नई दिल्ली: कोच्चि से रॉयल एनफिल्ड बुलेट पर सवार होकर 20 दिनों का सफर तय कर राष्ट्रीय राजधानी पहुंची संगीता सिखामनी अपने सफर से देश में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के संदेश को और व्यापक पैमाने पर मजबूत करना चाहती हैं।
वह महिलाओं को उनकी असल ताकत पहचानने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं ताकि महिलाएं अपने दम पर जिंदगी की नई इबारत लिख सकें। उनका कहना है कि जरूरी नहीं कि हर महिला मोटरसाइकल पर चढ़कर अपनी पहचान साबित करे और अपने आपको पुरुषों के मुकाबिल दर्शाएं। वह चाहती हैं कि हर महिला अपने हुनर को पहचाने और उसमें महारत हासिल कर अपने आप का स्थापित करे।
संगीता सिखामनी ने आईएएनएस से कहा, “हम इस यात्रा से यह दर्शाना चाहते थे कि केवल पुरुष ही नहीं महिलाएं भी मोटरसाइकल चला सकती हैं और हम इसके जरिए लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण से जुड़ा अच्छा संदेश देना चाहते हैं।”
उन्होंने कहा, “हम हर महिला से यह नहीं कह रहे कि महिला सशक्तिकरण का संदेश फैलाने के लिए आप भी मोटरसाइकल चलाएं। वह जिसे चीज में अच्छी हैं, उस काम के जरिए भी वह लैंगिक समानता का संदेश पहुंचा सकती हैं और अपनी पहचान बना सकती हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ पुरुष ऐसा मानते हैं कि शारीरिक रूप से कम शक्तिशाली होने के कारण महिलाएं उनके बराबर नहीं हैं लेकिन उन्हें ऐसो बिल्कुल भी नहीं लगता।
सिखामनी ने कहा, “पुरुषों को कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि शारीरिक रूप से कम शक्तिशाली होने के कारण हम महिलाएं उनके समान नहीं हैं लेकिन हम यह नहीं मानते। मैंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली है और मुझे कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि मैं किसी से कमजोर हूं और मुझे उम्मीद है कि अधिक से अधिक महिलाएं इस प्रकार की गतिविधियों की ओर आकर्षित होंगी ताकि कोई उन्हें अपने से कमजोर न समझे।”
इस यात्रा से मिले अनुभव के बारे में बताते हुए सिखामनी ने कहा कि 20 दिनों के दौरान वह कई लोगों से मिले और उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी इस छोटी सी पहल का समाज पर कितना बड़ा असर हो रहा है।
सिखामनी ने कहा, “मैंने यह यात्रा शुरू करने से पहले यह सोचा था कि मेरे मोटरसाइकल चलाकर दिल्ली तक जाने से महिलाओं का सशक्तिकरण कैसे होगा। लोगों ने भी यह पूछा कि यह तो आप अपनी खुशी के लिए कर रही हैं लेकिन जब मैं इस यात्रा पर निकली तब मुझे ऐहसास हुआ कि मेरी इस यात्रा का कितना बड़ा असर हो रहा है।”
सिखामनी ने आगे कहा, “मैं यात्रा के दौरान काफी लोगों से मिली। मैं स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्रों, स्थानीय ग्रामीण महिलओं से मिली और उनके विचारों को जाना जिसके बाद मुझे एहसास हुआ कि मुझे बुलेट पर सफर करता देखकर वह भी प्रेरित हुए हैं।”
–आईएएनएस
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