रमेश ठाकुर,
भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार के गठन के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेगी। आशंका के मुताबिक हुआ भी वही। दरअसल, भाजपा अपने जिस फार्मूले के तहत घाटी में काम करना चाहती थी, पीडीपी उसमें शुरू से ही अड़ंगा अड़ा रही थी। इस लिहाज से भाजपा ने उनसे अलग होना ही मुनासिब समझा।
सरकार से अलग होने का भाजपा का फैसला देशहित के तौर पर देखा जा रहा है। दहशतगर्दो और पीडीपी को एक बात का एहसास हो गया था कि भाजपा के सरकार में रहते उनके मंसूबे कामयाब नहीं होंगे। इन तीन सालों में भाजपा ने अपने बूते वहां सालों से पनप रहे आतंकवाद की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। देश को विखंडित और तोड़ने वाली जिन ताकतों पर भाजपा चाबुक चला रही थी उनको सहयोगी पार्टी पीडीपी रोक रही थी।
जबसे जम्मू में सरकार बनी तभी से तकरीबन सभी जांच एजेंसियों ने वहां डेरा डाला हुआ था। अजीत डोभाल नए मिशन पर काम कर रहे थे जिससे आतंकियों का सफाया होना निश्चित था। इस बावत जब महबूबा से बात की गई तो उन्होंने ऐसा न करने की बात कही।
दरअसल, पीडीपी चाहती ही नहीं है कि जम्मू से आतंक का पूरी तरह से सफाया हो। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो उनकी ताकत तो खत्म होगी ही, साथ ही उनकी राजनीति पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।
खैर, देर आए दुरुस्त आए। कश्मीर की राजनीतिक सत्ता में मंगलवार को आए भूचाल के कई कारण और भी माने जा रहे हैं। राजनीति जानकार एक बात ठीक से जानते हैं कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के साथ सत्ता में उनकी समकक्ष भाजपा से रिश्ते एकदम से खराब नहीं हुए। दोनों दलों के बीच आग पिछले कई महीनों से सुलग रही थी। वह अलग बात है जोर का धमाका उन्नीस तारीख को होना तय हुआ।
भाजपा ने पीडीपी से अलग होने के पीछे सियासी लाभ लेने की नहीं सोची, बल्कि उन्होंने देशहित में सही समय पर उठाया गया सटीक कदम कहा जाएगा। भाजपा ने घाटी में अमन-शांति के लिए जो योजनाएं बनाई थी उन सभी में महबूबा द्वारा आपत्ति दर्ज करना भाजपा के लिए असहनीय होने लगा था।
पत्थरबाजों पर कार्रवाई करना भी उन्हें अखर रहा था। कुल मिलाकर पीडीपी का भाजपा को साफ कहना था कि प्रदेश में जो भी कुछ होगा उनकी अनुमति और इजाजत से हो। इस लिहाज से दोनों का इस तल्खी के बीच साथ बने रहना मुश्किल ही था।
भाजपा-पीडीपी के बीच तलाक होने के कुछ और भी कारण रहे। पहला कारण आतंकवादियों के खिलाफ सेना की कार्रवाई में अड़चन पैदा करना। दूसरा कारण पीडीपी द्वारा पत्थरबाजों को मासूम बताकर उन्हें आजाद कराना। तीसरा, समर्थक दल भाजपा की नीतियों की पूरी तरह से अनदेखी करना। चौथा कारण, जम्मू क्षेत्र के विकास की तरफ महबूबा सरकार का ध्यान न देना और पांचवां सबसे बड़ा कारण कठुआ गैंगरेप मामले की जांच के लिए एसआईटी टीम का गठन करना।
भाजपा ने महबूबा सरकार को तलाक देने में पांचवां कारण प्रमुखता से नहीं गिनाया है। राजनीतिक विस्फोट की आखरी चिंगारी कठुआ में नाबालिग से गैंगरेप में मामला का शोर देश से विदेश तक खूब गूंजा। कठुआ मामले से ही दोनों दलों के बीच तल्खियां बढ़ गई थीं। राम माधव ने अपनी तरह से मामले को शांत करने में पूरी कोशिश की, अंतत: वही हुआ, जिसका सभी को अंदेशा था। प्रदेश में एक बार फिर से राज्यपाल शासन लग गया है।
सरकार गिरने के बाद जम्मू में एक फिर वहां हालात खराब होने संदेह जताया जाने लगा है। करीब एक सप्ताह के बीच पैदा हुई अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद भाजपा ने महबूबा सरकार को गिराकर प्रदेश में राज्यपाल शासन लगवा दिया। राज्यपाल शासन लगाने के सिवाय दूसरा कोई रास्ता इसलिए भी नहीं था कि राज्य में मौजूदा राजनीतिक गणित के चलते किसी गठबंधन सरकार के बनने की संभावना न के बराबर ही है।
नेशनल कान्फ्रें स के कार्यकारी अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के पीडीपी को समर्थन न देने तथा कांग्रेस द्वारा भी सरकार बनवाने में किसी भूमिका से इनकार के बाद राज्य में अंतिम विकल्प राज्यपाल शासन ही रह गया था। दरअसल, रमजान के दौरान सरकार द्वारा घोषित एकतरफा संघर्ष विराम तथा उसके प्रति अलगाववादियों के नकारात्मक रवैये के बाद भाजपा ऊहापोह की स्थिति में थी। फिर रमजान के दौरान ही अलगाववादियों द्वारा एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या व अप्रत्याशित हिंसा तथा एलओसी पर पाकिस्तान द्वारा लगातार संघर्ष विराम के उल्लंघन के बाद भाजपा असहज महसूस कर रही थी। ईद के अगले दिन से ही ऑपरेशन ऑल आउट शुरू किए जाने से पीडीपी खफा थी।
अगर सरकार से भाजपा हाथ नहीं खींचती तो देर-सवेर पीडीपी ऐसा करती। जिसके पीछे का मुख्य कारण कश्मीरी जनमानस की सद्भावना बटोरना होता, लेकिन उनकीं मंशा को भांपते हुए भाजपा ने पहले बाजी मार ली और राज्यपाल को अपने मंत्रियों के इस्तीफे भेजकर समर्थन वापस ले लिया।
भाजपा के इस अप्रत्याशित फैसले से पीडीपी भी सकते में है। वैसे भी यह गठबंधन एक अस्वाभाविक गठजोड़ ही था, जिसमें कश्मीर के प्रमुख मुद्दों को लेकर दोनों दलों में तीखा मतभेद था, जिसमें सेना के विशेषाधिकार, अनुच्छेद-370ए 35-ए आदि प्रमुख हैं।
फिर भी जैसे-तैसे गठबंधन को बनाए रखने की कोशिश की गई। कठुआ कांड को लेकर भी दोनों दलों में तीखे मतभेद उभरे थे, जिसके बाद भाजपा को अपने उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों के इस्तीफे लेने पड़े थे। राजनीतिक पंडित इसे केंद्र की कश्मीर नीति की विफलता के तौर पर देखते हैं जो इसे 2019 के आम चुनाव के नजरिये से लिया गया कदम बताते हैं। खैर, वह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा कि इससे भाजपा को कितना लाभ और पीडीपी को कितना नुकसान उठाना पड़ेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)
–आईएएनएस
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