बीरेंद्र यादव,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौखिक घोषणा से 500 और 1000 रुपये के नोट की मान्यता रद कर दी गयी। प्रधानमंत्री के इस फैसले का स्वागत और विरोध भी हो रहा है। संसद की कार्यवाही की बाधित हो रही है। लेकिन सवाल यह है कि प्रधानमंत्री ने संविधान प्रदत किस शक्ति का इस्तेमाल कर रुपये का अमान्य करने की घोषणा कर दी।
विधि विशेषज्ञों की राय
विधि विशेषज्ञों के अनुसार, तीन परिस्थितयों में रुपये को अमान्य किया जा सकता है। पहला है देश में आर्थिक आपात घोषित हो। दूसरा है संसद द्वारा कानून बनाकर निर्धारित मूल्य के रुपये की मान्यता रद की जाए। और तीसरा है आरबीआई नीतिगत रूप से इस संबंध में कोई फैसला ले। इन तीनों परिस्थितियों में प्रधानमंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण है और उनकी इच्छा के अनुरूप ही निर्णय होगा। लेकिन संविधान प्रधानमंत्री को राष्ट्र के नाम संबोधन में इस तरह की घोषणा करने का अधिकार नहीं देता है।
अनुच्छेद 360 का प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपातकाल की व्याख्या है। इसमें आपातकाल लागू करने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है। इस संबंध में उत्पन्न परिस्थितियों को भी स्पष्ट किया गया है। पूरे संविधान में प्रधानमंत्री को मौखिक घोषणा का कोई अधिकार नहीं देता है। 15 अगस्त को भी प्रधानमंत्री लालकिला से घोषणा करते रहे हैं, लेकिन वे सिर्फ घोषणाएं होती है। इसके कार्यान्वयन के लिए विधायी प्रक्रिया को पूरा करना पड़ता है। संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगा। लेकिन नोटबंदी की घोषणा के पूर्व तक कुछेक मंत्रियों को छोड़कर किसी अन्य मंत्री को जानकारी नहीं थी।
मौखिक आदेश पर औचित्य
तो यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठ सकता है कि प्रधानमंत्री ने किस शक्ति के तहत मौखिक आदेश से नोटबंदी की घोषणा कर दी। भारत में अध्यक्षीय प्रणाली नहीं है, जिसमें राष्ट्रपति को असीम शक्ति होती है। भारत में संसदीय प्रणाली है और संसद सर्वोच्च है। लेकिन नोटबंदी जैसी महत्वपूर्ण निर्णय के संबंध में संसद को विश्वास में नहीं लिया गया।
हमारा मकसद नोटबंदी के फैसले पर सवाल उठाना नहीं है। हम सिर्फ उस प्रक्रिया और संवैधानिक प्रावधानों के संबंध में जानना चाहते हैं, जिसके तहत नोटबंदी की घोषणा की गयी।
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