इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस कर्फ्यू के दौरान कुछ कार्य अलग तरह के भी कर रही है जिससे पुलिस का मानवीय चेहरा सामने आ रहा है। लेकिन कई मामलों को देख कर ऐसा भी लग रहा है कि अपनी छवि सुधारने/चमकाने के चक्कर में पुलिस अफसर मातहतों से इस तरह के कार्य भी करवा रहे हैंं जो उनसे नहीं कराने चाहिए।
कोरोना महामारी के संकट काल में लोग मदद के लिए पुलिस से भी गुहार लगा रहे है पुलिस भी अपनी ओर से हर संभव मदद करने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन कुछ कार्य अफसरों को पुलिस के जवानों की बजाए उन लोगों से ही कराने चाहिए जिनकी पुलिस मदद करती है।
18 अप्रैल को नांगलोई इलाके में स्थित मनसा राम अस्पताल के निदेशक रवींद्र डबास ने पुलिस को 100 नंबर पर फोन कर मदद मांगी। इस अस्पताल में कोरोना के 35 मरीज भर्ती हैंं। अस्पताल के पास मौजूद ऑक्सीजन सिलेंडर की ऑक्सीजन जल्दी ही खत्म होने वाली थे। अस्पताल ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम करने में असफल रहा तो पुलिस से मदद मांगी।
बाहरी जिले के एडिशनल डीसीपी सुधांंशु धामा ने समस्या की गंभीरता को समझा और एसीपी आशीष के नेतृत्व में निहाल विहार थाने की पुलिस की दो टीम बनाई गई। पुलिस ने अपने स्तर पर बवाना और मुंडका में मौजूद सप्लायर से बीस ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम कराया।
पुलिस ने इस मामले का जो वीडियो जारी किया है उसमें देखा गया कि पुलिस के सिपाही ही वाहन से सिलेंडर उतार कर अस्पताल में ले जा रहे है। पुलिस के जवानों से यह कार्य कराना सही नहीं है। पुलिस ने अपने स्तर पर भागदौड़ करके सिलेंडरों का इंतजाम करा दिया यह ही पर्याप्त और सराहनीय है। पुलिस को वाहन से सिलेंडर उतार कर ले जाने का कार्य निजी अस्पताल वालों से ही कराना चाहिए था। यह उस निजी अस्पताल का ही कार्य और जिम्मेदारी है।
पश्चिम विहार के एक्शन बालाजी अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने 19 अप्रैल की रात में पुलिस को मदद के लिए फोन किया। इस अस्पताल में भी ऑक्सीजन खत्म होने वाली थी। अस्पताल को ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले दो टैंकर फरीदाबाद (हरियाणा) और नोएडा (उत्तर प्रदेश) सीमा पर ट्रैफिक में फंसे बताए गए।
बाहरी जिला के एडिशनल डीसीपी सुधांशु धामा के अनुसार पुलिस ने बॉर्डर से लेकर अस्पताल तक टैंकरों के लिए अलग से साफ रास्ता उपलब्ध कराया। पुलिस के वाहनों की अगुवाई में टैंकर अस्पताल पहुंचाए गए। इसी दौरान पुलिस ने भगवान महावीर, संजय गांधी, जयपुर गोल्डन और अग्रसेन अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट की मदद से ऑक्सीजन के 25 सिलेंडरों का भी इंतजाम करवा दिया।
हालांकि इस दौरान पुलिस खुद यह नियम भूल गई कि अस्पताल के आसपास हॉर्न/ सायरन बजाना प्रतिबंधित है। टैंकर के आगे चलने वाली पुलिस की जिप्सी और मोटरसाइकिलों पर लगे सायरन को अस्पताल परिसर में भी लगातार बजाया गया। मौके पर मौजूद अफसर यह भूल गए कि शोर/ ध्वनि प्रदूषण से मरीजों को परेशानी होती है।
अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुनील ने इस कार्य के लिए पुलिस के स्पेशल कमिश्नर (कानून एवं व्यवस्था) संजय सिंह, संयुक्त पुलिस आयुक्त शालिनी सिंह, एडिशनल डीसीपी सुंधाशु धामा और एसएचओ बी के झा के प्रति आभार प्रकट किया। हालांकि इस सिलसिले में जो वीडियो जारी किया गया वह हास्यास्पद है। वीडियो के शुरू में सुनील के साथ खड़े पुलिसकर्मी ( एसएचओ) की आवाज सुनाई देती है जो मेडिकल सुपरिटेंडेंट से कह रहा है कि “याद हो गया”.., इसके बाद मेडिकल सुपरिटेंडेंट पुलिस द्वारा बताए गए अफसरों के नाम लेकर आभार जताने लगते हैं।
वैसे इतने नाम रटाने की जरूरत ही क्या है?
