तहसीन मुनव्वर,
नई दिल्ली । कब कोई मज़ाक़ गंभीर हो जाए कहा नहीं जा सकता। ताज़ा उदाहरण देश में इन दिनों नोटबंदी को लेकर मचा हाहाकार है। राजकोट के एक गुजराती समाचारपत्र अकिला ने पहली अप्रैल 2016 के अपने ‘अप्रैलफूल’ अंक में लिखा था कि वह सरकार जो भ्रष्टाचार और काले धन को मिटाने के दावे के साथ आई थी, दो वर्ष पूरा करने जा रही है, इस दिशा में पहले कदम के रूप में सरकार पांच सो और एक हज़ार के नोट बंद करने जा रही है। लगता है सरकार ने सात महीने पहले अप्रैल फूल के अवसर पर किए गए इस गुजराती समाचारपत्र के मज़ाक़ को गंभीरता से ले लिया और आज देश में जिसे देखो क़तार में है। लोगों के अंदर कितनी घबराहट है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि केवल एक छोटी अफवाह से देश में नमक के लिए लूट मच गई थी। पहले जो फैसला लोगों को अच्छा लगा था, वह नोटों को बदलने में आ रही परेशानियों के बाद मुसीबत बनता जा रहा है। सवाल यह है कि सरकार के पास ऐसी क्या जानकारी थी कि जिसके लिए अचानक इतना बड़ा फैसला लेकर लोगों के जीवन को कठिनाई में डाल दीया गया। अगर 6 महीने पहले से तैयारी थी तो फिर यह क्यों नहीं माना गया कि एटीएम मशीन में नया नोट वजन और आकार के कारण उपयोगी नहीं हो पाएँगे। क्या कोई सरकार का करीबी प्रधानमंत्री को बदनाम करवाना चाहता था।
यह सब इसलिए सोचना पड़ रहा है कि नोटबंदी को लेकर एटीएम और बैंक में बढती क़तारों को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा है। कोई इसे आर्थिक आपातकाल कह रहा है तो कोई जनता पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक। कुछ लोग सवाल पूछने लगे हैं कि लाईन में लोगों का जो समय बर्बाद हो रहा है, क्या इसे देश के विकास के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता था। सब से बड़ा सवाल यह भी है कि इन लाईनों में बड़े बड़े धन्ना सेठ क्यों नहीं हैं। देखा जाये तो इस समय हर कोई परेशां है। सबसे अधिक परेशानी उन बड़े बुजुर्गों को हो रही जो अकेले हैं। देर तक लाईन में लगना उनकी तकलीफों में वृद्धि कर रहा है। लाईन में लगे एक बुजुर्ग ने कहा कि वह डायबिटिक हैं लेकिन सवेरे से लाईन में हैं और बैंक का एटीएम शुरू नहीं हुआ है, कब शुरू हो कहा नहीं जा सकता, लाईन से बाहर नहीं जा सकता, कुछ खा नहीं सकता क्योंकि पैसा नहीं है और दवा घर पर है। शायद ऐसे ही किसी संकट में दो-तीन बुजुर्गों की मौत पंक्ति में लगे हुए या फिर बैंक जाते हुए हुई होगी। भाजपा के एक प्रवक्ता बैंकों की लाईन में होने वाली एक मौत को इस दृष्टि से देख रहे थे कि आतंकवादियों की कार्यवाही में भी लोग मरते हैं, इसलिए हम इसे रोकने के लिए ऐसा कर रहे हैं।
वे लोग भी कम परेशान नहीं हैं जिनके घरों में इन दिनों शादी है। एक ऐसे ही परेशान पिता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शादी में भाग लेने का निमंत्रण भेजा है ताकि वह खुद उसकी परेशानी देख लें। यही नहीं जो परेशानी हम शहर के लोगों को होती देख रहे हैं उससे कहीं अधिक सुदूर गांव में रही होगी जहां एटीएम और बैंक तक पहुंचने के लिए मीलों दूर चलना पड़ता होगा। जब दिल्ली शहर में सरकार की नाक के नीचे फ़ोटो स्टेट से लेकर फॉर्म तक महंगा कर दिया गया हो तो उन का कैसे शोषण हो रहा होगा यह सोचा जा सकता है।
