नई दिल्ली | निम्न आय वर्ग और शिक्षा के निम्न स्तर वाले करीब 50 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कोरोनावायरस का खतरा कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि वास्तविक है। यह बात आईएएनएस-सी वोटर कोविड ट्रैकर में सामने आई है। सर्वेक्षण बताता है कि इस खतरनाक वायरस के बारे में लोगों की जागरूकता का स्तर बढ़ रहा है, क्योंकि लोगों को विभिन्न माध्यमों से सूचनाएं मिल रही हैं। लेकिन, विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में जागरूकता की प्रवृत्ति सुसंगत नहीं है।
सर्वेक्षण यह भी बताता है कि जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता है, मध्यम आय वर्ग (54.3 प्रतिशत) और उच्च आय वर्ग (65.6 प्रतिशत) के लोग इस बात से असहमत हैं कि कोरोनावायरस से खतरा अतिशयोक्ति है।
वहीं अगर ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो 40.3 प्रतिशत लोग इस बात से सहमत हैं कि संक्रमण से खतरा बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। जबकि 53.5 प्रतिशत मानते हैं कि खतरा वास्तविक है।
दूसरी ओर शहरी क्षेत्र में 58.2 प्रतिशत लोग असहमत हैं कि कोरोनावायरस से खतरा अतिशयोक्ति है।
छोटे शहरों में 40.5 प्रतिशत लोग इससे सहमत हैं कि संक्रमण से खतरा वास्तविक है। इसलिए यह स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों में ज्यादातर लोग जानते हैं कि खतरा वास्तविक है।
अनुसूचित जाति वर्ग (41.8 प्रतिशत), एसटी वर्ग (42.5 प्रतिशत) और ओबीसी श्रेणी (37.9 प्रतिशत) के लोग इस बात से सहमत हैं कि संक्रमण से खतरा अतिशयोक्ति है।
कुल 39 प्रतिशत मुसलमान इस बात से सहमत हैं कि कोरोनावायरस से खतरा अतिशयोक्ति है, जबकि 59.7 प्रतिशत ईसाई भी संक्रमण पर इसी तरह की राय रखते हैं।
लिंग आधारित ²ष्टिकोण के साथ देखें तो सर्वेक्षण में पाया गया कि 56 प्रतिशत महिलाएं असहमत हैं कि संक्रमण से खतरा किसी भी तरह की अतिशयोक्ति है, जबकि केवल 20.2 प्रतिशत पुरुष ही इससे असहमत पाए गए।
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षाकृत कोरोना संक्रमण अधिक हुआ है।
–आईएएनएस
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