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नेता डाल-डाल तो जनता पात-पात

 

डॉ. वेदप्रताप वैदिक,

भारत की जनता का चरित्र भी बड़ा रहस्यमय है। नोटबंदी और नगदबंदी के जुल्मों को वह एक तरफ चुपचाप सह रही है और दूसरी तरफ वह इन दोनों मूर्खताओं को पटकनी भी मार रही है। उसने हमारे नेताओं के मुंह पर कालिख पोत दी है। अपने आप को सर्वज्ञ समझनेवाले नेताओं को उसने ऐसा सबक सिखाया है कि उसे वे जिंदगी भर नहीं भूल सकते। भारत की जनता कितनी सहनशील है कि करोड़ों लोग बड़ी सुबह से बैंकों की लाइन में लगे रहते हैं, भूखे-प्यासे लेकिन न तो वे बैंकों पर हमला करते हैं और न ही उन नेताओं के घर घेरते हैं, जिनकी नादानी के कारण वे भिखारी-से बन गए हैं।

 

रोजगार के अभाव में मजदूर अपने गांवों की तरफ भाग रहे हैं, दुकानदार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, नगदी के अभाव में मरीज़ दम तोड़ रहे हैं, नए नोटों की कमी के कारण शादियां और अंत्येष्टि जैसे महत्वपूर्ण मौके संकट में फंस गए हैं और कतारों में लगे सौ से अधिक लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं। फिर भी देश में बगावत का माहौल कहीं दिखाई नहीं पड़ता। विरोधी नेतागण जनता को भड़काने की पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन लोग उनकी बात एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से बाहर निकाल देते हैं। ऐसा लगता है कि पूरा देश मोदीमय हो गया है। मोदी भक्त हो गया है।

 

क्या लगभग ऐसा ही माहौल आपात्काल के पौने दो साल में नहीं रहा? कहीं कोई शोर-शराबा नहीं। कहीं कोई बगावत नहीं। इंदिरा गांधी के विरुद्ध कोई धरना-प्रदर्शन नहीं। ऐसा लगता रहा कि जैसे देश में कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन लोगों ने मार्च 1977 में इंदिरा गांधी और कांग्रेस का सफाया कर दिया। उन्होंने सिद्ध किया कि वे बहुत ठंडी मार लगाते हैं लेकिन बेचारे मोदी को तो 8 नवंबर की रात से ही गर्म मार लगनी शुरु हो गई। उसी रात लोगों ने अरबों रु. का काला धन हीरे-जवाहारात में खपा दिया। उसके अगले हफ्ते में अरबों-खरबों का काला धन बैंकों में सफेद धन बनाकर उन्होंने जमा करा दिया।

 

जन-धन खातों के जरिए लोगों ने सरकार को शीर्षासन करवा दिया। सरकार ने नोटबंदी के जरिए जनता के साथ चालाकी और उस्तादी की लेकिन जनता ने सरकार के घुटने तोड़ दिए। जनता ने ऐसी चालाकी दिखाई कि सारा काला धन बिना टैक्स दिए ही सफेद हो गया। यह सर्वज्ञ सरकार हर साल मिलनेवाले आयकर से भी वंचित हो गई। जनता ने मोदी की चालाकी को रद्द ही नहीं किया, वह उससे भी ज्यादा चालाक निकली। यदि यह सरकार लोकतांत्रिक है तो वह लोगों से अपनी पराजय को नम्रतापूर्वक स्वीकार करे और नोटबंदी को वापस ले ले।

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