डॉ. वेदप्रताप वैदिक,
नोटबंदी के चक्र-व्यूह में फंसी सरकार को गजब का मतिभ्रम हो रहा है। पिछले 40-42 दिन में वह नोटबंदी संबंधी लगभग 100 फरमान जारी कर चुकी है। कुछ उसने, कुछ रिजर्व बैंक ने और कुछ प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री ने ! मरता, क्या न करता? उसे जो भी दवा बताई जाती है, उसे ही वह तुरंत गुड़कने लगती है। दस्त बंद करने की दवा से उसे कब्जी हो जाती है और कब्ज ठीक करने की दवा से उसे दस्त लग जाते हैं। फिर भी वह रोज दवाएं बदलने से बाज नहीं आती। उसे पता ही नहीं है कि उसे बीमारी कौनसी है। वह हर दवा को काले धन की दवा मानकर गुड़क रही है।
अब नया फरमान यह आया है कि हजार और पांच सौ के पुराने नोटोंवाले पांच हजार रु. बैंकों में जमा करवा सकते हैं, 30 दिसंबर तक याने 8-9 नवंबर को जो राजाज्ञा जारी हुई थी, वह अब रद्द हो गई है। उस समय कहा गया था कि घबराइए मत, जल्दबाजी मत कीजिए, बैंकों में भीड़ मत लगाइए। आप अपने पुराने नोट 30 दिसंबर तक आराम से बदलवा सकते हैं बल्कि विशेष परिस्थिति में यह सुविधा 31 मार्च 2017 तक उपलब्ध है लेकिन पिछले कई फरमानों की तरह अब इसे भी उलट दिया गया है।
जिन्होंने सरकार पर भरोसा किया, वे अब पछता रहे हैं। अपने मेहनत की कमाई से जिन्होंने कुछेक हजार रु. बचा रखे हैं, उनका क्या होगा? वे सिर्फ पांच हजार रुपए बिना पूछताछ के जमा करवा सकेंगे, उससे ज्यादा होंगे तो वे बैंक के दो अधिकारियों को संतुष्ट करने पर ही जमा करवा पाएंगे। उन्हें यह समझाना होगा कि वे अभी तक सोते क्यों रहे? वित्तमंत्री का कहना है कि ये पांच हजार भी उन्हें एक ही बार में जमा करने होंगे। यह ठीक है कि सरकार काले धन के सफेदीकरण से घबरा गई है और उसे दहशत बैठ गई है कि उसके अंदाज से कहीं सवाया-डेढ़ा या दुगुना पैसा बैंकों में जमा न हो जाए। अब देखते हैं कि 30 दिसंबर तक सरकार कौनसा नया पैंतरा मारती है?
उसने सरकारी कर्मचारियों की भविष्य निधि पर दिए जानेवाले ब्याज को भी घटा दिया है। वह समाज के हर तबके का मोहभंग करने पर तुली हुई है। कानपुर में प्रधानमंत्रीजी ने चुनाव आयोग के सुझाव पर मुहर लगा दी है कि दो हजार रु. तक के चंदे का हिसाब राजनीतिक दलों से न मांगा जाए। बहुत खूब ! भाजपा के 11 करोड़ सदस्यों के नाम से यदि अमित शाह दो-दो हजार रु. बेनामी जमा करना चाहें तो जरा सोचिए कि वे अकेले कितने अरब—खरब रु. का काला धन सफेद कर लेंगे। दूसरे दल इस धंधे में उन्हें भी मात कर देंगे। हमारे राजनीतिक दल काले धन की सबसे बड़ी मंडियां हैं। आम जनता को सरकार डिजिटल का पाठ पढ़ा रही है, वह इन दलों के संपूर्ण लेन-देन को डिजिटल क्यों नहीं करवा देती?
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