✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

पुस्तक प्रेमियों के लिए ‘जन्नत’ के समान है दरियागंज की यह दुकान

 

सोम्रिता घोष,

नई दिल्ली| अगर आप साहित्य में रुचि रखते हैं, तो रविवार को राष्ट्रीय राजधानी के प्रसिद्ध दरियागंज की सैर आपको जरूर करनी चाहिए, लेकिन दरियागंज में ही एक पतली सी गली में स्थित एक दुकान ऐसी भी है जो आपको शेक्सपीयर से लेकर शेली, कीट्स और डिकेंस जैसे महान लेखकों की स्मृतियों से भर देगी।

 

साहित्य-प्रेमियों के बीच मुक्ता बुक एजेंसी प्राचीन एवं दुर्लभ पुस्तकों के ठिकाने के रूप में प्रचलित है।

 

चाहे वह युवा हों या पहली पीढ़ी के पाठक, मैकबेथ, ट्वेल्थ नाइट, वूदरिंग हाइट्स, प्राइड एंड प्रेज्यूडिस और अ टेल ऑफ टू सिटीज.. न जाने कितनी अनमोल कृतियों का यह एक अच्छा ठिकाना है।

 

बस यहां आइए और किताबों के जखीरे में खुद को डूबो दीजिए, आपको शेक्सपियर के बगल में ही उनके समकालीन मारलोव मिल जाएंगे, जार्जिया के प्रख्यात रचनाकार जेन आस्टीन, कवि पी.बी. शैली के बगल में जॉन कीट्स, चार्ल्स डिकेंस, एमिली ब्रंट और न जाने कितने ही विक्टोरिया युग के रचनाकार मिल जाएंगे।

 

वहीं कुछ मेजों पर आपको पाउलो कोएलो, डैन ब्राउन, सिडनी शेल्डन, मार्क ट्वेन, कैसीलिया अहेर्न, लियो टॉलस्टॉय, जॉर्ज इलियट, आर्थर कॉनन डायल पड़े मिल जाएंगे।

 

ये किताबें जरूर थोड़ी पुरानी पड़ चुकी हैं और पन्ने पीले पड़ चुके हैं, फिर भी ये आपको अपनी ‘गंध’ से आकृष्ट कर लेंगी।

 

संकरी सीढ़ियों से होते हुए आप जैसी ही एक बड़े से हॉल में प्रवेश करते हैं, आप सामान्य किताबों की दुकान के बनिस्बत पुस्तकों की एक अलग ही रहस्यमयी दुनिया में पहुंच जाते हैं।

 

पुरानी किताबों और उनसे उठती सीलन की अजीब सी गंध से गुजरते हुए आप रमेश ओझा के पास पहुंचते हैं, जो अपने भाई राजेश के साथ यह पारिवारिक व्यवसाय चला रहे हैं। राजेश और रमेश के पिता ने करीब 50 वर्ष पहले यह दुकान शुरू की थी।

 

ओझा बंधुओं का कभी अंग्रेजी साहित्य के प्रति झुकाव नहीं रहा और न ही उन्होंने ज्यादा क्लासिक रचनाएं पढ़ी हैं, लेकिन पढ़ना उनका हमेशा से जुनून रहा है।

 

रमेश आईएएनएस से कहते हैं कि उन्होंने ज्यादा अंग्रेजी लेखकों को नहीं पढ़ा है, लेकिन हिंदी में कई रचनाकारों को पढ़ा है।

 

रमेश ने हाल ही में एक 400 वर्ष पुरानी बाइबल को बेचा है, जो उनके पास किताबों में सबसे पुरानी थी।

 

रमेश कहते हैं कि लोग किताबें पुरानी होते ही बेच देना चाहते हैं और हम उन्हें अन्य थोक विक्रेताओं से खरीद लेते हैं।

 

यह पूछने पर कि इस डिजिटल युग में जब सब कुछ ही डिजिटल हो गया है और पुरानी किताबें भी ऑनलाईन मिलने लगी हैं, क्या उन्हें यह परेशान करता है?

 

वह कहते हैं, “बिल्कुल नहीं! हमें ऑनलाइन कारोबार से कोई प्रतिस्पर्धा नजर नहीं आ रही। इसका सबसे प्रमुख कारण हमारे पास पुरानी किताबों का अनूठा और कहीं न मिलने वाला संचयन है। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना सर्च करते हैं। आपको वहां ये किताबें नहीं मिलेंगी।”

 

उन्होंने कहा, “किताबों को ऑनलाइन खरीदने से आप उसकी मूलता से वंचित हो जाते हो। किताबों की आत्मा को समझने के लिए उनकी मूल प्रति ही ज्यादा आकर्षित करती है न कि ऑनलाइन मंगाई गई प्रति”

 

ऐसे पुस्तक प्रेमी जो सप्ताह में मिलने वाली एक छुट्टी को बिस्तर में पड़े-पड़े बिताना चाहते हैं और दरियागंज के चक्कर नहीं लगाना चाहते, मुक्ता बुक एजेंसी उनके लिए काफी राहत देने लायक है।

 

हालांकि रमेश बताते हैं कि पुरानी किताबों को उनकी वास्तविक स्थिति में रखना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्णहोता है।

 

रमेश ने कहा, “खासकर जब मानसून का समय आता है, तब हमें किताबों को सीलन से बचाना पड़ता है। हम सुनिश्चित करते हैं कि पुरानी किताबों को पर्याप्त सुरक्षा के साथ बांध कर रखा जाए।”

 

पुरानी दुर्लभ किताबें बेचने के साथ-साथ मुक्ता बुक एजेंसी थोक में भी किताबें बेचते हैं, जो अधिक संख्य में किताबें खरीदने वालों के लिए राहत की बात है।

 

मुक्ता बुक एजेंसी के बाहर लगे एक बोर्ड पर “100 रुपये किलो”, “200 रुपये किलो” और “50 रुपये किलो” का बोर्ड देखकर बरबस ही पुस्तक प्रेमी किताबें खरीदने के मोह में फंस जाते हैं।

 

रमेश बताते हैं, “यह हमारे लिए एक व्यवसाय है। किताबों को किलो के हिसाब से बेचना हमारे लिए फायदेमंद रहता है और ग्राहकों को भी आसानी होती है। लेकिन हम सभी किताबें किलो के हिसाब से नहीं बेचते। जो क्लासिक हैं उन्हें हम प्रति कॉपी के हिसाब से बेचते हैं, लेकिन कम कीमत पर।”

 

रमेश हालांकि धीरे-धीरे किताब की दुकानों और पाठकों के कम होने पर चिंता भी जाहिर करते हैं।

 

थोड़ा निराशाजनक भाव लिए ओझा कहते हैं, “किताब की दुकानों का अच्छा भविष्य नहीं है। इसका कारण पाठकों का कम होते जाना है। लोगों के पास समय को गुजारने के लिए कई तरह के विकल्प आते जा रहे हैं और वे वहां से ज्ञान हासिल कर रहे हैं। वे अब किताब पढ़ने के प्रति दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, इसलिए किताबें अपना महत्व खोती जा रही हैं।”

–आईएएनएस

About Author