बेंगलुरू: अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के अवसर पर गैर-मुनाफा प्रकाशक प्रथम बुक्स द्वारा संचालित स्टोरीवीवर ने कोंकणी, भोटी और हरियाणवी में बच्चों के साहित्य के संरक्षण और उसे बढ़ावा देने के लिए ‘हाइपरलोकल’ पुस्तकालयों के सृजन की घोषणा की। दुनिया भर में बोली जाने वाली सात हजार भाषाओं में से लगभग आधी के वर्तमान शताब्दी के अंत तक मरने की आशंका है।
अकेले भारत में, 197 भाषाओं को कमजोर या लुप्तप्राय रूप में वगीर्कृत किया गया है। कई भाषाओं के विलुप्त होने के खतरे को देखते हुए, प्रति वर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (आई एम एल डी) विश्वव्यापी स्तर पर आयोजित किया जाता है जिसका उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के प्रति जागरूकता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देना है।
इस दिन को मनाते हुए स्टोरीवीवर ऐसी अल्पसंख्यक भाषाओं में बच्चों के पुस्तक प्रकाशन तंत्र को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है, जिनमें या तो सीमित मात्रा में या बाल साहित्य उपलब्ध ही नहीं है। 2017 में, स्टोरीवीवर ने आई एम एल डी का जश्न ‘फ्रीडम टु रीड़’ अभियान के अंतर्गत प्लेटफार्म पर 13 नई भाषाओं में कहानियां जोड़कर मनाया, जिसमें कुरदी जैसी लुप्तप्राय भाषा में कहानियों के इलावा अल्मामनिश और जेरीरिया जैसी लगातार सिकुड़ती भाषाएं शामिल थीं।
2018 में इस अभियान की भावना को आगे बढ़ाते हुए, स्टोरीवीवर तीन अल्पसंख्यक भारतीय भाषाओं में आनन्ददायक और अनुपूरक पठन सामग्री सृजन की सुविधा प्रदान कर रहा है। स्टोरीवीवर वर्तमान में 105 भारतीय और वैश्विक भाषाओं में 7000 कहानियों की मेजबानी करता है। मातृभाषाओं में प्रारंभिक साक्षरता सामग्री का एक संग्रह बनाने के लिए डिजिटल और प्रिंट माध्यम मिलकर काम करेंगे। स्टोरीवईवर पर इन तीन भाषाओं में कहानियों का अनुवाद होगा और दूसरी तरफ उन किताबों का प्रसार प्रिंट और डिजिटल, दोनों माध्यमों से होगा।
प्रथम बुक्स की अध्यक्ष सुजैन सिंह ने कहा, जब एक भाषा मर जाती है, तो उसके साथ एक ज्ञान का धन हमेशा के लिए खो जाता है। यह एक संस्कृति की मृत्यु होती है, इस मुद्दे पर ध्यानपूर्वक विचार-विमर्श करने और लुप्तप्राय भाषाओं और इनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के जागरुक प्रयास करना प्रत्येक प्रकाशक और भाषा योद्धा के लिए अति आवश्यक है।
प्रथम बुक्स के ओपन सोर्स प्लेटफार्म स्टोरीवीवर पर अपनी भाषाओं में कहानियां रचना और बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण पठन सामग्री पहुँचाना इतना सुगम हो गया है जितना अन्य किसी माध्यम से नहीं है। हम अपने सशक्त भागीदारों का सहयोग पाने के लिए भी आभारी हैं जिनके उद्देश्य भी हमारे भाषाओं के पोषण करने के उद्देश्य से मिलते हैं और हम इस सब को देश के प्रत्येक बच्चे तक ले जाने के प्रयास में जुटे हैं।
–आईएएनएस
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