पटना| अपने सात साल के बेटे प्रद्युम्न को खो चुके वरुण चंद्र ठाकुर अब इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं, ताकि देश में किसी बच्चे का अंत प्रद्युम्न की तरह न हो। उनका कहना है कि बच्चा तो आंख दिखाने पर ही डर जाता, उसकी निर्दयता से हत्या क्यों कर दी गई?
वरुण कहते हैं कि प्रद्युम्न की हत्या की जांच में जुटी पुलिस सहित किसी भी एजेंसी पर वह सवाल खड़ा नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनका मानना है कि इस मामले में कुछ न कुछ चीजें छूट जरूर रही हैं। जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराई जाती तो बहुत अच्छा होता।
प्रद्युम्न के पिता ने आईएएनएस से फोन पर विशेष बातचीत में घटना और आरोपी बस हेल्पर अशोक कुमार की गिरफ्तारी पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, “स्कूल बस सहायक, जिस पर हत्या का आरोप लगाया जा रहा है, आखिर उनके बेटे को क्यों मारेगा? यदि बस सहायक टॉयलेट में कुछ गलत भी कर रहा था, तो सात साल के बच्चे को क्या समझ में आएगा। वह तो केवल आंख दिखाने पर ही डर जाता। उसकी निर्दयता से हत्या करने की क्या जरूरत थी? निश्चित रूप से हत्या के पीछे कुछ न कुछ है। इसकी जांच सीबीआई से ही होनी चाहिए।”
उन्होंने इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग दोहराते हुए कहा कि इस मामले में एक भी दोषी नहीं बचना चाहिए, तभी यह मामला ऐसे स्कूलों के लिए एक सबक बनेगा।
वरुण ने अदालतों में इस मामले को संजीदगी से लिए जाने पर संतोष प्रकट करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय हो या बंबई उच्च न्यायालय, जिस तरह इस मामले को लेकर संजीदगी दिखाई जा रही है, उससे प्रद्युम्न को न्याय मिलने की संभावना बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री से लेकर हरियाणा सरकार के मंत्री और विपक्ष के नेता भी उनसे मिलकर या टेलीफोन द्वारा इस मामले को लेकर संवेदना प्रकट कर रहे हैं।
गुरुग्राम के श्याम कुंज निवासी वरुण चंद्र ठाकुर का बेटा प्रद्युम्न भोंडसी के सोहना रोड स्थित रेयान इंटरनेशनल स्कूल में दूसरी कक्षा का छात्र था। आठ सितंबर को स्कूल में ही उसकी गला रेतकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने स्कूल के एक बस सहायक को आरोपी बताते हुए गिरफ्तार कर लिया है। उसने कत्ल करना कबूल भी कर लिया है।
प्रद्युम्न के पिता बिहार के मधुबनी जिले के पंडौल प्रखंड के बड़ागांव के रहने वाले हैं। प्रद्युम्न की हत्या को लेकर उनके पैतृक गांव के लोगों का गुस्सा भी उबाल पर है। वे भी मासूम बच्चे के असली कातिल को पकड़ने और निजी स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।
वरुण कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति जीवन में कभी न कभी अभिभावक बनता है, ऐसे में यह लड़ाई अब सिर्फ एक अभिभावक की नहीं है। उनका मानना है कि कोई भी निजी स्कूल प्रबंधक आज जिस तरह सुरक्षा से समझौता कर स्कूल चला रहे हैं, उससे सभी अभिभावकों की िंचंता बढ़ी है। ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए सभी को आगे आने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि यह लड़ाई किसी प्रांत या क्षेत्र की लड़ाई नहीं है, यह पूरे देश का मुद्दा है। उन्होंने हालांकि इतना जरूर स्वीकार किया कि मधुबनी के होने के कारण बिहार के लोगों की ज्यादा मदद मिल रही है। उन्होंने बताया कि गैरसरकारी संस्था मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ़ बीरबल झा उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध करा रहे हैं।
गुरुग्राम की एक निजी कंपनी में कार्यरत वरुण चंद्र ठाकुर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पर्व-त्योहारों पर पैतृक गांव आते हैं।
–आईएएनएस
और भी हैं
बुलडोजर का इतिहास : निर्माण से लेकर तोड़फोड़ की मशीन बनने तक की यात्रा
वेश्यालय से भीख मांगकर मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए लाई जाती है मिट्टी, जानें इसके पीछे की कहानी
हिंदी दिवस: क्या हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा बची है?