✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

..ताकि कोई भूखे पेट न सोए

 

आजकल मैं मप्र के झाबुआ जिले में हूं। यहां बामनिया में सैकड़ों ग्रामीण पत्रकार इकट्ठे हुए। उनका सम्मान समारोह था। पत्रकारों का इतना बड़ा समारोह पिछले साठ साल में मैंने कहीं नहीं देखा। गुजरात और राजस्थान के सटे जिलों के पत्रकार भी आए थे। यह समारोह प्रसिद्ध आर्यसमाजी महाशय धर्मपालजी द्वारा बनाए गए स्कूल के सभागृह में हुआ। विश्व आर्य समाज के महामंत्री प्रकाश आर्य ने इस आदिवासी इलाके में चल रही अन्य आर्य संस्थाएं भी दिखाईं। थांदला के एक आर्य गुरुकुल में सैकड़ों आदिवासी बच्चे रहते हैं।

 

इन संस्थाओं के लिए 65 लाख रु. सालाना अनुदान सरकार देती थी लेकिन एक तकनीकी अड़ंगे के कारण दो साल से वह नहीं मिल रहा है। इसके बावजूद जन-सहयोग इतना जबर्दस्त है कि कोई भी बच्चा एक दिन भी भूखा नहीं रहा। इन गुरुकुलों और पाठशाला में बच्चों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता। उनकी शिक्षा, रहना, खाना-पीना सब कुछ मुफ्त है।

भूख के विरुद्ध लड़ाई इंदौर शहर में भी चल रही है। बचपन में मैं देखता था कि मेरे घर के सामने सेठ झूथालाल के अन्नक्षेत्र में दिन भर लोगों को मुफ्त भोजन मिलता था। हमारे घर में रोज़ चौका शुरु होते ही सबसे पहले एक रोटी गाय की और एक किसी भिखारी की निकालकर अलग रख दी जाती थी। दिल्ली और मुंबई में तो किसी घर में ऐसा होते हुए मैंने कभी देखा नहीं लेकिन इंदौर के दो युवकों ने एक अद्भुत काम शुरु किया है। ऐसे शुभ काम समाजसेवी डाॅ. अनिल भंडारी काफी पहले से करते रहे हैं। लेकिन अक्षय जोशी और कुशल शर्मा ने तो कमाल ही कर दिया है।

 

24 और 19 साल के ये लड़के बाहर गांव से पढ़ने इंदौर आए थे। अक्षय ने एक दिन बड़े अस्पताल के सामने देखा कि रोगियों के रिश्तेदारों के पास पैसे नहीं है कि वह खाना खरीद सकें। वे भूख से तड़प रहे थे। अक्षय के दिमाग में रोटी बैंक का विचार कौंधा और उसने उसे फेसबुक पर डाल दिया। वह खुद जाकर रोटियां इकट्ठी करता था लेकिन अब लोग खुद आकर रोटियां देने लगें।

 

अब इंदौर में आठ जगहों पर रोटी-बाॅक्स लगा दिए हैं। करीब ढाई सौ परिवार उनमें रोज रोटियां अपने आप डाल जाते हैं। जो नहीं डाल सकते, ऐसे कई परिवार 2 रु. रोज के हिसाब से 730 रु. सालाना देने लगे हैं। कभी-कभी भूखों को मिठाइयां भी मिल जाती हैं। मुझे विश्वास है कि इस पुण्य-कार्य की खबर और यह लेख छपने के बाद दानदाताओं की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि इंदौर शहर में कोई भूखे पेट नहीं सोएगा। सारे भारत के शहरों और गांवों में यदि हमारे नौजवान इसी तरह के अभियान चला दें तो हमारा कोई भी भाई या बहन क्या कभी भूखे पेट सोएगा?

About Author