यह भी दिलचस्प है कि विपक्ष में रहते हुए भाजपा नोटबंदी को लेकर आपत्ति करती रही थी। कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश चुनाव के कारण यह फैसला लिया गया है ताकि मुलायम और मायावती को नुकसान पहुंचाया जा सके। अगर ऐसा इसलिए किया गया तो इस से नुकसान ज्यादा होगा क्योंकि इस फैसले से संभव है कि मुलायम और मायावती करीब आ जाएँ और जनता को होने वाला कष्ट उन्हें सरकार से दूर कर दे। वैसे भी इस फैसले ने विपक्ष को एक सुर बोलने का मौका दे ही दिया है जिस से 16 नवंबर से शुरू होने वाले संसद सत्र में सरकार की राह मुश्किल हो सकती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने लोगों को पहले ही बता दिया था। उन्होंने कहा कि जुलाई, अगस्त और सितंबर की तिमाही में बैंकों में बहुत अधिक पैसा जमा हुआ है जिस से पता चलता है कि सरकार ने अपने लोगों को पहले ही बता दिया था। उन्होंने कहा कि इस फैसले से काला धन वापस नहीं आएगा क्योंकि काले धन वालों को भाजपा ने पहले सावधान कर दिया था, काले धन वाले सोना, संपत्ति और डॉलर खरीद रहे हैं, उन्होंने इसे जनता के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कहा। इस बीच एक अखबार के अनुसार पश्चिम बंगाल में भाजपा की राज्य शाखा ने तीन करोड़ रुपये एक राष्ट्रीय बैंक में प्रधानमंत्री की घोषणा से आठ दिन पहले जमा करवाए हैं। इस में अंतिम चालीस लाख रुपये प्रधानमंत्री के भाषण से कुछ मिनट पहले ही जमा हुए हैं और साठ लाख उसी दिन जमा किए गए। सवाल यह भी है कि क्या उस दिन बैंक को आठ बजे तक खुला रखा गया ताकि यह राशि जमा की जा सके।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार को इस से काला धन बाहर निकालने में कोई अधिक सफलता नहीं मिलेगी। काले धन की शुरुआत राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे से होती है और इस पर रोक लगाने की कोई योजना सरकार नहीं लाई है। सरकार ने 30 दिसंबर तक समय दिया है और इस अवधि तक लोग ऐसा कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे जिससे उनकी काली कमाई को सफेद किया जा सके। वैसे भी लोगों ने दो दिन में ही कई रास्ते निकाल लिए थे जिसमें से कुछ पर सरकार ने आक्रमण भी किया है मगर इतने बड़े देश में हर किसी पर नजर रखना मुश्किल ही है। इसलिए पांच सो और हजार रुपये के पुराने नोटों को रद्द करके काले धन को सामने लाने की सरकार की कोशिश नाकाम ही रहने की उम्मीद है। यह बात तो काली कमाई वाले भी जानते हैं कि मुद्रा जमा करने से नहीं बल्कि उस के घुमते रहने से लाभ होता है। इसलिए वह इस राशि को एक जगह नहीं रखते है बल्कि यह धन सोना, हीरे जवाहरात, कलाकृति और प्राचीन कलात्मक नमूनों के रूप में बदल दिया जाता है।
एक आर्थिक रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल 28 प्रतिशत काला धन है, जबकि 72 प्रतिशत काली कमाई बाहर के देशों में है जिसे लाने का वादा प्रधानमंत्री ने चुनाव के दौरान किया था। देखा जाए तो देश की 125 करोड़ की आबादी में से सिर्फ दो करोड़ स्तासी लाख लोग ही आयकर रिटर्न जमा करते हैं और कुल जनसंख्या का केवल एक प्रतिशत यानी एक करोड़ पचास लाख लोग ही टैक्स देते हैं। दरअसल सरकार बड़ी मछलियों को पकड़ने में संकोच कर रही है जिसकी वजह से उसे इस तरह के अचंभित करने वाले कदम उठाने पड़ रहे हैं जिससे लोगों का ध्यान इस विफलता से हटकर अन्य बातों में उलझ जाए। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक याचिका में सरकार और रिजर्व बैंक ने सत्तावन बड़े ऋण न चुकाने वालों के नाम सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था। इससे पता चलता है कि सरकार कुछ बड़े लोगों पर कार्रवाई करने की बजाय आम लोगों को बैंकों की लाईन में लगाकर अपनी पीठ थपथपाते रहना चाहती है।
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