इंद्र वशिष्ठ
देश की राजधानी दिल्ली में पुलिस की हिरासत में होने वाली मौत के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले तीन साल में पुलिस की हिरासत में मौत के 24 मामले दर्ज हुए हैंं।
पुलिस की हिरासत में मौत के मामलों को बहुत ही गंभीर और शर्मनाक अपराध माना जाता है।
संसद में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी कि दिल्ली में साल 2017-2018, 2018-2019 और 2019-2020 में क्रमशः 7,8,9 मामले पुलिस हिरासत में हुई मौत के दर्ज हुए हैं।
मध्यप्रदेश नंबर वन-
देश भर में साल 2019-20 में हुई हिरासत में मौत के मामलों में दिल्ली का स्थान तीसरा है। हिरासत में मौत के 14 मामलों के साथ मध्यप्रदेश प्रथम और 12-12 मामलों के साथ गुजरात और तमिलनाडु दूसरे नंबर पर हैं। सात मामलों के साथ पश्चिम बंगाल चौथे, 6-6 मामलों के साथ पंजाब और ओडिशा पांचवें, पांच-पांच मामलों के साथ राजस्थान और बिहार छठ़े, चार मामलों वाले हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक सातवें स्थान, तीन मामलों वाले उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश आठवें स्थान, दो मामलों वाले असम, मणिपुर, केरल और झारखंड नौंवे स्थान, एक- एक मामले वाले अंडमान निकोबार, उत्तराखंड, त्रिपुरा, मिजोरम, और मेघालय हिरासत में मौत के मामलों में दसवें पायदान पर हैं।
9 राज्यों में हिरासत में कोई मौत नहीं हुई-
देश के 9 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेश गोवा, जम्मू कश्मीर, नागालैंड, सिक्किम,चंडीगढ़, दादर नागर हवेली, दमण द्वीप,पुदुचेरी, और लक्षद्वीप
में पिछले तीन साल मेंं हिरासत में मौत का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है।
हिरासत में मौत के 394 मामले-
संसद में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि देश भर में पिछले तीन साल में हिरासत में मौत के कुल मामले 394 दर्ज हुए हैं। साल 2017-18, 2018-19 साल 2019-20 में क्रमशः 146,136 और 112 मामले दर्ज हुए।
साल 2017-18 और साल 2018-19 में हिरासत में मौत के मामले क्रमशः मध्यप्रदेश में सात,बारह , गुजरात में चौदह, तेरह , महाराष्ट्र में उन्नीस, ग्यारह, उत्तर प्रदेश में दस,बारह, तमिलनाडु में ग्यारह-ग्यारह, बंगाल में पांच-पांच,पंजाब में दस,पांच, ओडिशा में चार- चार, राजस्थान में तीन,आठ, कर्नाटक में चार,सात, आंध्रप्रदेश में दो,पांच, असम में ग्यारह, पांच, छत्तीसगढ़ में तीन- तीन, हरियाणा में सात-सात, बिहार में सात,पांच, हिमाचल में दो,एक, केरल में तीन-तीन,मणिपुर में एक,तीन, और मिजोरम में एक- एक मामला दर्ज किया गया।
उत्तराखंड मेंं साल 2018-19 में दो और साल 2017-18 में एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ। त्रिपुरा में साल 2017-18 में एक मामला दर्ज किया गया। मेघालय में इस अवधि में दो मामले दर्ज हुए। त्रिपुरा और मेघालय में साल 2018-19 में एक भी मामला नहीं हुआ।
तेलंगाना में साल 2019-20 और 2018-19 में हिरासत में मौत का एक भी मामला नहीं हुआ।साल 2017-18 में हिरासत में मौत के तीन मामले दर्ज हुए थे।
अरुणाचल प्रदेश में पिछले साल हिरासत में मौत का एक भी मामला नहीं हुआ। उसके पहले क्रमशः तीन,दो मामले हुए थे।
मानवाधिकार आयोग –
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि मानवाधिकार आयोग ने हिरासत में मौत के मामले में अनुपालन के लिए दिशानिर्देश/ प्रक्रियाएं समय समय पर जारी की हैं। इन निर्देशों के अनुसार पुलिस अथवा न्यायिक हिरासत में हुई प्रत्येक मौत की सूचना इसके घटित होने के 24 घंटे के भीतर मानवाधिकार आयोग को दी जानी होती है। आयोग विभिन्न रिपोर्ट जैसे कि पूछताछ, पोस्टमार्टम, मैजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट, विसरा रिपोर्ट आदि भी मांगता है। ताकि लोक सेवकों द्वारा की गई उस नियम विरोधी कार्रवाई अथवा लापरवाही का पता लगाया जा सके, जिसके कारण हिरासत में मौत हुई है।
जागरूकता –
भारत सरकार ने भी हिरासत में हुई मौतों के विभिन्न पहलुओं के संबंध में सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों के प्रशासन को दिशानिर्देश जारी किए हैं। ताकि राज्य, जिला और अधीनस्थ स्तर पर अधिकारियों को देश के कानून और मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देश का अनुपालन और अनुशरण करने के बारे में जागरूक किया जा सके।
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