इंद्र वशिष्ठ,
सत्ता यानी राजनेताओं के लठैत बन कर पुलिस अफसर कितने निरंकुश हो जाते हैं। अपने आकाओं को खुश करने के लिए हत्या तक कर देते हैं। इसकी सबसे बड़ी मिसाल पुलिस द्वारा किया भरतपुर के राजा मानसिंह का फर्जी एनकाउंटर है। राजस्थान पुलिस ने राजा समेत तीन लोगों को सरेआम गोलियों से उड़ा दिया था।
राजा को भी 35 साल बाद मिला न्याय-
भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह और दो अन्य लोगों की हत्या के मामले में मथुरा की अदालत ने अब 11 लोगों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई हैं।
राजा के परिवार को भी न्याय पाने के लिए पैंतीस साल इंतजार करना पड़ा। न्याय के लिए दशकों तक इंतजार न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाता है।
राजा ने मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर तोड़ा-
भरतपुर के राजा मानसिंह ने 20 फरवरी 1985 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के हेलिकॉप्टर और चुनावी सभा के लिए बनाए गए मंच को अपनी जोंगा गाड़ी से टक्कर मार कर तोड़ दिया था।
रियासत का झंडा हटाने से राजा नाराज़-
उस समय विधानसभा सभा चुनाव में डीग से मौजूदा विधायक राजा मानसिंह निर्दलीय उम्मीदवार थे।
अंग्रेजों के शासनकाल में सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट रह चुके राजा मानसिंह सात बार लगातार निर्दलीय विधायक चुने गए थे।
कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर डीग आए हुए थे।
कहा जाता है कि कांग्रेस समर्थकों ने किले में लक्खा तोप के पास लगे रियासत के झंडे को हटा कर कांग्रेस का झंडा लगा दिया था। राजा मानसिंह ने रियासत के झंडे को हटा दिए जाने से नाराज़ हो कर यह सब किया।
इस सिलसिले में भरतपुर के डीग थाने में राजा मानसिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई।
डीएसपी ने बिना कारण गोली चलाई-
21 फरवरी 1985 को तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी पुलिस बल के साथ राजा मानसिंह को गिरफ्तार करने गए। घटनास्थल पर पहुंच कर डीएसपी ने बिना किसी कारण के राजा मानसिंह और उनके साथियों पर सीधे गोलियां चला दी। डीएसपी ने मातहत पुलिस वालों को भी गोलियां चलाने का आदेश दिया।
राजा समेत तीन की हत्या-
पुलिस के इस फर्जी एनकाउंटर में राजा मानसिंह, ठाकुर हरी सिंह और ठाकुर सुमेर सिंह पुलिस की गोलियों से मारे गए। इस मामले की जांच एक मार्च 1985 को सीबीआई को सौंप दी गई।
सीबीआई ने 18 जुलाई 1985 को जयपुर की अदालत में 18 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया।
इस मामले की जल्दी सुनवाई के लिए जयपुर में विशेष रूप से अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय का गठन किया गया था।
जयपुर से मथुरा अदालत-
राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले की सुनवाई राजस्थान के बाहर किसी दूसरे राज्य में कराने की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 1989 में उत्तर प्रदेश में मथुरा की अदालत में सुनवाई करने का आदेश दिया।
मथुरा में 1990 से सुनवाई शुरू-
जनवरी 1990 से मथुरा की अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई।
तीस अप्रैल 1990 को अदालत में 16 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय हुए। एक आरोपी को आरोप मुक्त कर दिया गया। एक अन्य आरोपी की मृत्यु (जून 1989) हो गई थी। अक्टूबर 2011 और दिसंबर 2006 में इस मामले के दो अन्य आरोपियों की मृत्यु हो गई।
पुलिसवालों को उम्रकैद-
मथुरा की जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने 21 जुलाई 2020 को 11 पुलिस वालों को दोषी करार दिया। अदालत ने 22 जुलाई को उनको उम्र कैद की सज़ा सुनाई। तीन आरोपियों को बरी कर दिया।
हत्यारे 11 पुलिस वाले-
तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी, डीग थाने का तत्कालीन एसएचओ वीरेंद्र सिंह, इंस्पेक्टर रवि शेखर मिश्रा, हवलदार जीवन सिंह, भंवर सिंह, सिपाही सुख राम,हरी सिंह,शेर सिंह,चतर सिंह, जगमोहन और पदमा राम को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई है।
सीबीआई ने साबित किया एनकाउंटर फर्जी था –
सीबीआई अदालत में यह साबित करने में सफल रही कि राजा मानसिंह और उनके दो साथियों को पुलिस ने घेर कर फर्जी एनकाउंटर में मार डाला।
राजा की कनपटी पर गोली मारी-
पुलिस ने राजा की जोंगा गाड़ी के आगे अपनी जीप अड़ा दी थी। इसके बाद मानसिंह की कनपटी पर गोली मारी गई। मानसिंह के सीने में भी गोली मारी गई थी। गोली नजदीक से मारी गई थी। अगर मुठभेड़ होती है तो गोली दूर से चलती।
चार मिनट बाद ही एनकाउंटर-
डीग थाने के रोजनामचे में लिखा गया कि राजा मानसिंह की तलाश में पुलिस टीम निकल रही है और उसके चार मिनट बाद ही मुठभेड़ दिखा दी गई। पुलिसवालों का तर्क था कि राजा मानसिंह से बहस हुई और उन्होंने हथियार निकाल लिया। इसके बाद पुलिस ने गोली चलाई। पुलिस ने राजा के पास से एक देसी तमंचा बरामद दिखाया।
राजा निहत्था था-
सीबीआई की तफ्तीश में पाया गया कि पुलिस ने तमंचा खुद रखा था। राजा के पास तो कोई हथियार ही नहीं था।
गवाह अपने बयान से नहीं मुकरे-
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह हुई कि गवाहों ने सारी बात सच सच बताई। अदालत में भी कोई गवाह अपने बयान से मुकरा नहीं।
1700 तारीख – 35 साल चले इस मुक़दमे की सुनवाई के लिए 1700 तारीख पड़ी थी। इस दौरान कई जज बदले गए।
जोंगा हो गई कबाड-
1952 से लेकर 1984 तक सात बार निर्दलीय विधायक रहे राजा मानसिंह को जोंगा गाड़ी की सवारी पसंद थी। घटना के बाद पुलिस ने जोंगा को जब्त कर लिया था। डीग थाने के मालखाने में पड़ी यह जोंगा गाड़ी कबाड़ हो गई है।
मुख्यमंत्री की कुर्सी गई-
इस कांड के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था।
राजा की आत्मा को शांति-
इस फैसले के बाद राजा मानसिंह की पुत्री पूर्व सांसद कृष्णेंद्र कौर दीपा ने कहा कि आज उनके पिता की आत्मा को शांति मिली है।
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