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मोदी भावुक होते हुए

मोदी क्यों हुए इतने भावुक?

 

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतने भावुक क्यों हो गए? ऐसी भावुकता हमने 1962 में भी नहीं देखी, जब जवाहरलाल नेहरु जैसे कद्दावर प्रधानमंत्री को चीन के हाथों पराजय मिली थी। मोदी की आंखों में आंसू और आवाज में कंपन का कारण क्या है? उन्होंने जैसी बातें अपनी सभाओं में कहीं, क्या वे किसी प्रधानमंत्री को शोभा देती हैं? ‘आप मुझे जिंदा जला दें तो भी मैं डरनेवाला नहीं हूं’ और जो कदम मैंने उठाए हैं, उन पर डटा रहूंगा। इसके अलावा भी उन्होंने कई ऐसी बातें कह डालीं, जो किसी भी लोकतांत्रिक नेता को कहने से बचना चाहिए।

उनके कथनों से उनकी अपनी छवि खराब होती है। ऐसा लगता है कि वे देश के ‘प्रधान-सेवक’ नहीं, प्रधान मालिक हैं। जो चाहेंगे, सो करके दिखा देंगे। क्या उन्हें पता नहीं कि इंदिरा गांधी-जैसी अति लोकप्रिय और परम प्रतापी नेता को भारत के लोगों ने सूखे पत्ते की तरह 1977 में फूंक मारकर उड़ा दिया था? इंदिरा के आगे मोदी की बिसात क्या है? फिर भी मोदी इतने क्यों बौखला गए हैं?

शायद इसीलिए कि उन्हें लग रहा है कि उनकी यह ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ बूमेरेंग हो गई है याने जो तीर उन्होंने ‘काले धन’ पर मारा था, वह लौटकर उन्हीं के सीने पर लग रहा है। इसमें शक नहीं है कि बड़े नोटों के बदलाव को लेकर देश के सवा अरब लोग बेहद परेशानी का अनुभव कर रहे हैं लेकिन मोदी ने जो किया है, वह देश के भले के लिए किया है। वे विरोधियों के आरोपों और अभिमतों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं लेकिन उन पर मोदी जरुरत से ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। क्यों दे रहे हैं? उनके इस रवैए ने शक पैदा कर दिया है। कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं?

इस मौके पर मोदी और अरुण जेटली को स्वीकार करना चाहिए कि उन्होंने उचित तैयारी के बिना ही इतनी क्रांतिकारी योजना जनता पर थोप दी। यह भी ठीक है कि उत्तरप्रदेश के चुनाव में विरोधियों को इस योजना ने अभी से बेहद चिंता में डाल दिया है लेकिन जनता को यदि अगले 50 दिन तक इसी तरह की मुसीबतें झेलनी पड़ीं तो भाजपा उप्र में मुंह की खाएगी और मोदी का सूर्य भी अस्ताचलगामी हो जाएगा, जैसे कि बोफोर्स के खुलते ही राजीव गांधी का हो गया था। यह ठीक समय है, जबकि सरकार को इस पहल पर पूरी तरह से फिर सोचना चाहिए। विरोधी दलों से भी विचार-विनिमय करना चाहिए। लोगों को कुछ और सुविधाएं देनी चाहिए और फिर भी संकट बना रहता है तो इस कदम पर पुनर्विचार करना चाहिए। भावुकता में बहकर देश का और खुद का नुकसान नहीं करना चाहिए।

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