मेडिकल सुपरिटेंडेंट का दिल्ली पुलिस के प्रति आभार जताना ही पर्याप्त है। हाथी के पांव में सबका पांव होता है। लेकिन लगता है कि एसएचओ ने वरिष्ठ आईपीएस अफसरों की नजरों में आने के लिए यह सब किया होगा। हालांकि मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने पुलिस द्वारा बताए नाम की जो लिस्ट पढ़ी उसमें पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एसीपी के नाम नहीं थे।
पिछले साल देखा गया कि तालाबंदी के दौरान अनेक लोगों और संस्थाओं द्वारा लोगों की मदद के लिए राशन या अन्य जरूरत का सामान दिया गया। ऐसे भी लोग है जो इस संकट के मौके का फायदा भी पुलिस अफसरों से संपर्क/ संबंध (यानी आपदा मेंं अवसर) बनाने के लिए करते हैं। एक बैंक के पीआरओ (पूर्व पत्रकार) ने पिछले साल इस पत्रकार से भी संपर्क किया था वह चाहता था कि उसे कमिश्नर या किसी वरिष्ठ आईपीएस अफसर से मिलवा दूं, ताकि इस तरीके से बैंक अधिकारी लोगों की मदद कर अफसरों से संबंध बना ले।
लोगों और संस्थाओं को खुद अपने आप जाकर लोगों तक मदद पहुंचानी चाहिए।
अफसरों को भी पुलिसकर्मियों पर बिना वजह का बोझ नहीं डालना चाहिए। वैसे तो यहीं अफसर पुलिस पर काम का अत्यधिक दबाव और पुलिस बल कम होने का रोना रोते है। दूसरी ओर खुद अपनी छवि बनाने के लिए मातहत पुलिसकर्मियों को ऐसे कामों में लगा देते हैं जो सीधे तौर पुलिस से संबंधित भी नहीं होते हैं और पुलिस के लिए वह करना जरूरी भी नहीं है।
अफसर प्रचार के मोह में यह सब करते हैंं। मदद के लिए सामान दूसरे लोग या संस्था देती हैं और प्रचार मुफ्त में पुलिस अफसरों का होता है यानी हींग लगे न फिटकरी रंंग चोखा आए।
21 अप्रैल को जनक पुरी के अमरलीला अस्पताल वालों ने पुलिस को फोन कर मदद मांगी, बताया कि उनके यहां ऑक्सीजन खत्म होने वाली है। ऑक्सीजन न मिलने से 32 मरीजों की जान खतरे में पड़ जाएगी। पुलिस ने तीन जगहों से ऑक्सीजन के 11 सिलेंडर का इंतजाम कराया।
21 अप्रैल को ही उत्तर पश्चिम जिले के डीएम ने पुलिस को बताया कि जयपुर गोल्डन अस्पताल को ऑक्सीजन सप्लाई करने वाला टैंकर हरियाणा में सिंघु सीमा के पास फंस गया है। अलीपुर थाना पुलिस ने हरियाणा के कुंडली थाना की पुलिस के साथ मिलकर वहां से टैंकर को निकलवाया। इसके बाद अलीपुर पुलिस की अगुवाई में टैंकर को जयपुर गोल्डन अस्पताल पहुंचाया गया।
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