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कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला – 2022 में चुनावी हार का डर या वजह है कुछ और ?

संतोष कुमार पाठक 

नई दिल्ली । मोदी सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले को विपक्षी दल किसानों की जीत बताने के साथ-साथ यह दावा भी कर रहे हैं कि चुनावों को देखते हुए सरकार ने यह फैसला किया है। आंदोलन करने वाले किसान संगठन इसे अपनी जीत तो बता रहे हैं लेकिन साथ ही यह भी कह रहे हैं कि अभी उनकी सारी मांगें मानी नहीं गई है।

कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंदोलन करने वाले किसानों से अपने घर,अपने गांव वापस लौट जाने की अपील भी की लेकिन किसान संगठनों के रवैये से यह साफ हो गया है कि वो अभी आंदोलन खत्म कर अपने गांव लौटने को तैयार नहीं है।

ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या सरकार को किसान संगठनों के इस तरह के रवैये का अंदाजा पहले से था या नहीं ? क्या सरकार ने सिर्फ 2022 विधान सभा चुनाव को देखते हुए अपने इतने बड़े फैसले को वापस लिया ? लगातार चुनावी जीत का दावा करने वाली भाजपा को आखिर इतने बड़े फैसले को वापस क्यों लेना पड़ा ? क्या वाकई चुनावी हार के डर ने भाजपा को इन कानूनों को वापस लेने पर मजबूर कर दिया ?

आईएएनएस ने भाजपा के कई नेताओं से बातचीत कर इन सवालों का जवाब हासिल करने की कोशिश की। आईएएनएस से बातचीत करते हुए भाजपा के एक बड़े नेता ने चुनावी हार के डर की थ्योरी को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि 20 सितंबर 2020 को संसद ने इन तीनों कृषि विधेयकों को पारित किया था और इसके बाद भी भाजपा को लगातार चुनावों में जीत हासिल हुई है । उन्होने कहा कि कृषि कानूनों के बनने के बाद मई 2021 में असम में हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा ने 60 सीटों पर जीत हासिल कर राज्य में दोबारा सरकार का गठन किया। पश्चिम बंगाल में 2016 के 3 सीटों के मुकाबले 2021 में 77 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई। पुडुचेरी में पहली बार एनडीए की सरकार बनी।

गुजरात के स्थानीय निकाय और पंचायतों के चुनाव में, यूपी के जिला पंचायतों के चुनाव में, जम्मू-कश्मीर के जिला विकास परिषद के चुनाव के अलावा ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम , लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद और असम में बीटीसी और अन्य स्वायत्त परिषदों के चुनाव में भाजपा को मिली जीत का उदाहरण देते हुए भाजपा नेता ने कहा कि देश के आम लोगों और किसानों का पूरा विश्वास पीएम मोदी और भाजपा पर बना हुआ है। इसके साथ ही उन्होने महाराष्ट्र, असम , तेलंगाना, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हुए विधान सभा उप चुनावों में भाजपा को मिली जीत का भी जिक्र किया।

भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने भी आईएएनएस से बातचीत करते हुए दावा किया कि 5 राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव की वजह से ही सिर्फ यह फैसला नहीं किया गया। हालांकि इसके साथ ही उन्होने यह भी माना कि कानूनों की वापसी के ऐलान से चुनावों पर सकारात्मक असर तो पड़ेगा ही लेकिन हकीकत में सरकार ने देश हित को देखते हुए ही वापसी का यह फैसला किया है।

आईएएनएस से बातचीत करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि सरकार किसानों की भलाई के लिए इस कानून को लेकर आई थी और प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में यह साफ कर दिया है कि ये कानून किसानों की भलाई के लिए ही लाए गए थे और कानून वापस लेने के बाद भी सरकार अपने स्टैंड पर कायम है। उन्होने आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ संगठनों द्वारा चलाए जा रहे किसान आंदोलन का लाभ देश के विरोधी तत्व उठा रहे थे और इसलिए देश हित में, देश में शांति बनाए रखने के लिए और साथ ही सद्भाव का माहौल बनाए रखने के लिए सरकार ने इन कानूनों की वापसी का फैसला किया है। भाजपा नेता ने कहा कि देश विरोधी तत्व इसे किसान बनाम सरकार, पंजाब बनाम सारा देश और हिंदू बनाम सिख की लड़ाई बनाने की भी लगातार कोशिश कर रहे थे और इन कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर प्रधानमंत्री ने इनके नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया है।

आपको बता दें कि, तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान करते समय पीएम मोदी ने स्वयं अपने भाषण में कहा था कि जो किया वो किसानों के लिए किया ( कृषि कानूनों को बनाना ) और जो कर रहा हूं ( कृषि कानूनों को वापस लेना ), वो देश के लिए कर रहा हूं।

पीएम के इस कथन और भाजपा नेता के बयान से यह साफ जाहिर हो रहा है कि आने वाले दिनों में भाजपा जीत-हार की बजाय इसे देश हित में लिया गया बड़ा फैसला बताने और साबित करने की कोशिश करती नजर आएगी और इसलिए भाजपा के दिगग्ज नेता आपसी बातचीत में इस फैसले को पीएम का मास्टर स्ट्रोक तक बताने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।

पंजाब से जुड़े भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता ने तो आईएएनएस से यहां तक कहा कि इसे सिर्फ 2022 तक ही जोड़कर मत देखिए , वास्तव में प्रधानमंत्री के इस मास्टर स्ट्रोक का असर 2024 पर भी पड़ना तय है। उन्होने तो यहां तक दावा किया कि देश की गठबंधन राजनीति पर भी इसका बड़ा असर पड़ने जा रहा है और पंजाब से लेकर दक्षिण भारत तक इसका असर नजर आएगा। क्या एनडीए कुनबे का विस्तार होने जा रहा है या क्या पुराने साथी फिर से वापस आ रहे हैं के सवाल का जवाब देते हुए उन्होने कहा कि इन सवालों का जवाब पाने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा लेकिन इतना तो तय है कि देश की गठबंधन राजनीति में बड़ा बदलाव जरूर होगा चाहे वो 2022 विधान सभा चुनाव से पहले हो या 2022 के विधान सभा चुनाव के बाद ।

–आईएएनएस

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