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ग़रीब बच्चों की किताबों-वर्दी का पैसा हड़प रहे पब्लिक स्कूल ? शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया कराएं जांच/FIR

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में ऐसे भी पब्लिक स्कूल हैं जो सरकार द्वारा दिए जा रहे पैसे का गबन कर रहे हैं ? सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए क़िताब, कापियां और वर्दी के पैसे स्कूलों को देती है। लेकिन स्कूल बच्चों को वर्दी, किताब और कापियां मुफ्त नहीं देते हैं।
आर्थिक रुप से कमजोर माता-पिता हजारों रुपयों की किताबें और वर्दी स्कूल से खरीदने के लिए मजबूर हैं।
स्कूल वाले इस तरह  बच्चों के नाम पर सरकार द्वारा दिए जा रहे पैसे को हड़प कर अपराध कर रहे हैं।
शिक्षा मंत्री दुरुस्त करें व्यवस्था –
दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को ऐसी पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिए जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चों को वर्दी और किताबें मुफ्त मिल जाए।
अफसरों पर सवालिया निशान-
सरकार द्वारा दिया जा रहा पैसा स्कूल द्वारा हड़पने से शिक्षा विभाग के उन अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया जिनका कार्य यह सुनिश्चित करना होता है कि सरकारी योजना का लाभ उन गरीब बच्चों को मिले जिनके लिए योजना बनाई गई हैं।
सरकार वर्दी और किताबों के पैसे देती हैं- 
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि सरकार पब्लिक स्कूल वालों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को वर्दी और किताबें आदि देने के लिए रकम देती है।
स्कूल वाले शिक्षा विभाग में उन बच्चों की सूची और बिल भी जमा कराते हैं जिनको वर्दी और किताबें दी गई है। जिसके आधार पर सरकार स्कूल को रकम का भुगतान करती हैं।
अफसर जिम्मेदारी निभाएं-
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि कई अफसर अपने कार्य को पूरी गंभीरता और ईमानदारी से करते हैं वह केवल स्कूल द्वारा दिखाए गए रिकार्ड से ही संतुष्ट नहीं होते हैं। स्कूल ने बच्चों को वास्तव में वर्दी और किताबें दी है या नहीं, यह पता लगाने के लिए ऐसे अफसर खुद ही अभिभावकों से संपर्क भी करते हैं।
अगर सभी अफसर इसी तरीके से कार्य करें तो सरकार की योजना का लाभ जरुरतमंद बच्चों को मिल सकता है।
अफसरों की मिलीभगत-
 स्कूल द्वारा बच्चों को वर्दी और किताबें मुफ्त नहीं दिए जाने से पता चलता है कि अफसरों की लापरवाही या स्कूल वालों से उनकी  मिलीभगत के चलते बच्चों को वर्दी और किताबें नहीं मिलती।
लायंस पब्लिक स्कूल,वर्दी किताबें नहीं देते-
अशोक विहार स्थित लायंस पब्लिक स्कूल वालों द्वारा भी वर्दी और किताबें नहीं दिए जाने के ऐसे ही मामलों का पता चला है।
परेशान अभिभावक-
आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के अभिभावक किताबों और वर्दी के लिए स्कूल के चक्कर काट रहे हैं। बिना किताबों के कैसे बच्चों को पढ़ाएं।
हैरानी की बात है कि स्कूल स्टाफ द्वारा अभिभावकों को प्रिंसिपल का फोन नंबर तक नहीं दिया जाता है। अब परेशान अभिभावक किसके सामने अपनी समस्या रखें।
नाम उजागर करने पर उनके बच्चों को स्कूल वाले परेशान कर देंगे इस लिए अभिभावक अपना और बच्चों का नाम उजागर नहीं करना चाहते। अभिभावकों ने बताया कि यह सिलसिला सालों से चल रहा है।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की दो बहनों ने भी इस स्कूल से ही बारहवीं तक की पढ़ाई की है। लेकिन कभी भी उन्हें वर्दी और किताबें नहीं दी गई थी।
