नई दिल्ली:फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज ‘सुमन ‘ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर पी.सी. जोशी से दिल्ली यूनिवर्सिटी से संबद्ध कॉलेजों और विभागों में शैक्षिक सत्र–2020–21 के अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स, सर्टिफ़िकेट कोर्स के अलावा एमफिल और पीएचडी जैसे कोर्सों में एडमिशन लिए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग की है । उन्होंने बताया है कि जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनकी फोरेंसिक लैब में जांच व संबंधित अधिकारियों को एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है । उन्होंने आगामी शैक्षिक सत्र –2021–22 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है ।
डॉ. सुमन ने बताया है कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए कि जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर एडमिशन पा जाते हैं और जो वास्तविक रूप से एडमिशन पाने के हकदार है वे उससे वंचित रह जाते हैं। डॉ. सुमन ने यह भी बताया है कि गत वर्ष जिन कोर्सो में छात्रों ने ऑन लाइन आवेदन किया था । ऑन लाइन अप्लाई करने के बाद एडमिशन लिस्ट में छात्रों के मार्क्स के आधार पर , उसने ऑन लाइन ही कॉलेज में एडमिशन ले लिया । जबकि ऑन लाइन अप्लाई करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी /संबंधित कॉलेज एडमिशन प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात सभी प्रमाण पत्रों की जांच कराने के लिए फोरेंसिक लैब और संबंधित अधिकारियों के पास जांच कराने के भेजा जाता है लेकिन कोरोना महामारी के चलते जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है । उन्होंने बताया है कि इससे पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त हो गई ।
डॉ. सुमन ने बताया है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाएं गए। वह भी तभी संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ कि इन कॉलेजों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच हो,और फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाएं गए, उनका एडमिशन रदद् कर दिया गया और कुछ दंड नहीं दिया गया ।उनका कहना है कि वर्ष –2020–21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आया ही नहीं जिससे उसके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके ,उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज/विश्वविद्यालय को भेजी ।
कॉलेजों में जाति प्रमाण पत्रों की नहीं होती जांच—उनका कहना है कि कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन के समय एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की ठीक से जांच नहीं की जाती । कॉलेज को छात्र की फोटो कॉपी उपलब्ध होती है । पिछले वर्ष एडमिशन पाए छात्रों के प्रमाण पत्रों की जांच न ही एडमिशन से पूर्व और न ही एडमिशन के बाद ही संबंधित कार्यालयों व अधिकारियों के पास जाति प्रमाण पत्र भेजे गए ।
जाति प्रमाण पत्रों के जांच की आवश्यकता क्यों—डॉ. सुमन ने बताया है कि एससी, एसटी के एडमिशन से पूर्व दिल्ली यूनिवर्सिटी में केंद्रीयकृत आधार पर (सेंट्रलाइज एडमिशन प्रॉसेस) पंजीकरण होता था। पंजीकरण कराने का पूर्ण दायित्व एससी, एसटी सेल का होता था । सेल पंजीकरण के बाद छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच के लिए संबंधित अधिकारियों के पास जांच के लिए भेजता था ,फर्जी प्रमाण पत्र पाएं जाने पर उसका एडमिशन और पंजीकरण रदद् कर दिया जाता था । पंजीकरण कराने के बाद, छात्रों की च्वाइस पर सब्जेक्ट व मार्क्स के आधार पर उन्हें कॉलेज आबंटित किए जाते थे। उनका कहना है कि जाति प्रमाण पत्रों की सही जांच के बाद ही एससी, एसटी सेल छात्रों को एडमिशन स्लिप अलॉटमेंट करता था। जिस कॉलेज की उसे एडमिशन स्लिप मिली है कॉलेज को एडमिशन देना पड़ता था, वह उसे मना नहीं कर सकते थे। मना करने पर एडमिशन कमेटी और ग्रीवेंस कमेटी में केस दर्ज किया जाता और प्रिंसिपल को बुलाया जाता था, आखिर उसे एडमिशन करना पड़ता था।
सामान्य सीटों को आधार मानकर कॉलेज नहीं देते एडमिशन—डॉ. सुमन ने बताया है कि एससी, एसटी सेल सामान्य छात्रों की सीटों को आधार मानकर कॉलेजों को छात्रों की लिस्ट भेजता था जिसे कॉलेज को उन छात्रों को एडमिशन देता था लेकिन अब कॉलेजों की एडमिशन कमेटी में बैठे शिक्षक बहुत से कॉलेजों में सामान्य वर्गो के छात्रों की एवज में एडमिशन नहीं देते।
कॉलेजों में बने एससी, एसटी ओबीसी सेल—डॉ. सुमन ने बताया है कि यूजीसी के सख्त निर्देश दिए गए हैं कि प्रत्येक यूनिवर्सिटी/कॉलेज/संस्थान में एससी, एसटी सेल बने,पर देखने में आया है कि अधिकांश कॉलेजों में सेल की स्थापना नही की गई है। सेल छात्रों के एडमिशन, स्कॉलरशिप, जातीय भेदभाव, शिक्षा संबंधी किसी तरह का भेदभाव किया जाता है तो सेल में अपना केस दर्ज कराया जा सकता है ,उसके बाद सेल का दायित्व है उसकी समस्या का समाधान कराना।
कॉलेजों में नहीं है ग्रीवेंस कमेटी—उन्होंने बताया है कि डीयू के अधिकांश कॉलेजों में एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों की किसी तरह की ग्रीवेंस को दूर करने के लिए इस कमेटी का गठन किया जाता है लेकिन देखने में आया है कि या तो कमेटी है ही नहीं यदि है तो काम नहीं कर रही । जबकि इस कमेटी का दायित्व यूजीसी और एचआरडी के बीच सेतु का काम करना। उन्हें छात्रों, शिक्षकों के कितने पद भरे गए ,कितने खाली है ,क्यों नहीं भरे गए कि जानकारी देना । इसी तरह से छात्रों के कितने एडमिशन हुए ,कितने खाली छोड़े, कितनी एडमिशन लिस्ट आई, स्पेशल ड्राइव चलाया गया या नहीं, सम्पूर्ण जानकारी डीयू, यूजीसी और एचआरडी को भेजनी होती है।
जाति प्रमाण पत्रों व सर्टिफिकेट की जांच के लिए कॉलेजों में फॉरेंसिक लेब बने–डॉ. सुमन ने बताया है कि जब भी एडमिशन कमेटी की मीटिंग होगी उसमें कमेटी के सदस्यों से यह मांग उठवाई जाएगी कि प्रत्येक कॉलेज में जाति प्रमाण पत्रों की जांच और अन्य प्रमाण पत्रों की जांच के लिए कॉलेजों में फोरेंसिक लेब बने वहीं पर सर्टिफ़िकेट की जांच की जाएं । डॉ. सुमन का कहना है कि कॉलेजों में एडमिशन के बाद एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं की जाती है इसलिए यूनिवर्सिटी एक सर्कुलर कॉलेजों को जारी कर एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के एडमिशन को देखने के लिए “एससी, एसटी सेल ,एससी ,एसटी ग्रीवेंस कमेटी के अलावा शिक्षकों की एक कमेटी इन वर्गों के छात्रों की काउंसलिंग करने के लिए बनाई जायें जो इन सारे मामलों को देखें।
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