इंद्र वशिष्ठ, रक्षक के भेष में भक्षक पुलिस वाले वसूली, लूटपाट में भी शामिल पाए जाते है। लेकिन अदालत परिसर में वकीलों की दादागिरी के डर से जिन पुलिस वालों की आवाज तक न निकलती हो क्या वह एक वकील की सोने की चेन लूट/छीन सकते है ? और वह भी वकीलों के इलाके/गढ़ यानी कोर्ट में। इस बात पर यकीन करना मुश्किल है।
वकील की चेन लुटी ?
तीस हजारी कोर्ट कांड़ के मुख्य किरदार वकील सागर शर्मा ने एफआईआर में लिखवाया है कि पुलिस वालों ने उसके साथ बदसलूकी की हवालात में ले जाकर पीटा। सिपाही रवि ने उसकी सोने की चेन और चांदी का लॉकेट छीन/लूट लिया।
सागर शर्मा की बात में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद सामने आ ही जाएगा। लेकिन अब तक जो वायरल वीडियो और सागर शर्मा के बयान सामने आए उनमें ऐसा कुछ नहीं है जो सागर शर्मा के आरोप को सही साबित करें। सागर शर्मा ने मीडिया में दिए बयान में भी चेन लूटने का जिक्र तक नहीं किया है।
पुलिस की साख पर सवाल-
इस बात पर वैसे तो कोई यकीन नहीं करेगा कि कोर्ट में पुलिस वकील की चेन लूटने का दुस्साहस करेगी। हालांकि पुलिस को इस आरोप को भी गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि इससे पुलिस की साख पर सवालिया निशान लग जाता है। पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर तो यह पता लगा ही सकती है कि चेन लूटी गई या नहीं। इसके अलावा सिपाही रवि के साथ-साथ वकील सागर शर्मा के लाई डिटेक्टर टेस्ट से भी यह बात साबित कर सकती है कि चेन लूटी गई या नहीं।
इस आरोप की सच्चाई सामने आना बहुत ज्यादा जरूरी है। अगर सिपाही ने चेन लूटी तो यह बहुत गंभीर अपराध है। लेकिन अगर कानून के ज्ञाता वकील सागर शर्मा की बात झूठ निकले तो यह गंभीर होने के साथ साथ बहुत ही खतरनाक बात होगी। इस मामले में दोषी सिपाही मिला तो उसके खिलाफ तो लूट का मामला और विभागीय कार्रवाई होगी ही। लेकिन अगर सागर शर्मा की बात झूठ निकले तो उसके खिलाफ भी झूठा आरोप लगाने का मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
कानून के मंदिर की चौखट पर कानून के राज की मौत-
दो नवंबर की दोपहर में सागर शर्मा द्वारा हवालात के बाहर जीप खड़ी कर देने पर पुलिस ने एतराज किया। पुलिस के साथ कहासुनी के बाद वकील सागर को हवालात में ले जाया गया। वायरल वीडियो में सागर पुलिस वालों को धमकाने के अंदाज में बात करता दिखाई देता है इसके बाद वह हवालात से बाहर चला गया। इसके एक घंटे बाद वकीलों के झुंड ने हवालात पर हमला बोल दिया पुलिस वालों को बुरी तरह पीटा।
हवालात के बाहर भी जो पुलिस वाले मिले उनको बुरी तरह पीटा। वहां खड़ी पुलिस की गाड़ियों में आग लगा दी। जिला पुलिस के अतिरिक्त उपायुक्त हरेंद्र सिंह समेत कई पुलिस वालों को जमीन पर गिरा गिरा कर पीटा। पुलिस वालों के सिर फोड़ दिए ऐसे में हिंसक हमलावरों को खदेड़ने और स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और गोली चलाई। जिससे कई वकील घायल हो गए।
डीसीपी मोनिका भारद्वाज के साथ भी वकीलों ने बहुत बदसलूकी की जबकि वह हाथ जोड़कर विनती कर रही थी। लेकिन वकीलों ने अदालत परिसर में ही कानून हाथ में लेकर कानून की धज्जियां उड़ाई।डीसीपी के आपरेटर सिपाही संदीप को बुरी तरह पीटा गया।
कानून के ज्ञाता इंसाफ़ की बात करें-
