओ कानून, पुलिस और जनता के प्रति वफादार नहीं होते। इनकी निष्ठा सिर्फ उस आईपीएस या नेता के प्रति होती हैं जो इन्हें एसएचओ लगवाते हैं।
पुलिस कमिश्नर को आईपीएस अफसरों को यह आदेश देना चाहिए कि वह रात में थानों में अचानक दौरा करें।
एसएचओ ने एफआईआर दर्ज नहीं की-
एसएचओ कितने निरंकुश हो गए हैं इसका ताजा उदाहरण पूर्वी जिले का सनसनीखेज मामला भी है। अजीत 4 जून को लापता हो गया उसके परिजन न्यू अशोक नगर थाने में अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराने गए लेकिन उनकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की गई। एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें पता चला कि पांडव नगर थाने के सिपाही मोनू सिरोही ने अजीत को पीटा और अपहरण कर लिया।
यह खुलासा होने पर 27 जुलाई को पुलिस ने इस मामले की रिपोर्ट दर्ज की गई। तब यह खुलासा हुआ कि सिपाही मोनू और उसके 3 साथियों ने अजीत को इतनी बुरी तरह पीटा कि उसकी मौत हो गई। अभियुक्तों ने अजीत के शव को गंग नहर में फेंक दिया।
सिपाही मोनू और उसके 3साथियों को गिरफ्तार किया गया।
एफआईआर दर्ज नहीं करनेवाले एसएचओ प्रमोद कुमार को निलंबित किया गया।
कमिश्नर के दावे की धज्जियां उड़ाते हैं।-
कमिश्नर और आईपीएस अफसर दावा करते हैं कि एफआईआर आसानी से दर्ज की जाती है लेकिन इस मामले ने उनके दावे की धज्जियां उड़ा दी।
सच्चाई यह है कि अपराध कम दिखाने के लिए पुलिस द्वारा लूट और स्नैचिंग की ज्यादातर वारदात की भी एफआईआर दर्ज नहीं की जाती या हल्की धारा में दर्ज की जाती है।
थाने में बंधक बना कर वसूली-
पुलिस वाले कितने बेखौफ होकर अपराध तक कर रहे हैं इसका अंदाजा जामिया नगर थाने के मामले से लगाया जा सकता है। इस साल मई में वरुण को हवलदार राकेश कुमार ने अगवा करके थाने में ही बंधक बना कर रख लिया। वरुण को रिहा करने की एवज में  परिजनों से तीन लाख रुपए की मांग की गई।
वरुण की बहन की शिकायत पर सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने तफ्तीश की और वरुण को जामिया नगर थाने के अंदर हवलदार के कमरे से मुक्त कराया गया।
इस मामले में हवलदार राकेश, होमगार्ड मुकेश और मुखबिर आमिर को गिरफ्तार किया गया।
हवलदार राकेश को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया।
एसएचओ को बचाया-
लेकिन इस मामले में एसएचओ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। थाने मे होने वाली किसी भी गतिविधि के लिए एसएचओ जिम्मेदार होता है।
थाने में किसे लाया गया और किसे अवैध रुप से बिठाया गया इसके लिए जब तक एसएचओ को पूरी तरह जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी ऐसे मामले रुक नहीं सकते।
ईमानदारी और नैतिकता का स्तर गिरा-
दिल्ली पुलिस के काबिल अफसरों में शुमार  सेवानिवृत्त एसीपी राजेंद्र सिंह का कहना है कि  किसी भी अधिकारी को पोस्टिंग और राजनीतिक संरक्षण के अपने छोटे व्यक्तिगत हितों के लिए इस शानदार पुलिस बल का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
हम यहां राजनीतिक आकाओं की सेवा करने के लिए नहीं हैं बल्कि सरकार के कार्यकारी हाथ हैं और वह भी कानून और योग्यता के अनुसार।
 वरिष्ठ अधिकारी अब निचले रैंक के लिए पिता के समान नहीं हैं और न ही संरक्षक जैसा कि पहले माना जाता था।
ईमानदारी और नैतिकता का स्तर भी गिर गया है। यदि आम पुलिसकर्मियों, संविधान और जनता के पक्ष में व्यवस्था में सुधार नहीं किया गया तो बहुत जल्द उन्हें निचले रैंक के क्रोध का सामना करना पड़ेगा।
एसएचओ उनकी शक्ति और अहंकार की प्रतिछाया/ प्रतिमूर्ति साबित हुए हैं। वे पुलिस मुख्यालय में अपने आकाओं के प्रतिनिधि होते हैं और केवल उन्हीं के प्रति जवाबदेह होते हैं। उन्हें किसी आम आदमी और कानून के शासन की परवाह नहीं है। वे आज भी शक्ति के प्रतीक हैं। वे नहीं जानते कि लोगों की सेवा कैसे की जाती है। दोनों, पुलिस मुख्यालय में बैठे पुलिस अधिकारी और उनके प्रतिनिधि, एसएचओ, वास्तव में अपने सामूहिक सौदेबाज़ी और  संयुक्त  हित के कारण इस शानदार दिल्ली पुलिस संस्थान को दिन-ब-दिन खराब कर रहे हैं। एसएचओ/एसीपी सब डिवीजन की पोस्टिंग प्रणाली को संस्थागत बनाया जाना चाहिए और यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्तिगत अधिकारी के पक्ष में संस्थागत आदेश/निर्णय के साथ मतभेद करना चाहता है, तो उसे फाइल मेंं लिखना चाहिए ताकि ऐसे सभी निर्णयों की जांच की जा सके।

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