रीतू तोमर, नई दिल्ली: ‘वैलेंटाइन बाबा’ बागी बलिया की मिट्टी से उपजी एक मीठी सी प्रेम कहानी है जो बलिया से शुरू होकर दिल्ली में दम तोड़ देती है। इस उपन्यास में चार प्रमुख पात्र हैं : मनीष, सुजाता, शिवेश और मोहिनी।
यह उपन्यास प्यार की दो विचारधाराओं की टकराहट को पेश करता है, जिसमें एक और प्यार मोहब्बत के नाम पर मौज मस्ती करने वाला शिवेश है तो वहीं दूसरी ओर प्यार में मिलावट को कतई बर्दाश्त नहीं करने वाला मनीष, जो बचपन से ही सुजाता से प्यार करता है। कहानी की चौथी किरदार मोहिनी दिल्ली में सुजाता की रूममेट है और प्यार को लेकर हमेशा उधेड़बुन में रहती है।
बागी बलिया का ‘कड़क लौंडा’ शिवेश वैलेंटाइन बाबा का परम भक्त है शायद इसलिए वह कपड़ों की तरह जल्दी जल्दी प्रेमिकाएं भी बदलता है, लेकिन कहानी का मुख्य किरदार मनीष और उसकी बचपन की दोस्त सुजाता स्कूली दिनों से एक-दूसरे से प्यार करते हैं। बलिया के इन तीनों दोस्तों के दिल्ली जाने के बाद कहानी में नए मोड़ आते हैं।
मनीष प्यार के मामले में गऊ है तो शिवेश ने इसमें पीएचडी की हुई है। कहानी पानी की धार की तरह सरलता से आगे बढ़ती है। शिवेश के संवाद आपको बांधे रखते हैं। उसके संवादों में आकर्षण है और उसकी बातों की तुकबंदी और उर्दू के प्रति उसके लगाव को कहानी में खूबसूरती से गढ़ा गया है। सशक्त महिला के तौर पर सुजाता के किरदार को गढ़ा गया है जो मनीष से बेइंतहा प्यार करती है लेकिन उसे अपनी सीमाएं भी पता है।
शशिकांत मिश्र का ‘नॉन रेजिडेंट बिहारी’ के बाद यह दूसरा उपन्यास है। इसलिए वह युवाओं की रूह को समझने में कामयाब रहे हैं और कहानी को उसी तरह से गढ़ा भी है।
उपन्यास में गालियों की भरमार है, कहानी के बागी कैरेक्टर शिवेश से लेकर सुजाता के गालियों से भरे संवाद कान खड़े कर देते हैं। यह कहानी युवाओं के लिए हैं और उन्हें सीधे कनेक्ट कर पाएगी। सुजाता का कैरेक्टर मेरा पसंदीदा कैरेक्टर है। वह मनीष से प्यार करती है लेकिन साथ में अपनी सीमाएं भी जानती हैं। मनीष के ठुकराए जाने के बाद भी वह उसकी मदद करती है।
सुजाता का कैरेक्टर बहुत बोल्ड है, वह उससे फ्लर्ट करने वाले किसी शख्स को नहीं बख्शती। किताब के सभी पात्र वास्तविक लगे हैं। लेखक ने इसे इतने शानदार तरीके से लिखा है कि इसे पढ़ते वक्त आप उन घटनाओं को विजुएलाइज कर सकते हैं। कई जगह द्विअर्थी वाक्यों का इस्तेमाल किया गया है, जो शायद युवाओं को टारगेट कर किया गया है और यकीनन यह किताब युवाओं को बहुत पसंद आएगी।
लेखक ने किताब में अंत तक रोचकता बनाए रखी है कि रह-रहकर दिमगा कचोटता है कि आखिर मनीष ने सुजाता को छोड़ क्यों दिया। इसका क्लाइमेक्स किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं लगता।
लेखक : शशिकांत मिश्र
मूल्य : 150 रुपये
प्रकाशक : राजकृष्ण प्रकाशन
–आईएएनएस
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