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रियल वॉरियर ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ की शौर्य गाथा अब बड़े पर्दे पर

 

भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण रखने के लिए शहीद होने वाले वीरों की एक लंबी श्रृंखला है, जिसमें कईयों को हम जानते हैं और याद भी करते हैं। मगर बहुत से ऐसे भी वीर हैं, जो या तो गुमनाम हैं। या फिर हम उन्‍हें भूल चुके हैं। उन्‍हीं में से एक हैं सूबेदार जोगिंदर सिंह, जिनकी शौर्य गाथा अब बड़े पर्दे पर उनकी बायोपिक में नजर आयेगी। आज मुंबई में उनकी बायोपिक ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ का फर्स्‍ट लुक जारी कर दिया गया है। इस फिल्‍म में पंजाब के सुपर स्‍टार गिप्‍पी ग्रेवाल सूबेदार जोगिंदर सिंह की भूमिका में नजर आ रहे हैं।

सूबेदार जोगिंदर सिंह, ब्रिटिश इंडिया और आजाद भारत में की सेना में अपनी सेवा दी थीं। उन्‍होंने जितनी भूमिका देश के स्‍वतंत्रता के आंदोलन में निभाई, उतनी ही आजादी के बाद भी देश की रक्षा के लिए। वे शहीद होने से पूर्व 1962 में चीन के साथ हुई लड़ाई में शामिल हुए। तब वे एक पलटन के कमांडर थे। दुर्गम क्षेत्र नेफा में अपनी पोज़िशन लेने के कुछ समय पश्चात ही उन्‍हें तीन लहरों में चीन के हजारों सैनिकों के औचक आक्रमण का सामना करना पड़ा। यह सूबेदार जोगिन्दर सिंह की मानसिक दृढ़ता ही थी, जिसकी वजह से गोलाबारूद ख़त्म होने और जांघ पर गोली लगने के बावजूद भी उन्होंने ना सिर्फ अपने सैनिकों को लड़ाई के लिए प्रेरित किया, बल्कि खुद भी अकेले ही दर्जनों चीनी सैनिकों को खंजरों से मौत के घाट उतार दियाl इस अभूत पूर्व शौर्य के प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत राष्ट्र के सर्वोच्च युद्ध सम्मान – परमवीर चक्र से नवाज़ा।

इसी घटना पर आधारित एक जाबांज वीर की कहानी में सूबेदार जोगिंदर सिंह के किरदार के लिए गिप्‍पी ग्रेवाल ने काफी मेहनत की है। उन्‍होंने कहानी को जीवंत बनाने के लिए पहाड़ की दुर्गम चोटियों पर भी शूटिंग की और शूट के दौरान पहाड़ पर फिसलने से घायल भी हो गये। उन्होंने इस फिल्म में खुद को सूबेदार के जैसा दर्शाने के लिए शारीरिक तौर पर बदला। इतना ही नहीं, उन्होंने चोटिल होने के बावजूद भी फिल्म के ज़्यादातर स्टंट्स खुद ही किएl बता दें कि इस बहादुर सिपाही के चरित्र चित्रण पर बन रही फिल्म की शूटिंग खूबसूरत और खतरनाक जगहों जैसे – कारगिल और द्रासराजस्थान एवं असम में हुई। फिल्म का मुख्य भाग 14000 फ़ीट की ऊंचाई पर शूट हुआ, जहां फिल्‍म के कास्‍ट एंड क्रू को कई घंटो तक गाड़ी एवं पैदल यात्रा करनी पड़ती थी।

– रंजन सिन्हा

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