किताबें और वर्दी मामलों की जांच-
लायंस पब्लिक स्कूल ने पिछले कुछ सालों में कितने बच्चों को वर्दी और किताबें दी है इसका रिकॉर्ड तो शिक्षा विभाग को दिया ही गया होगा।
शिक्षा मंत्री को उस रिकॉर्ड की जांच करानी चाहिए। उन सभी बच्चों के अभिभावकों से निजी रुप से अफसरों को संपर्क करना चाहिए तभी यह सच्चाई मालूम होगी कि कितने बच्चों को वाकई में वर्दी और किताबें स्कूल से मिली थी।
सच्चाई पता लगाने के लिए अफसरों को बारहवीं पास कर चुके इस स्कूल के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उन बच्चों से भी संपर्क करना चाहिए। वह बच्चे बिना डरे अब खुल कर बता सकते हैं कि उनको स्कूल से वर्दी और किताबें मिली थी या नहीं।
स्कूल द्वारा  दिखाए गए रिकार्ड में अभिभावकों के हस्ताक्षर की सत्यता की भी जांच करानी चाहिए।
एफआईआर दर्ज कराएं-
शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को यह तरीका सभी पब्लिक स्कूल वालों की सच्चाई मालूम करने के लिए अपनाना चाहिए। सरकार द्वारा बच्चों के लिए भेजे जा रहे पैसे को हड़पने वाले स्कूलों के खिलाफ जालसाजी, धोखाधड़ी और सरकारी रकम हड़पने की एफआईआर दर्ज करानी चाहिए। ऐसे लोगों को जेल भेजा जाना चाहिए। तभी सरकार की योजना का लाभ उन बच्चों को मिल पाएगा।
बैंक खातों में पैसा जमा हो-
सरकार को किताबों और वर्दी के पैसे अभिभावकों के बैंक खातों में सीधे जमा कराने पर विचार करना चाहिए। अगर रकम खाते में जमा कराई जाएं तो इस बात की पुख्ता व्यवस्था की जानी चाहिए कि स्कूल उस तय पैसे से ही उनको वर्दी और किताबें दें। ऐसा इंतजाम नहीं किया गया तो स्कूल फिर अपनी मर्ज़ी की कीमत वर्दी और किताबों की वसूलेगा।
अभिभावकों आवाज उठाओ-
 अभिभावकों को भी जागरुक और निडर हो कर बच्चों का हक़ हड़पने वाले ऐसे स्कूलों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
अभिभावकों को स्कूल में किसी भी कागज़ पर हस्ताक्षर करने से पहले उसे अच्छी तरह पढ़ लेना चाहिए कहीं ऐसा न हो कि स्कूल वाले आपसे वर्दी और किताबें सौंपने के कागज़ पर धोखे से हस्ताक्षर करवा लें। जिससे वह अपने रिकॉर्ड में यह दिखा देंगे कि किताबें और वर्दी दे दी गई है।
सरकार उठाए कदम-
सरकार को स्कूलों को निर्देश देने चाहिए कि वह स्कूल में एक बोर्ड लगाएं जिस  पर ग़रीब बच्चों को सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और योजनाओं की जानकारी दी गई हो।
सरकार को एक ऐसा फोन नंबर भी देना चाहिए जिस पर अभिभावक तुरंत शिकायत कर सकें। शिकायत पर की गई कार्रवाई से भी अभिभावक को अवगत कराया जाए।
सरकार को एक ऐसी बेवसाइट बनानी चाहिए जिससे अभिभावकों को यह पता चल जाए कि सरकार ने उनके बच्चों के लिए पब्लिक स्कूल को कितना पैसा किस मद में दिया है। ऐसे प्रत्येक बच्चे और स्कूल का पूरा ब्यौरा दिया जाए।

सरकारी आदेश नहीं मानते स्कूल-

किताब, कापियां और ‌वर्दी नहीं दिए जाने की शिकायत अभिभावकों द्वारा शिक्षा विभाग को लगातार की जाती हैं।

शिक्षा विभाग आदेश भी जारी करता है लेकिन स्कूलों द्वारा उसका पालन नहीं किया जा रहा है। सरकार द्वारा सख्त कानूनी कार्रवाई करने से ही स्कूल वाले आदेश का पालन करेंगे।

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