इस मामले में हाईकोर्ट ने न्यायिक जांच बिठा दी। वकील गोली चलाने वाले पुलिस कर्मियों को तो गिरफ्तार करने की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे हैं। लेकिन वकीलों ने आज़ तक यह नहीं कहा कि कानून हाथ में लेकर गुंडागर्दी करने वाले वकीलों की वह निंदा करते और उनको भी कानून के तहत सज़ा मिलनी चाहिए। वह उनके साथ नहीं है।
इंसाफ दिलाने में मदद करने वाले वकीलों के संगठन ही इंसाफ़ की बात नहीं कर रहे है।
वकीलों के संगठन को तो कहना चाहिए कि कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई की जानी चाहिए। फिर चाहे वह पुलिस वाला हो या वकील।वकीलों के संगठन को तो उन वकीलों का बहिष्कार करना चाहिए । उनके लाइसेंस रद्द करने चाहिए जिन्होंने कानून हाथ में लेकर वकालत के पेशे को बदनाम कर दिया है।पुलिस वाले ने अगर कानून हाथ में लिया है तो उसके खिलाफ कानूनी और विभागीय कार्रवाई होना तय है। लेकिन इसके लिए जांच प्रक्रिया भी तो पूरी होनी चाहिए। वह उससे बच नहीं सकता है। उसके लिए वकीलों को गुहार लगाने की जरूरत नहीं।
न्यायिक जांच की रिपोर्ट के बिना वकीलों द्वारा एकतरफा सिर्फ पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग से लगता है कि उनको न्यायिक जांच पर भी भरोसा नहीं है।
वैसे सच्चाई यह है कि वकीलों द्वारा कानून हाथ में लेकर पुलिस पर हमला और आगजनी के वीडियो वायरल होने से लोगों में वकीलों की छवि खराब हुई है।
कानून के ज्ञाता से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है। वीडियो के माध्यम से लोग जान गए कि वकीलों ने बहुत ग़लत किया है।
वकीलों का खून-खून, पुलिस का खून पानी-
वकीलों ने पुलिस को बहुत बुरी तरह पीटा उनका ख़ून बहाया है। वकीलों का भी ख़ून बहा है। ऐसे में इंसाफ़ तो यह कहता है कि दोनों ओर के दोषियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाना चाहिए। लेकिन अब तो न्यायिक जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही ऐसा हो सकता है। इसलिए वकीलों द्वारा उसके पहले पुलिस वालों की गिरफ्तारी की मांग करना सही नहीं हैं।
इससे तो यही लगता है कि कानून हाथ में लेने वाले वकीलों को बचाने के लिए जज और सरकार पर दबाव बनाने के लिए यह सब किया जा रहा है।
वकीलों के संगठन द्वारा सिर्फ पुलिस वालों को गिरफ्तार करने की मांग से तो यही लगता है कि वकीलों का खून-खून है और पुलिस वालों का खून जो उन्होंने बहा दिया वह पानी है। पुलिस वालों का खून बहाने वाले वकील भी तो गिरफ्तार किए जाने चाहिए।
1988 में उत्तरी जिले की तत्कालीन डीसीपी किरण बेदी को भी जांच के बाद ही हटाया गया था। तब में और आज़ के हालात में दिन-रात का अंतर आ चुका है। आदमी मुंह से कुछ भी बोल कर मुकर सकता हैं। लेकिन अब तकनीक का जमाना है तीस हजारी में कानून की धज्जियां उड़ाने में वकील शामिल हैं या पुलिस। सब कुछ वीडियो में दर्ज हो चुका है और दुनिया के सामने आ भी चुका है।
इंसाफ का तकाज़ा दोषियों को बख्शा नहीं जाए-
वकीलों और पुलिस के टकराव का सिर्फ एक ही समाधान है कि वकील स्वीकार करें कि उनके बीच भी कुछ ऐसे वकील हैं जिन्होंने कानून हाथ में लेकर वकालत के पेशे को बदनाम किया। ऐसे वकीलों से पल्ला झाड़ कर वकालत के पेशे की साख बचानी चाहिए। कानून हाथ में लेने वाला अपराधी होता है उसे कानून के अनुसार सज़ा मिलनी ही चाहिए।
इंसाफ का तकाज़ा यहीं हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। अगर बख्शा गया तो आने वाले समय में पुलिस और वकीलों में भयंकर टकराव होने की आशंका है।
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