नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में रहने वाले लोगों की जिंदगी खतरनाक वायु प्रदूषण की वजह से लगभग छह साल कम हो चुकी है। अगर एनसीआर में डब्लूएचओ मानकों को लागू किया जा सका तो लोग नौ साल तक अधिक जीवित रहेंगे। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है।
मौसम की स्थिति तेजी से बिगड़ती जा रही है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, जहरीली वायु के संपर्क में आने पर फेफड़े, रक्त, संवहनी तंत्र, मस्तिष्क, हृदय और यहां तक कि प्रजनन प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है।
एक अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण पूरे देश में पांच लाख अकाल मौतें हो चुकी हैं।
आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, “दिल्ली की आबोहवा पिछले कुछ दिनों से बहुत ही खराब बनी हुई है। शहर में वायु की गुणवत्ता विशेष रूप से सुबह-सुबह अधिक खराब होती है, जब प्रदूषण बहुत अधिक होता है। हालांकि, यह अस्थमा या हृदय संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए तो घातक है ही, स्वस्थ व्यक्तियों को भी इससे पूरा खतरा है। बुजुर्ग लोग और बच्चे भी उच्च जोखिम वाली श्रेणी में आते हैं।”
डॉ. अग्रवाल ने कहा, “हाल ही के एक अध्ययन के मुताबिक, एनसीआर में रहने वाले लोगों की जिंदगी खतरनाक वायु प्रदूषण की वजह से लगभग छह साल कम हो चुकी है। अगर एनसीआर में डब्लूएचओ मानकों को लागू किया जा सका तो लोग नौ साल तक अधिक जीवित रहेंगे।”
उन्होंने कहा, “आईएमए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष को इस महीने प्रस्तावित अर्ध-मैराथन को तत्काल रद्द या स्थगित करने के लिए लिखने जा रहा है। यह ईवेंट तब तक नहीं होनी चाहिए, जब तक कि हवा की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार न हो जाए।”
पीएम 2.5 के प्रदूषण का मतलब है कि छोटे खतरनाक कण फेफड़ों में प्रवेश करके हानि पहुंचा सकते हैं। इससे क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसऑर्डर जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं और फेफड़ों के कामकाज में बाधा पड़ सकती है। आईएमए ने इस तरह के हालात में मैराथन दौड़ कराने के खिलाफ सख्त हिदायत जारी की है। ऐसा करने से फेफड़ों में दो चम्मच तक विषैली राख जमा हो सकती है।
आईएमए अध्यक्ष ने कहा कि दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एयूआई) पिछले कुछ दिनों में अत्यंत खराब से खतरनाक की श्रेणी में जा पहुंचा है। शहर के कई हिस्सों में, वायु प्रदूषण का स्तर 300 के खतरे के निशान को भी पार कर गया है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा, “दिल्ली में प्रदूषण के वर्तमान स्तर पर गर्भ में पल रहे शिशु भी प्रभावित हो सकते हैं। एक सामान्य वयस्क आराम करते समय प्रति मिनट छह लीटर वायु श्वास में लेता है, जबकि शारीरिक गतिविधि के दौरान यह मात्रा 20 लीटर बढ़ जाती है। वर्तमान में प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए, यह केवल फेफड़ों में विषाक्त पदार्थो की मात्रा में वृद्धि ही करेगा। यद्यपि हरेक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि व्यायाम वाला स्थान सड़कों, निर्माण स्थलों और धुआं छोड़ने वाले उद्योगों से कम से कम 200 मीटर दूर हो। हालांकि, यह भी साफ हवा की गारंटी नहीं है।”
वायु प्रदूषण से पड़ने वाला असर :
* विषाक्त कण रक्त वाहिनियों की दीवारों से गुजरते हैं और रक्त के प्रवाह को प्रभावित करते हैं। वे थ्रांबोसिस का कारण बन सकते हैं।
* विषाक्त पदार्थो से रक्त वाहिकाओं का व्यास कम हो सकता है। इस स्थिति में उच्च रक्तचाप भी हो सकता है।
* विषाक्त वायु के कारण स्ट्रोक हो सकता है।
* हवा में विषाक्त पदार्थो के मिले होने से हृदय की क्रिया प्रणाली प्रभावित हो सकती है और हृदय की रिदम बिगड़ सकती है।
* विषाक्त हवा में श्वास लेने से महिलाओं को गर्भपात हो सकता है। भ्रूण के विकास की समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
* समय से पहले ही बच्चे का जन्म हो सकता है और जन्म के समय बच्चे का वजन भी कम हो सकता है।
–आईएएनएस
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